स्कूल बंद होने से तिब्बती इलाकों में भाषा अधिकार पर चीन के प्रतिबंध और सख्त
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पश्चिमी चीन के सिचुआन में अधिकारी तिब्बती भाषा में पढ़ाने वाले निजी तिब्बती स्कूलों को बंद कर रहे हैं। क्षेत्रीय सूत्रों का कहना है कि वे तिब्बती छात्रों को सरकारी स्कूलों में जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं, जहां उन्हें चीनी भाषा में पढ़ाया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि पाठ्य-पुस्तकों और शिक्षण सामग्री के उपयोग में एकरूपता को बढ़ावा देने के नाम पर यह कदम उठाया जा रहा है। कर्द्ज़े (गांज़ी) तिब्बती स्वायत्त प्रांत में सेरशुल (चीनी, शिकू) काउंटी में एक स्रोत ने आरएफए को बताया कि सिचुआन के दज़ाचुखा क्षेत्र में पहले कई निजी स्कूल थे जहां तिब्बती भाषा और संस्कृति सिखाई जाती थी।
आरएफए के सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘लेकिन 2020 के अंत से और बिना किसी वास्तविक कारण के इन सभी स्कूलों को बंद करने को मजबूर किया गया और बच्चों को सरकारी निगरानी वाले स्कूलों में जाना पड़ा।’ सूत्र ने कहा कि प्रभावित बच्चों के माता-पिता और अन्य स्थानीय तिब्बतियों ने थोपी गई इन बातों को लेकर बहुत चिंता जताई है और कहा कि युवा तिब्बतियों को उनकी संस्कृति और भाषा से दूर रखने से भविष्य में गंभीर नकारात्मक परिणाम होंगे।
उन्होंने कहा, ‘तिब्बती खानाबदोश परिवार जो अब तक अपने बच्चों को चीनी सरकार की निगरानी वाले स्कूलों में नहीं भेज रहे हैं, उन्हें अब ऐसा करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।’
भारत के धर्मशाला में स्थित तिब्बती नीति संस्थान में एक शोधकर्ता कर्मा तेनज़िन ने कहा कि सेरशुल में स्कूलों को बंद करके चीन अपने ही कानूनों का उल्लंघन कर रहा है, जिनमें जातीय अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा सीखने के अधिकार की गारंटी दी गई है।
तेनज़िन ने कहा, ‘तिब्बती भाषा और संस्कृति सिखाने वाले स्कूलों को जबरन बंद करने का यह कृत्य तिब्बत की (राष्ट्रीय) पहचान को खत्म करने के चीनी सरकार के प्रयासों की स्पष्ट तस्वीर पेश करता है।’
टाउनशिप में कठोर नियंत्रण तिब्बत में चीनी शासन के खिलाफ लगातार विरोध के परिदृश्य को और स्पष्ट करते हुए सेरशुल के ड्ज़ा वोन्पो टाउनशिप के एक निवासी ने आरएफए से कहा कि इस टाउनशिप इलाके में जीवन कठोर नियंत्रण में रहता है। यहां पर निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की तस्वीरों को रखना एक गंभीर अपराध माना जाता है।
उन्होंने कहा, ‘तिब्बती निर्वासित समुदाय के साथ संवाद करना भी हाल के दिनों में बहुत मुश्किल हो गया है और अगर चीनी अधिकारी उन्हें ऐसा करते हुए पकड़ लेते हैं तो उन्हें तुरंत जेल में बंद कर दिया जाता है।’ तिब्बत में चीनी शासन के खिलाफ 1959 में हुए असफल राष्ट्रीय विद्रोह के दौरान तिब्बत के सर्वोच्च आध्यात्मिक धर्मगुरु परम पावन दलाई लामा को भारत में निर्वासन में भाग आना पड़ा था। इससे पहले चीन ने इस हिमालयी स्वतंत्र देश तिब्बत पर 1950 में ही बलपूर्वक कब्जा कर लिया था। इसके बाद से हमेशा परम पावन दलाई लामा की तस्वीर रखने पर या उनका जन्मदिन सार्वजनिक तौर पर समारोह पूर्वक मनाने पर तिब्बती लोगों को कड़ी सजा दी जाती रही है। चीन की 2010 की जनगणना के अनुसार, चीन में रह रहे कुल 62 लाख तिब्बतियों में से, लगभग 15 लाख तिब्बती ऐतिहासिक रूप से पश्चिमी सिचुआन प्रांत के तिब्बती हिस्सों में रहते हैं। सूत्रों का कहना है कि हाल के वर्षों में तिब्बती भाषा अधिकार के लिए आंदोलन तिब्बती राष्ट्रीय पहचान के प्रतीक बन गए हैं। सूत्रों के अनुसार, मठों और कस्बों में अनौपचारिक रूप से आयोजित भाषा पाठ्यक्रमों को आम तौर पर ‘अवैध सभा’ माना जाता है और पढ़ाने वाले शिक्षकों को हिरासत में लिया जाता है या गिरफ्तार कर लिया जाता है। आरएफए की तिब्बती सेवा के लिए सांगेय कुंचोक द्वारा रिपोर्ट किया गया। तेनज़िन डिकी द्वारा अनूदित। रिचर्ड फिनी द्वारा अंग्रेजी में लिखित।