धर्मशाला। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने आज ०१ अगस्त की शाम दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक कार्यक्रम में मुख्य भाषण दिया।इसमें ‘एक चीन नीति को हथियार बनाने’पर चर्चा हुई। इसका आयोजन फाउंडेशन फॉर अहिंसक अल्टरनेटिव्स (एफएनवीए) द्वारा कई अनुभवी राजनयिकों और विभिन्न संस्थानों के प्रमुख विशेषज्ञों के साथ किया गया। इस दो दिवसीय सेमिनार के दौरान ‘वन चाइना पॉलिसी‘ के कई पहलुओं पर बात की जाएगी।
अपने संबोधन की शुरुआत में सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने तिब्बत के लिए ‘वन चाइना पॉलिसी‘ की अप्रासंगिकता पर प्रकाश डालने के लिए प्रसिद्ध तिब्बती राजनयिक स्वर्गीय ग्यारीलोदो रिनपोछे के एक संस्मरण को उद्धृत किया। दूसरे शब्दों में कहें तो‘वन चाइना पॉलिसी‘ का संबंध१९७० के दशक में अमेरिकी प्रयासों के नतीजे से है।उस समय अमेरिका द्वारा रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) के साथ संबंधों को बनाए रखते हुए पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीन) के साथ संबंध स्थापित करने के प्रयास चल रहे थे। इसका तिब्बत के लिए कोई प्रासंगिकता नहीं थी। उद्धरण में लिखा है, ‘फिर भी पीआरसी सरकार तिब्बत में ‘वन चाइना पॉलिसी‘को लागू करने का सख्ती से प्रयास कर रही है।हाल के वर्षों में चीनने कई सरकारों को यह कह कर न केवल ‘वन चाइना पॉलिसी‘ पर विश्वास करने के लिए गुमराह किया है कि यह तिब्बत पर लागू होता है, बल्कि उसने उन सरकारों के अधिकारियों को निर्वासित तिब्बती नेताओं के साथ ही परमपावन दलाई लामा से भी संपर्क करने या बातचीत करने से प्रतिबंधित कर दिया है।
सिक्योंग पेन्पा छेरिंग ने तिब्बत और चीन के साथ भारत सरकार के संपर्कों के बारे में संक्षेप में बात करते हुए कहा, ‘जब आप तिब्बत के बारे में बात करते हैं तो आपको १९४५ से ५१ और ५४ तक बात करनी होगी जब तिब्बत आजाद था।‘उन्होंने दोहराया, ‘वन चाइना पॉलिसी या एक चीन नीति का तिब्बत के लिए और तिब्बत से कोई लेना-देना नहीं है।आपको इसे बिल्कुल अलग चश्मे या ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से देखना होगा।‘
सिक्योंग ने आगे तिब्बत और चीन के बीच १७ सूत्रीय समझौते पर प्रकाश डाला, जिस पर तिब्बती राजनयिकों को चीन के दबाव में हस्ताक्षर करना पड़ा था। बाद में परम पावन १४वें दलाई लामा के नेतृत्व वाली तिब्बती सरकार द्वारा समझौते का पालन करने के लिए प्रयास किए गए, जिसे चीन ने अंततः नजरअंदाज कर दिया। इसके कारण उस समझौते की पवित्रता नष्ट हो गई और परिणामस्वरूप परम पावन दलाई लामा के साथ हज़ारों तिब्बतियों को निर्वासन में पलायन करना पड़ा था।
सिक्योंग से पहले पूर्व भारतीय राजदूत लखन लाल मेहरोत्रा ने भी कार्यक्रम के उद्घाटन सत्रको संबोधित किया। उन्होंने कहा, ‘चीन के उदय ने एक नई स्थिति पैदा कर दी है जिसमें स्थापित वैश्विक समीकरण टूट रहे हैं,जिससे पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चुनौतियां पैदा हो रही हैं।‘ विशेष रूप से, उन्होंने अमेरिका और भारत के साथ चीन के संबंधों और उसमें लगातार हो रहे बदलावों के बारे में बात की।