धर्मशाला। यहां आयोजित 14वें तिब्बती धार्मिक सम्मेलन में तिब्बती बौद्ध धर्म की विभिन्न परंपराओं, मूल तिब्बती बॉन परंपरा के प्रमुखों, पुनर्जन्म हुए 115 लामाओं की धार्मिक मण्डली, प्रख्यात बौद्ध विद्वानों, निर्वासन में सभी प्रमुख तिब्बती बौद्ध संस्थानों के प्रतिनिधियों, 17 विद्वान भिक्षुणियों और हिमालयी क्षेत्र के बौद्ध आचार्यों ने भाग लेकर सामूहिक रूप से दलाई लामा संस्था की निरंतरता के लिए प्रार्थना की और परम पावन दलाई लामा पर तिब्बती बौद्ध धर्म और तिब्बती लोगों के सर्वोच्च प्राधिकार के रूप में अपने अटूट विश्वास और भक्ति का संकल्प दोहराया।
अपने धर्मपरायण, कर्म-बद्ध अनुयायियों की अगाध प्रार्थनाओं और आकांक्षाओं की ओर इशारा करते हुए परम पावन ने आज आश्वासन भरे शब्दों में कहा कि उनका स्वास्थ्य बेहतर है और वे पूरी तरह से सानंद हैं। साथ ही यह भी संकेत दिया कि अगले दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया शुरू होने में अभी समय है।
यह खबर सुनते ही बौद्ध आचार्यों की मंडली कृतज्ञता, आनंद और आशा की भावनाओं से लबरेज हो गई। सीटीए मुख्यालय के सभागार के बाहर तिब्बती अपने सबसे श्रद्धेय आध्यात्मिक धर्मगुरु, तिब्बती लोगों की हृदय और आत्मा के दुर्लभ दर्शन का जश्न मनाते हुए उनका आशीर्वाद लेने के लिए पहुंच गये।
14वें तिब्बती धार्मिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए परमपावन दलाई लामा ने कहा, ‘मैं तिब्बती बौद्ध धर्म की विभिन्न परंपराओं और मूल तिब्बती बॉन परंपरा के उन सभी प्रमुखों का अभिवादन करता हूं और उनको धन्यवाद देता हूं जो 14वें तिब्बती धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए आए हैं। मैं संबंधित धार्मिक प्रमुखों के साथ-साथ उनके प्रतिनिधियों को भी धन्यवाद देता हूं।‘
परम पावन ने प्राचीन भारतीय परंपरा, विशेष रूप से नालंदा परंपरा को श्रद्धांजलि देकर अपना संबोधन शुरू किया, जिसे उन्होंने तिब्बत में 8वीं शताब्दी से प्रचलित बौद्ध परंपरा के स्रोत के रूप में वर्णित किया।
“तिब्बत में बौद्ध परंपरा का पालन सबसे पहले नालंदा के आचार्य शांतरक्षित द्वारा दिए निर्देशों के अनुसार किया जाता है, जिन्हें 8वीं शताब्दी में ट्रिसॉन्ग डेट्सन ने तिब्बत में आमंत्रित किया था। ऐसे महान भारतीय आचार्य की कृपा और तिब्बती धर्मराज ट्रिसॉन्ग डेट्सन के कारण तिब्बती लोगों को बौद्ध धर्म की अनूठी परंपरा विरासत में मिली है, जो कि तर्क के मार्ग का अनुसरण करती है केवल पवित्र शास्त्रों का ही नहीं। परम पावन ने कहा कि धर्मराज ट्रिसॉन्ग डेट्सन ने चीन से विशेष संबंध रखने के बावजूद भारत में बौद्ध धर्म की तलाश करने का निर्णय लिया।
सॉन्ग डेट्सन के शासनकाल में ही शांतिरक्षित ने भारतीय बौद्ध साहित्य का तिब्बती में अनुवाद की परिकल्पना की और तिब्बत में पहले तिब्बती बौद्ध मठ ‘समय’ की स्थापना की, जिसका एक खंड मठ और दूसरा अनुवाद खंड था। यहीं पर बुद्ध के वचनों (तिब्बतीः काग्युर) के ग्रंथों और उस पर भारतीय आचार्यों की टीकाओं (तिबः तेंग्युर) का अनुवाद किया गया।
