मुंडगोड। आज 22 दिसंबर की सुबह जब परम पावन दलाई लामा गैंडन जांग्त्से असेंबली हॉल में पहुंचे, वहां गैंडन के पीठाधीश शारपा और जांग्त्से चोजेस और ड्रेपंग के पीठाधीश उनके स्वागत के लिए खड़े थे। दोनों पीठाधीश परम पावन को उस हॉल में ले गए, जहां उन्होंने दर्शकों और मेहमानों को आशीर्वाद दिया, सम्यक्त्व की प्रतिमा के सामने दीप प्रज्जवलित किया। इसके बाद परम पावन को वहां सर्वोच्च पीठ पर बैठाया गया।
इसके बाद वहां पवित्र प्रार्थना हुई, जिसमें नालंदा के 17 महान आचार्यों का चरित्र का गान भी शामिल है। इसके बाद चाय और खीर का प्रसाद वितरण किया गया।
सर्वोच्च पीठ पर परम पावन के सामने गैंडन पीठाधीश शारपा और जांग्त्से के साथ पूर्व गैंडन पीठाधीश रिज़ोंग रिन्पोछे और जोनांग ग्याल्तसैप बैठे। जांग्त्से के आचार्य ने परम पावन के पीछे खड़े होकर वहां हो रहे मंत्र जाप का नेतृत्व किया। परम पावन के दाहिनी ओर लिंग रिन्पोछे, ताक्तसक कुंडे लिंग रिन्पोछे और ड्रेपंग के पीठाधीश बैठे। परम पावन की बाईं ओर तिब्बती लोकतंत्र के तीनों स्तंभों के प्रमुख- सिक्योंग, मुख्य न्यायाधीश और निर्वासित तिब्बती संसद के अध्यक्ष बैठे थे।
समारोह के औपचारिक रूप से शुरू होने से पहले परम पावन ने सभा को संबोधित किया।
उन्होंने कहा, ‘आज यहां गांडेन के दो मठों- ड्रेपंग और सेरा के भिक्षु हैं। शिक्षण के तीन पीठों के भिक्षु दीर्घ-जीवन समारोह के लिए यहां एकत्रित हुए हैं। जैसा कि मैंने कल उल्लेख किया, प्रथम दलाई लामा गेंडुन ड्रुप ने आर्य तारा से प्रार्थना की, ‘मैं सामान्य तौर पर बौद्ध धर्म और विशेष रूप से जेतसोंगखपा की परंपरा को बनाए रखने के लिए दृढ़ता से प्रयास कर सकता हूं।‘
‘हमारे पास एक तरफ मठवासी समुदाय के प्रतिनिधि हैं तो दूसरी ओर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के। चूंकि यह एक शुभ अवसर है, इसलिए मैंने इन्हें दीक्षा देने के दौरान इस धार्मिक वस्त्र को पहनने का फैसला किया है। इस अवसर पर मैंने तीनों स्तर के भिक्षुओं के वस्त्र भी धारण किया है।
‘जब तक यह आकाश है, मैं प्रार्थना करता हूं कि मैं सभी प्राणियों की मदद करता रहूं। मैं इसी तरह चार अन्य महान तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु की प्रार्थना करता हूं, मैं सभी प्राणियों के भरण-पोषण के लिए भी प्रार्थना करता हूं। मैं मनुष्यों के साथ ही प्राणी मात्र की सेवा करने के लिए खुद को योग्य बनाने की कोशिश करता हूं। उनकी मदद केवल बात करने से नहीं हो सकती है।
‘मैं मानता हूं कि मैं जितना अधिक समय तक जीवित रहूंगा, उतना ही मैं दूसरों सेवा करने और खुद का सर्वोच्च उद्देश्य पूरा करने में सक्षम हो पाऊंगा।‘ स्वयं और दूसरों के हितों को पूरा करने के लिए मैं बोधिचित्त की साधना करता हूं। मेरे लंबे समय तक जीवित रहने से दूसरों की सेवा करने का मेरा परोपकारी इरादा पूरा हो सकता है। केवल आत्मकेंद्रित होने के लिए लंबे समय तक जीने की जरूरत नहीं है। मैं आज सात अरब मानव जाति की सेवा करने के लिए दृढ़ संकल्पित हूं और इससे मुझे कई प्रकार का लाभ होता प्रतीत होता है।
‘यहां हमारे साथ मठवासी समुदाय के सदस्य हैं, सीटीए के प्रतिनिधि हैं और चीनी समुदाय के धर्म-भाई और धर्म-बहनें हैं।‘
दर्शकों की भीड़ से तालियों की गड़गड़ाहट के बीच दलाई लामा ने कहा, ‘जैसा कि मैं लंबे समय तक परोपकार की भावना से काम करना चाहता हूं, तो इसका कारण भी है। वह यह कि मैंने दीर्घ आयु तक जीने का एक सपना देखा था। उस सपने में मैंने देखा कि मैं 13 साढ़ियां चढ़ रहा हूं। इस स्वप्न का फल मैंने अपने लंबे जीवन की इस भविष्यवाणी के तौर पर लिया कि मैं 113 साल तक जीवित रहूंगा।‘ करतल घ्वनि के बीच ही उन्होंने कहा कि ‘दलाई लामा गेंडुन ड्रुप के समय से ही दलाई लामाओं और पाल्देन लहामों के बीच घनिष्ठ संबंध रहे हैं। मैंने एक दूसरा सपना देखा था, जिसमें पाल्देन ल्हामों मुझसे कह रही थीं कि तुम 110 वर्ष तक जीवित रहोगे। इस बीच ट्रुलशिक रन्पिोछे ने मुझसे थाल्तंग ग्याल्पो जितनी लंबी आयु तक जीवित रहने का अनुरोध किया। थाल्तंग ग्याल्पो के बारे में कहा जाता है कि वे 125 वर्ष तक जीवित रहे थे। मैं भी उतना जीवित रह सकता हूं।‘
