tibet.net, 29 जनवरी 2013
धर्मशाला भारत स्थित केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के कशाग और निर्वासित तिब्बती संसद 30 जनवरी से 2 फरवरी 2013 तक नर्इ दिल्ली में तिब्बती जनता के लिए एकजुटता अभियान का आयोजन कर रहे हैं। इस अभियान का उद्देशय तिब्बत के भीतर रहने वाली तिब्बती जनता के प्रति एकजुटता दिखाना, उनके बारे में जागरूकता बढ़ाना और तिब्बत के भीतर के दु:खद हालात के बारे में अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाना है।
इस तरह की चरम कार्रवार्इ न करने के केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की बार-बार अपील के बावजूद विरोध प्रदर्शन के किसी परंपरागत स्वरूप के लिए कोर्इ जगह न बचे होने की वजह से तिब्बत में आत्मदाह की अभूतपूर्व लहर चल रही है। वर्ष 2009 से अब तक 99 तिब्बतियों ने चीन सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए खुद को आग लगा लिया है। ऐसा सबसे हाल का वाकया 22 जनवरी, 2013 को हुआ है, जब कुंछोक क्याब नाम के एक तिब्बती ने आत्मदाह कर लिया। वे अपने पीछे जो संदेश छोड़कर गए हैं, वह असल में आज़ादी और परमपावन दलार्इ लामा को तिब्बत वापस लाने की उनकी प्रेरणा और आकांक्षा का इच्छापत्र है। आत्मदाह की असल वजहों का पता लगाए जाने की जगह चीन सरकार ने हमेशा ही इसके लिए परमपावन दलार्इ लामा और बाहरी ताकतों को जिम्मेदार ठहराया है।
चीन सरकार ने आत्मदाह की घटनाओं की प्रतिक्रिया में और दमनकारी कदम उठाए हैं। उन्होंने समूचे अशांत इलाके की घेराबंदी कर दी है और पत्रकारों, पर्यटकों और अन्य यात्रियों को तिब्बत में नहीं जाने दिया जा रहा। इसके अलावा उन्होंने अशांति के केंद्र बन चुके जगहों पर जनमुक्ति सेना (पीएलए) और सशस्त्र जन पुलिस (पीएपी) के जवानों की भरमार लगा दी है। इससे यह साफ है कि चीन प्रतिरोध की नर्इ ताकतों को कठोर उपायों से काबू करना चाहता है। इन घटनाओं में जिनके भी शमिल होने का संदेह है, उनके परिवारों और रिश्तेदारों को निशना बनाया जा रहा है।
पिछले 60 साल से भी ज्यादा समय से राजनीतिक दमन, सांस्कृतिक विलोपन, जनसंख्या के स्थानांतरण, नस्लीय भेदभाव, आर्थिक एवं शैक्षणिक रूप से हाशियाकरण और भारी पर्यावरण विनाश जैसी असामान्य नीतियों की वजह से तिब्बत में नरसंहार और बढ़ा है। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया की विभिन्न सरकारों द्वारा इस संबंध में जतार्इ गर्इ चिंता का स्वागत करता है, लेकिन चीन को यह समझाने के लिए अभी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है कि वह मध्यम मार्ग नीति के माध्यम से दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद हल निकालने के लिए परमपावन दलार्इ लामा के विशेष दूतों के साथ वार्ता करे।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बतियों के साथ एकजुटता से खड़ा है और भारत के साथ ही समूचे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह करता है कि वे चीन से यह अनुरोध करें कि वह:
• मीडिया, संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय तथ्यान्वेशी दलों के प्रतिनिधियों को बिना किसी बाधा के तिब्बत के भीतर जाने दे और उन्हें आत्मदाह के असल कारणों का पता लगाकर इस बारे में रिपोर्ट तैयार करने दे।
• सरकारी, संसदीय और राजनयिक प्रतिनिधिमंडलों को तिब्बत में जाने दे ताकि वे तिब्बत की जमीनी हकीकत से रूबरू हो सकें।
• तिब्बत में अपनी विफल कठोर नीतियों की समीक्षा करे और तिब्बत मसले को वार्ता के माध्यम से हल कर तिब्बती जनता की वाजिब शिकायतों को दूर करे।
डा. लोबसांग सांगे श्री पेनपा सेरिंग
सिक्योंग निर्वासित तिब्बती संसद के अध्यक्ष
तिब्बत के राजनीतिक प्रमुख