27 जुलाई 2013
पुणे: विश्व में कर्इ स्थानों पर युद्ध और हिंसाचार की घटनाओं से अशांति, अराजकता फैल गर्इ है भौतिक सुख के पीछे दौड़ने से सामाजिक स्वास्थ्य खतरे में पड़ गया है। समाज में आनंददायी माहौल पैदा करने के लिए मानवता के आशावादी विचार पिरोहित करने की जरूरत है। यह विचार बौद्ध धर्मियों के सार्वोच्च गुरू दलार्इ लामा ने व्यक्त किए।
बुद्धयान महासंघ की ओर से गणेश कला क्रीड़ा मंच में आयोजित धम्म प्रवचन में वे बोल रहे थे।
दलार्इ लामा ने कहा-कमजोर मन कर्इ विकारों का शिकार हो जाता है। परिवार, समाज का स्वास्थ्य सुदृढ़ मन पर ही निर्भर होता है। हिंसाचार की घटनाओं से व्यकित, समाज और देश के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असन होता ळें लोभ, र्इष्र्या, द्वेष आदि विकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसी वजह से भौतिक सुख के पीछे न पड़ते हुए समाज आनंद के साथ कैसे रहेगा, इसकी ओर ध्यान देना चाहिए, समाज में आशावादी भावना को बढ़ावा देने के लिए वैज्ञानिकों को सोचना जरूरी है।
धर्मनिरपेक्षता शब्द का गलत अर्थ लगाया जाता है। धर्मनिरपेक्ष यानी दूसरों के धर्म का आदर करना ही होता है। सभी धर्मियों ने मिल-जुलकर रहने के लिए यही मंत्र जतन करना चाहिए। मै जिस देश में जाता हूं, वहां के नागरिकों को यही संदेश देता हूं किसी धर्म का विचार पसंद आया, इसलिए धर्म परिवर्तन करने की जरूरत नहीं है। हर धर्म की अच्छी बातों का स्वीकार करना चाहिए। अच्छी बातों का आदान-प्रदान होना चाहिए। विश्व में विविध बातों के लोभ से जो अशांति या अराजकता फैली है, वह इन्सान की गलती के कारण ही, अगर इन्सान अपनी यह गलती सुधार सकता है।