परम पावन ने सातवीं सदी के धर्म राजा सोंगत्सेन गम्पो के बारे में बात की, जिन्होंने तिब्बती विद्वानों को देवनागरी लिपि के आधार पर तिब्बती वर्णमाला और व्याकरण की खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया और इस तरह उन्होंने तिब्बती लिपि का आविष्कार किया। इससे भारत के कई महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथों का तिब्बती में अनुवाद करना संभव हो पाया।
‘और बाद में ट्रिसॉन्ग डेत्सेन के शासनकाल के दौरान बौद्ध साहित्य और धार्मिक साहित्य के विशाल और गहन ज्ञान को संयोजन करने वाले भारतीय ग्रंथों और साहित्य का तिब्बती में अनुवाद किया गया, जिससे तिब्बती लिपि और भाषा काफी समृद्ध हुई।‘
इन प्रतिबिंबों के बीच परम पावन ने अक्सर टिप्पणी की कि वे प्राचीन रूप से प्राचीन नालंदा के आचार्यों और विद्वानों का तिब्बती बौद्ध धर्म में योगदान के लिए ऋणी हैं।
परम पावन ने कहा, ‘मैं कहूंगा कि तिब्बती लोग वास्तव में इस तरह की धार्मिक परंपरा को पाने और उसे बनाए रखने के लिए धन्यवाद के पात्र हैं, जिसे संस्कृति का शिखर माना जा सकता है।“ “वास्तव में नालंदा परंपरा से तिब्बत में जो बौद्ध धर्म आया, उसको केवल एक धर्म के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। इसमें शैक्षणिक क्षेत्र को तर्क और मनोविज्ञान के रूप में प्रस्तुत करने की भी क्षमता है।‘
तिब्बती बौद्ध धर्म की लामावाद की पिछली धारणाओं को खारिज करते हुए परम पावन ने तिब्बती बौद्ध चिंतन विषयों के साथ गहन बातचीत में पश्चिमी वैज्ञानिकों के बीच बढ़ती रुचि को रेखांकित किया।
परम पावन ने कहा, ‘इन दिनों, वैज्ञानिकों और विद्वानों की बढ़ती संख्या अध्ययन, कारण और तर्क की तिब्बती परंपरागत स्थानों पर जोर देने की सराहना कर रही है और इस बात पर गौर फरमाया कि तिब्बती बौद्ध धर्म का तार्किक चरित्र की तुलना विज्ञान से करने योग्य है।‘
दूसरी ओर परम पावन ने यह भी कहा कि अधिक से अधिक लोग, विशेष रूप से चीनी मुख्य भूमि के लोग, यह महसूस कर रहे हैं कि तिब्बती बौद्ध धर्म बौद्ध धर्म का पूर्ण रूप है।
‘तिब्बती बौद्ध परंपरा के प्रति बढ़ती रुचि इस बात के प्रमाण हैं कि तिब्बती बौद्ध परंपरा में मानवता के कल्याण करने की क्षमता है। वैज्ञानिकों के साथ 40 से अधिक वर्षों के विचार-विमर्श और बौद्ध ग्रंथों के गहन अध्ययन के आधार पर मैंने बुद्ध के वचनों और उसन पर लिखी टीकाओं में निहित ज्ञान को तीन हिस्सों में बांटने का प्रयास किया है। ये तीन हिस्से हैं- विज्ञान, दर्शन और धर्म।‘
परम पावन ने कहा कि एक ओर जब बौद्ध धर्म आध्यात्मिक साधकों को मार्ग दिखाता है वहीं दूसरी ओर वह विज्ञान और दर्शन से अध्ययन के प्रमुख क्षेत्रों और भावनात्मक भलाई के लिए महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
इसलिए सिंहावलोकन में परम पावन ने कहा कि तिब्बत की स्वतंत्रता की हानि और इसके बाद के छह दशकों का तिब्बतियों का निर्वासन छुपे तौर पर उनके लिए वरदान साबित हुआ है। यह सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा के एक अहम तत्व तिब्बती पहचान को फिर से प्रतिष्ठित करने का अवसर साबित हुआ है।
