अमर उजाला, 17 नवंबर 2018
निर्वासित तिब्बत सरकार के मुखिया लोबसांग सांगे ने कहा कि चीन पड़ोसी देशों को ‘प्रभावित’ करने की कोशिश में लगा हुआ है, ऐसे में भारत के लिए तिब्बत कोर मुद्दों में एक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत और तिब्बत सदियों पुरानी संस्कृति, कला, सभ्यता से जुड़े हुए हैं। अमेरिका दौरे पर आए सांगे ने यहां शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों, सांसदों और हडसन इंस्टीट्यूट जैसे थिंक टैंक के सदस्यों से मुलाकात की और उनके समक्ष तिब्बत का मुद्दा उठाया। हार्वर्ड से शिक्षा प्राप्त सांगे ने कहा, ‘चीनी सेना पीपुल्स लिबेरशन आर्मी (पीएलए) भारत की सीमा के नजदीक पहुंच चुका है।
अब चीन भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल को प्रभावित कर रहा है और यही सच्चाई है। तिब्बत न सिर्फ भारत बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के जल का स्रोत है। इसी वजह से तिब्बत भारत के साथ-साथ पूरे दक्षिण एशिया और आसियान देशों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए तिब्बत भारत के कोर मु्ददों में एक होना चाहिए।’ सांगे ने कहा कि चीन पहले ही कह चुका है कि तिब्बत उसके मूल मुद्दों में एक है, इसलिए तिब्बत के लोगों और उनके मुद्दों को ध्यान में रखते हुए भारत को भी ऐसी ही नीति अपनानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि तिब्बत के लोग चीनी संविधान के ढांचे के अंतर्गत वास्तविक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं। स्वायत्तता हासिल करने का यही सही रास्ता है। बताते चलें कि चीन तिब्बत को अपना हिस्सा बताता रहा है, जबकि तिब्बती खुद को स्वायत्त कहते हैं। भारत में लंबे समय से निर्वासन का जीवन जी रहे दलाई लामा को चीन के खिलाफ तिब्बती विरोध का सबसे बड़ा चेहरा माना जाता है। 1959 में तिब्बत से भागकर दलाई लामा भारत चले आए थे।