26 अगस्त, 2012: भारत-तिब्बत सहयोग मंच (तिब्बत समर्थक एक राष्ट्रीय संगठन) ने भारत में तिब्बत आंदोलन को और मजबूत करने के लिए 26 अगस्त, रविवार को दीन दयाल अनुसंधान संस्थान में दिल्ली कार्य समिति की बैठक आयोजित की।
इस बैठक में भारत-तिब्बत सहयोग मंच की दिल्ली शाखा के करीब 150 सदस्यों ने हिस्सा लेकर तिब्बत मुकित साधना, हिमालय बचाओ आंदोलन और कैलाश-मानसरोवर मुकित आंदोलन को पुनर्जीवित करने और उन्हें मजबूत बनाने पर विचार-विमर्श का संकल्प लिया।
इस बैठक की अध्यक्षता भारत-तिब्बत सहयोग मंच, दिल्ली के उपाध्यक्ष श्री नरेश अग्रवाल ने किया। श्री पंकज गोयल, महामंत्री, भारत तिब्बत सहयोग मंच ने सम्मेलन में दिल्ली के विभिन्न हिस्सों से आए सभी सदस्यों और नए सदस्यों का स्वागत किया। अपने उदघाटन भाषण में उन्होंने कहा कि चीन की भौगोलिक सीमा चीन की महान दीवार तक ही खत्म हो जाती है और अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके पर उसके अवैध दावे को भारत सरकार स्वीकार नहीं कर सकती।
इसके बाद उन्होंने बैठक में आगे होने वाली चर्चा के लिए बिंदुओं को आगे बढ़ाया जो इस प्रकार हैं:
1. भारत-तिब्बत सहयोग मंच द्वारा 10 अक्टूबर, 2012 को माननीय श्री इंद्रेश कुमार जी के नेतृत्व में गुवाहाटी, तेजपुर, बोमडिला, तवांग, बुमला में पदयात्रा का आयोजन करना।
2. श्री उमा भारती के नेतृत्व में गंगा मुद्दा पर जागरूकता बढ़ाना और अभियान चलाना।
3. भारतीय संसद में 14 नवंबर, 1962 को उठाए गए चीनी घुसपैठ मुद्दा पर कार्रवार्इ करना।
इस बैठक में सदस्यों को संबोधित करने के लिए भारत-तिब्बत सहयोग मंच के राष्ट्रीय महासचिव श्री महेश चडढा को सम्मानित अतिथि के रूप में बुलाया गया था। उन्होंने कहा कि भारत-तिब्बत सहयोग मंच द्वारा अक्टूबर में पदयात्रा का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने सभी सदस्यों से निवेदन किया कि वे इस यात्रा में शामिल हों और सितंबर के अंत तक किसी भी तरह से अपने बारे में विस्तृत विवरण भेज दें। उन्होंने कहा कि तिब्बत की आज़ादी भारत की सुरक्षा के लिहाज से हमारे ज्यादा हित में है। वर्ष 1962 में चीन के घुसपैठ के बाद भारत सरकार चीन के खिलाफ प्रतिरक्षा, अर्थव्यवस्था या नौसेना किसी भी लिहाज से मजबूत और बहादुरीपूर्ण कार्रवार्इ करने में विफल रही है।
इस बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में राज्य सभा सांसद श्री भगत सिंह कोश्यारी को आमंत्रित किया गया था ताकि वे तिब्बत के मसले पर सदस्यों को संबोधित करें और इस तरह का मागदर्शन दें जिससे सभी सदस्य भारत की सुरक्षा से जुड़े ऐसे सामाजिक आंदोलन के लिए कार्य करने के लिए प्रेरित हों। उन्होंने कहा कि भारत-तिब्बत सहयोग मंच द्वारा आयोजित पदयात्रा काफी अच्छा प्रयास है, क्योंकि चीनी आक्रमण का खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। चीन यह दावा करता है कि अरुणाचल प्रदेश का तवांग इलाका उसकी जमीन में आता है, जबकि तथ्य यह है कि यह भारत का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय लोगों के तीर्थ स्थान और भगवान शिव के जन्म स्थान कैलाश-मानसरोवर भी तिब्बत पर कब्जे के बाद चीन के अवैध नियंत्रण में हो गया है। अब कैलाश की तीर्थ यात्रा के लिए वीजा लेने की जरूरत पड़ती है। जब तिब्बत आज़ाद था तो भारतीय तीर्थ यात्री बिना किसी कागजी कार्रवार्इ के मुक्त रूप से वहां जाते थे। इसलिए भारत के लोगों की यह बड़ी भूमिका और जिम्मेदारी है कि तिब्बत आज़ाद हो। एक बात याद रखनी चाहिए कि तिब्बत का चीन की तुलना में भारत से ज्यादा जुड़ाव है। उन्होंने कहा, अंत में, मैं इस बैठक के आयोजक और सभी सदस्यों को धन्यवाद देना चाहंगा जो यहां एक अच्छे काम के लिए जुटे हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक भारत की सुरक्षा के मसलों का समाधान नहीं हो जाता।
अंत में भारत-तिब्बत सहयोग मंच की दिल्ली शाखा के उपाध्यक्ष श्री नरेश अग्रवाल ने उपसिथति अतिथियों और बैठक में आए अन्य सदस्यों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।