उन्होंने कहा, ‘लंबे जीवन जीने के लिए कई अलग-अलग कारक होते हैं और मैं इसके लिए दृढ़ संकल्पित हूं। चूंकि मैं अपने दीर्घायु जीवन के लिए दृढ़-निश्चयी हूं, इसलिए इस दीर्घजीवन समारोह को आयोजित करने की बहुत आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘इस प्रक्रयिा में नेचुंग ओरेकल ने ममाधि में जाने की बात की थी। राजा ट्रिसॉन्ग देत्सन के समय से आचार्य शांतरक्षित और गुरु पद्मसंभव की आत्मिक भावनाएं लोगों के साथ धर्म और प्राणियों की सेवा के लिए काम कर रही हैं। धर्म के ये रक्षक भारत से आए थे। न्येनचेन थांग्ला जैसे कई अन्य आचार्य तिब्बत के स्थानीय थे। चूंकि निराकार आत्माओं का कोई रूप नहीं है, इसलिए वे केवल इतना ही कर सकते हैं। हम सब के पास भौतिक शरीर है, इसलिए हम जिस तरह के परोपकार के काम कर सकते हैं, ये आत्माएं वैसा नहीं कर सकतीं हैं।
‘इस पावन अवसर पर इस पवित्र स्थान पर, जब तक आप मेरे साथ आध्यात्मिक संबंध रखना चाहेंगे, मैं आप सभी से कहूंगा कि आप सहजता के साथ रखें।‘
मंत्रवाचक आचार्य जांग्त्से ने इसके बाद आध्यात्मिक गुरुओ (लामा चो-पा) के लिए किए गए जाप के अनुसार दीर्घायु जीवन समारोह में जाप करना शुरू किया और कई अतिथि भी इस जाप में शामिल हो गए। एक निश्चित समय पर नेचुंग ओरेकल मुख्य द्वार से हॉल में प्रवेश किए और लंबे डग भरते हुए पीठ तक आए। उन्होंने परम पावन का सम्मान के साथ अभिवान किया, उन्हें बुद्ध के शरीर, वाणी और मन- तीनों के प्रतीक स्वरुप एक मंडल भेंट की। परम पावन के साथ बातचीत करने के बाद उन्होंने पीठ की परिक्रमा की और पीठाधीश गैंडेन, उनके पूर्ववर्ती और अन्य पद धारकों के अभिवादन के लिए रवाना हो गए।
वहां से परम पावन के पास वापस आकर पहले उन्होंने उन्हें एक बहुरंगी धागे से आबद्ध एक छोटा चांदी का वज्र प्रदान किया और एक खुद अपने पास रखकर अन्य लामाओं को भी इसी तरह के वज्र वितरित किए। इसके बाद वह वज्र को अपने हृदय तक धारण कर एक स्टूल पर बैठ गए। इसके बाद वह अन्य लामाओं के साथ परम पावन द्वारा लिखी एक प्रार्थना का पाठ करने लगे, जिसमें परम पावन ने तिब्बती बौद्ध धर्म की सभी प्रमुख परंपराओं के उत्कर्ष की कामना की है। यह एक संस्कार है जो गुरु और शिष्य के बीच के बंधन को मजबूत करने का काम करता है। जब पाठ पूरा हो गया तो ओरेकल ने परम पावन का चरण स्पर्श किया और और मंदिर के एक तरफ के दरवाजे से निकल गए।
इसके बाद टोसोंग प्रसाद का वितरण किया गया। पीठाधीश गैंडन ने परम पावन से यहां लंबे समय तक प्रवास करने का औपचारिक अनुरोध किया और उन्हें बुद्ध के शरीर, वचन और मन- तीनों के प्रतीक स्वरूप एक मंडल के साथ-साथ अन्य प्रतीकों की एक शृंखला भेंट की। इसके बाद इस हॉल से एक लंबा जुलूस निकाला गया जिसमें भिक्षुओं, आम नर-नारी, विदेशी और तिब्बती लोगों ने बड़ी संख्या में शिरकत की।
इस समारोह में हुई समापन प्रार्थनाओं में ट़ुलशिक रिन्पोछे द्वारा रचित प्रार्थना भी थी जिसमें तिब्बत में अवलोकितेश्वर के अवतारों की गणना की गई है। इसका समापन दलाई लामाओं के नामगुण से होता है। एक और प्रार्थना में परम पावन के दीर्घ जीवन की कामना की गई है। इसकी रचना उनके दो अध्यापकों- लिंग रिनपोछे और त्रिजांग रिनपोछे द्वारा की गई है।
अंत में उन 298 ल्हाराम्पा गेशे को उपाधि प्रदान करने के लिए समारोह आयोजित किया गया, जिन्होंने 2017, 2018 और 2019 में स्नातक की उपाधि हासिल की है। पीठाधीश गैडेन अपने हाथों उन्हें उनके प्रमाण पत्र प्रदान किए। इसके बाद वे सब परम पावन के आसपास समूह चित्र के लिए एकत्रित हुए।
इसके साथ ही समारोह में सुबह के कार्यक्रम का समापन हुआ। इसके बाद परम पावन भवन के सबसे ऊपरी माले पर स्थित अपने कक्ष में चले गए।