धर्मशाला। भारत-तिब्बत मैत्री संघ (आईटीएफएस) ने रविवार को तिब्बती इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स (टीआईपीए) के सभागार में परम पावन दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किए जाने के उपलक्ष्य में दो दिवसीय २७वें हिमालय महोत्सव का आयोजन किया।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने महोत्सव के आधिकारिक कार्यक्रम में सम्मानित अतिथि के रूप में भाग लिया। अन्य विशिष्ट हस्तियों में मुख्य अतिथि के रूप में नगरोटा के विधायक और हिमाचल प्रदेश के पर्यटन मंत्री मंत्री श्री रघुबीर सिंह बाली और विशिष्ट अतिथि के तौर पर धर्मशाला नगर निगम की महापौर श्रीमती नीनू शर्मा उपस्थित रहीं।
अपने संबोधन में सिक्योंग ने इस आयोजन के महत्व पर बात करते हुए कहा कि यह धर्मशाला के निवासियों और तिब्बतियों को विभिन्न कलात्मक प्रस्तुतियों के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान का जश्न मनाने के लिए एक मंच पर एक साथ लाता है। सिक्योंग ने दर्शकों को भारत-तिब्बत के प्राचीन संबंधों से अवगत कराया और सदियों से चले आ रहे संबंधों के बारे में बातचीत की।
तिब्बतियों के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता ने भारत से तिब्बती लिपि की व्युत्पत्ति और इसी लिपि के आधार पर तिब्बत में बौद्ध धर्म की शुरूआत पर प्रकाश डाला। भारत के साथ इतने महत्वपूर्ण संबंध के बारे में सिक्योंग ने कहा, ‘हमें यह कहते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि हमारे पास प्राचीन भारतीय ज्ञान के एक हिस्से का भंडार हैं।’
सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने धर्मशाला में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की स्थापना पर गर्व व्यक्त किया और कहा कि तिब्बती समुदाय दुनिया में पूर्ण लोकतांत्रिक और राजनीतिक संरचना वाला एकमात्र निर्वासित समुदाय है।
निर्वासित तिब्बती नेता ने उसी दिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मनाए जाने वाले मानवाधिकार दिवस के बारे में भी बात की। उन्होंने इतिहास के ऐसे महत्वपूर्ण मोड़ के दौरान, जब तिब्बत में तिब्बतियों को राजनीतिक रूप से कोई स्थान नहीं है, तिब्बतियों के प्रति दयालुता के लिए भारत सरकार, विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार और भारत के लोगों का आभार व्यक्त किया। अपना संबोधन समाप्त करने से पहले सिक्योंग ने भारत-तिब्बत संबंधों में विशेष रूप से दोनों देशों के समान हित के अवसरों के स्थायित्व के लिए आशा व्यक्त की।
यह उत्सव परम पावन दलाई लामा की शांति पहलों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता के तौर पर १० दिसंबर १९८९ को प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के उपलक्ष्य में वर्ष १९९५ में शुरू किया गया था। यह सांस्कृतिक उत्सव विशेष रूप से शांति पहल का प्रतीक है और इसका उद्देश्य स्थानीय भारतीयों और तिब्बती समुदाय के बीच अंतर-सांप्रदायिक संपर्क और दोस्ती को मजबूत करना है, जबकि विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोगों के बीच प्रशंसा और समझ को बढ़ावा देना है।