tibet.net, 15 सितंबर, 2018
एम्स्टर्डम।आज आधुनिक वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों के एक पैनल के साथ अपनी बातचीत में परमपावन दलाई लामा ने प्राचीन भारतीय परंपरा और इसकी 3000 साल पुरानी मानवीय भावनाओं और मन की कार्य प्रणाली की वैज्ञानिक समझ विकसित कर लेने के लिए प्रशंसा की।
उन्होंने कहा कि जहां तक आंतरिक मूल्य की बात है या मन या चेतना के कार्यकलापों कासंबंध है, भारतीय परंपरा ने 3000 वर्षों से अधिक समय तक मन के परीक्षण का तरीका विकसित किया है। ‘चेतना के इन गहरे स्तर की जांच करने के लिए भारत ने पहले ही एकल-बिंदुध्यान (शमाथा) और विश्लेषणात्मक ध्यान (विपश्यना) का अभ्यास विकसित किया है।’
उन्होंने कहा कि बुद्ध स्वयं ‘इन भारतीय परंपराओं का एक उत्पाद’ है।
उन्होंने कहा, ‘आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के साथ चर्चा में मैंने पाया है कि पूरी पश्चिमी सभ्यता बहुत भौतिकवादी संस्कृति से ग्रस्त है। चेतना के बारे में बातें करते समय वे केवल चेतना के संवेदनात्मक स्तर के बारे में बात करते हैं, मानसिक स्तर की चेतना के बारे में नहीं।’
‘क्रोध, आसक्ति, प्रेम-कृपा करुणा चेतना के मानसिक स्तर से संबंधित है, संवेदनात्मक स्तर से नहीं।’
परम पावन वैज्ञानिकों, युवाओं के एक पैनल के साथ प्रौद्योगिकी और करुणा के बारे में बात कर रहे थे। इस कार्यक्रम में डीनीउवे केर्क एम्स्टर्डम में ‘द लाइफ ऑफ द बुद्धा’ पर एक प्रदर्शनी का उद्घाटन भी हुआ।मेहमानों में डच राज परिवार के सदस्य और विभिन्न देशों के राजदूत उपस्थित थे।
समारोह में रोबोटिक प्रौद्योगिकी के प्रदर्शन से प्रभावित परम पावन ने कहा, ‘हाँ, मशीनें बहुत महत्वपूर्ण हैं लेकिन मशीनें को नियंत्रित नहीं करती हैं। वे मनुष्यों द्वारा नियंत्रित होते हैं। रचनात्मक भावनाएं रचनात्मक शारीरिक व्यवहार का कारण बनती हैं, न केवल हमारे भौतिक जीवन में बल्कि मन और भावनाओं के स्तर पर भी।
परम पावन ने 15 वर्षीया एक किशोरी टिली लॉकी को पेश किया जिसने मैनिन्जाइटिस के कारण दोनों हाथ खोदिए और अब विकलांग बच्चों के लिए कृत्रिम बायोनिक हाथ बनाने के लिए एक कंपनी के साथ सहयोग कर रही हैं।
आधुनिक तकनीकें विशेष रूप से शारीरिक अक्षमताओं वाले लोगों का समर्थन करने में सहायक होती हैं। मैं इस तकनीक का निर्माण करने वाली कंपनी और विशेषज्ञों की सराहना करता हूं। आप उन्हें बता सकते हैं कि यह कितना उपयोगी है। यूरोप में अपेक्षा कृत बेहतर सुविधा है, लेकिन अफ्रीका और कम विकसित देशों को देखें जो अत्यधिक पीड़ा से गुजर रहे हैं।’
उन्होंने वैज्ञानिकों से अपील की कि वे अपने व्यावसायिक कार्य में मौलिक नैतिक मूल्यों को शामिल करें जो हम सभी मनुष्यों में समान रूप से पाए जाते हैं।
परम पावन ने उन कंपनियों और विशेषज्ञों से अफ्रीका और उस जैसे गरीब देशों में उन लोगों तक पहुंचने और उनकी सहायता करने के लिए रोबोट प्रौद्योगिकी विकसित करने के काम को आगे बढ़ाने का आग्रह किया, जहां अनेक बच्चे युद्ध से प्रभावित हुए हैं और विकलांगता से पीड़ित हैं।
उन्होंने कहा, ‘दुनिया के विभिन्न हिस्सों में शारीरिक समस्याओं से बहुत से लोग पीड़ित हैं। कंपनी को ध्यान देना चाहिए और उन देशों के गरीब वर्ग की सेवा करना चाहिए।’
परमपावन ने भी मजाकिया लहजे में कहा कि यह बेहद प्रभावशाली होगा अगर प्रौद्योगि की दुष्टों को दयालु और परोपकारी व्यक्तियों से संचालित करवा सके और मानवता के लिए अच्छी सेवा करने वालों की उम्र बढ़ाए।