दलाईलामा.कॉम, १०/जुलाई/२०१९
६ जुलाई, २०१९ के दिन मेरे जन्मदिवस के अवसर पर आप सभी के मंगल शुभकामनाओं के लिए मैं हृदय की गहराईयों से धन्यवाद देना चाहता हूँ । मैं अब ८४ साल का हो गया हूँ, लेकिन मुझे आशा है कि आने वाले अनेक वर्षों तक इस अवसर को आप सभी के साथ मना सकूँ ।
मैंने पहले भी कहा है कि यदि आप मेरे लिए जन्मदिन का उपहार बनाना चाहते हैं, तो आप सबसे अच्छा यह कर सकते हैं कि मेरी तीन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मेरे सहायक बनें- एक करुणामय समाज के निर्माण के लिए मानवीय एकता की भावना पर आधारित मानवीय मूल्यों का प्रचार करना । विश्व के विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के मध्य धार्मिक सौहार्द की भावना को बढ़ावा देना । भारत के नालन्दा विश्वविद्यालय की परम्परा को जिस भाषा में अक्षुण्ण रूप से संरक्षित किया गया है उस तिब्बती भाषा एवं उसकी संस्कृति तथा वहां की प्राकृतिक सम्पदा के संरक्षण हेतु कार्य करना ।
इसके अतिरिक्त, भारतीय पुरातन ज्ञान परम्परा के प्रति भारत के युवाओं की रुचि को पुनर्जीवित करने के लिए मैं पूरे मनोयोग से कटिबद्ध हूँ । हमें आधुनिक शिक्षा प्रणाली को और अधिक समग्र बनाने के लिए करुणा और आत्मीयता को इसमें सम्मिलित करना होगा । आज विश्व में जितने भी अराजकताओं का सामना हम कर रहे हैं ये सब लोगों में क्लेशपूर्ण भावनाओं की अतिशयता के कारण घटित हो रहे हैं जिनका सामना करना कठिन हो जाता है ।
मेरा मानना है कि प्राचीन भारतीय परम्परा में निहित चित्त और भावनाओं की समृद्ध ज्ञान आज भी प्रासंगिक है । इसे एक धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि इसका तुलनात्मक परीक्षण कर इसे एक बुनियादी मानवीय सांचे में डालना अत्यंत कल्याणकारी होगा । जिस प्रकार हम शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक शुचिता की पाठ पढ़ाते हैं उसी प्रकार हमें मानसिक शांति की प्राप्ति तथा विनाशकारी क्लेशों को दूर करने की विधियों को जानने के लिए भावनाओं की शुचिता पर कार्य करना चाहिए ।
मैं जहां भी रहता हूँ, जो इन विचारों को सुनना चाहते हैं उनके साथ इन्हें साझा करता हूँ । यदि आप सहयोग करना चाहते हैं और यदि आप ऐसा करते हैं, तो मैं आभारी रहूँगा ।
– दलाई लामा