परम पावन ने कहा, ‘यह तिब्बत के महान धर्म राजाओं, विद्वानों और आचार्यों की दूरदृष्टि और दयालुता का परिचायक है।‘ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस परंपरा के संभावित उपदेशों का पालन करते हुए तिब्बती लोग मानवता की सेवा करने के लिए अद्वितीय स्थिति में हैं।
तिब्बत में मौजूदा स्थिति पर टिप्पणी करते हुए परम पावन ने कहा कि वह तिब्बत के अंदर रह रहे तिब्बतियों के साहस और भावना की बहुत प्रशंसा करते हैं जो अत्यधिक क्रूरता और हिंसा के बावजूद अपराजित और निडर बने हुए हैं।
परम पावन ने ‘द वड्र्स ऑफ ट्रुथ’ पूजा की। जो सभी पीड़ित प्राणियों के प्रति करुणा का आह्वान है, जिसकी रचना उन्होंने 1960 में की थी और सभी से आग्रह किया कि वे उन भाई-बहनों के लिए प्रार्थना करें, जिन्होंने तिब्बती मुद्दे के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
“यह साहस का कार्य और अहिंसा की साधना है। हमें ‘द वड्रर्स ऑफ ट्रुथ’ की पूजा करते समय इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए।‘
उन्होंने कहा, ‘तिब्बत के अंदर के तिब्बती हमारी ताकत और प्रेरणा के स्रोत हैं। और इसी तरह, हम उनके प्रेरणा के स्रोत हैं। उनकी अदम्य भावना और निर्वासन में तिब्बतियों के सामुदायिक प्रयासों ने मिलकर तिब्बती निर्वासन सफलता की कहानी में योगदान दिया है।‘
परम पावन ने साठ लाख तिब्बती लोगों और चेनरेसिग के बीच विशेष कर्म संबंध की पुनः पुष्टि की और आश्वासन दिया कि तिब्बती युगों- युगों तक करुणामूर्ति बुद्ध या चेनरेसिंग द्वारा निर्देशित होते रहेंगे।
दोपहर के समय समापन सत्र आयोजित किया गया, जिसमें निर्वासित तिब्बती संसद के अध्यक्ष पेमा जुग्ने और धर्म और संस्कृति विभाग के कालोन कर्मा गेलेक युथोक ने भाग लिया।
सभा में बोलते हुए निर्वासन में तिब्बती संसद के अध्यक्ष पेमा जुग्ने ने पूर्व में आयोजित धार्मिक सम्मेलनों की शृंखला के दौरान परम पावन द्वारा प्रस्तुत सलाह के आधार पर कुछ बिंदुओं का पुनः पाठ किया।
14वें धार्मिक सम्मेलन में धार्मिक प्रमुखों और प्रतिनिधियों द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकार किए गए प्रस्तावों पर टिप्पणी करते हुए, अध्यक्ष ने कहा कि केवल यही बात सही है कि परम पावन के उत्तराधिकारी का चुनाव स्वयं परम पावन द्वारा किया जाना चाहिए और किसी दूसरे को, विशेष रूप से एक राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने के लिए इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।
धर्म और संस्कृति विभाग के कालोन कर्मा गेलेक युथोक ने सम्मेलन की सिफारिशों को पूरा करने के प्रति अपने विभाग की प्रतिबद्धता का संकल्प व्यक्त किया।
कलोन ने निष्कर्ष के तौर पर कहा, ‘परम पावन के सुझावों पर चलते हुए हमें बौद्ध दर्शन और तर्क और इसके अध्ययन को विज्ञान के साथ साझा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो आज भी प्रासंगिक है।‘