देशबन्धु, 6 जून 2014
धर्मशाला ! तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय तक अपनी पहुंच बनाने व चीन द्वारा तिब्बत के संबंध में फैलाए जा रहे दुष्प्रचारों का जवाब देने के लिए गुरुवार को एक अभियान की शुरुआत की।
निर्वासित प्रधानमंत्री लोबसांग सांगय ने इस अभियान की शुरुआत की। ‘मध्य मार्ग दृष्टिकोण’ तिब्बतियों के ‘वास्तविक स्वराज्य’ का पक्ष लेता है और यह चीन के संविधान के तहत है। यह तिब्बत की स्वतंत्रता की बात नहीं करता।
दलाईलामा के राजनीतिक उत्तराधिकारी ने एक वक्तव्य जारी कर कहा, ‘मध्य मार्ग दृष्टिकोण से संबंधित जानकारियां चीनी समेत सात भाषाओं में उपलब्ध है। इससे पूरी दुनिया को यह समझने में आसानी होगी कि तिब्बतियों के वास्तवकि स्वराज्य का अर्थ क्या है।’
उन्होंने कहा कि केंद्रीय तिब्बत प्रशासन (सीटीए) इस अभियान से दुनिया भर के युवाओं, कूटनीतिज्ञों, और मीडिया को चीन की सरकार द्वारा इसके बारे में फैलाए जा रहे दुष्प्रचारों का जवाब देगी।
मध्य मार्ग दृष्टिकोण को पहले ही कई अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों का समर्थन प्राप्त है, जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और जेल में रह रहे चीन के नोबेल पुरस्कार विजेता लीयू जियाबो हैं।
लोबसांग सांगय ने कहा कि तिब्बत मुद्दे को सुलझाने के लिए 1974 में तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा और उसके बाद तिब्ब्त प्रशासन ने मध्य मार्ग दृष्टिकोण का सूत्रपात किया था।
तिब्बत मुद्दे को सुलझाने के लिए चीन और दलाई लामा के प्रतिनिधियों के बीच 2002 से अबतक 9 दौर की बातचीत हो चुकी है। बीजिंग में हुए जनवरी, 2010 को नौवें दौर की बातचीत के दौरान निर्वासित सरकार ने चीनी नेतृत्व को एक विवरणात्मक नोट सौंपा, जिसमें चीन द्वारा तिब्बत के लोगों के लिए वास्तविक स्वराज्य पर रुख स्पष्ट करने की बात कही गई है।
लेकिन अंतिम दौर की बातचीत के बाद भी दोनों का रुख पहले की तरह ही अलग-अलग था।