न्यूज़, 12 मार्च 2016
भोपाल। तिब्बत पर चीन जनवादी गणतंत्र के आक्रमण और कब्जे के खिलाफ 10 मार्च 1959 में हुई तिब्बती जनता की शांतिपूर्ण जनक्रांति का भारत तिब्बत सहयोग मंच सराहना एवं सहानुभूति व्यक्त करता हैं। मंच के राष्ट्रीय महासचिव तथा द कोर ग्रुप फाॅर तिब्बतन काॅज इंडिया के क्षेत्रीय संयोजक डाॅ0 शिवेन्द्र प्रसाद का मानना है कि जिस समय तिब्बत के उपर चीन ने कब्जा किया, उसी समय भारत की सीमा खतरे में आई थी और भारत की सीमा असुरक्षित हो गई थी।
तिब्बती जनता के शांतिपूर्ण जनक्रांति की 57वीं वर्षगांठ है साथ ही भारत की सीमा असुरक्षित होने का भी 57वीं वर्षगांठ है और हमें मालूम हैं कि 1962 में चीन ने हमारे हजारों सैनिक रणभूमि में मारे गए। चीन सरकार यह बार-बार दावा करती है कि तिब्बत में विकास के साथ ही वहां खुशी और सम्पन्नता आ गई है लेकिन सच्चाई ठीक इसके विपरीत हैं।
तिब्बती लोग बुनियादी आजादी से वंचित है और लोगों को लगातार कठोर नियंत्रण और निगरानी में रहना पड़ रहा है। चीन आत्मदाह की घटनाओं के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि तिब्बत के भीतर कोई भी व्यक्ति, जो धार्मिक आजादी और पर्यावरण आधिकारी की बात करता है उसके उपर राजनीति से प्रेरित विभिन्न धाराएं लगा दी जाती है और कठोर सजा दी जाती है।
ध्यातव्य हो कि फ्रीडम हाउस रिपोर्ट 2016 में तिब्बत का सीरिया के बाद दुनिया का दूसरा सबसे कम आजाद स्थान बताया गया है, इसी तरह ईयू-चीन संबंधों पर दिसम्बर 2015 में जारी यूरोपीय संघ की रिपोर्ट में साफ तौर से तिब्बत में धार्मिक आजादी के आभाव और यात्रा पर लगे प्रतिबंधो पर चिंता जताई गई।