[मंगलवार, 5 अक्तूबर, 2010 | स्रोत : tibet.net]
(वाशिंगटन डीसी , मंगलवार , 5 अक्टूबर , 2010) विशोष दूत कसुर लोदी ग्यारी ने रेडियों फ्री एशिया और वायस ऑफ अमेरिका के तिब्बती सेवा के पत्रकारों को 4 अक्टूबर की सुबह वाशिंगटन डीसी के विदेश विभाग में इंटरव्यू दिया जिसमें उन्होंने नेपाल में अमेरिकी राजदूत स्कॉट डेलिसी से अपनी मुलाकात का ब्यौरा दिया । उन्होंने बताया कि वाशिंगटन डीसी आए हुए अमेरिकी राजदूत से उन्होंने मुलाकात कर नेपाल में तिब्बतियों को प्रभावित करने वाले सभी मसलों पर बात की । इस मुलाकात के दौरान विशोष दूत ग्यारी ने 3 अक्टूबर को काठमांडू में तिब्बतियों के एक चुनाव स्थल पर नेपाली पुलिस द्वारा तिब्बतियों के खिलाफ कार्रवाई का मसला उठाया । इस बात पर चिंता जताते हुए अमेरिकी राजदूत डेलिसी को बताया कि 3 अक्टूबर की घटना चिंताजनक और खेदजनक दोनों तरह की है। उन्होंने कहा कि उनकी चिंता सिर्फ इस वजह से नहीं है कि इससे तिब्बती जूडे है, बल्कि इसका असर नेपाल के एक संप्रभु राष्ट्र के रुप में अस्तित्व पर भी पडता दिख रहा है। नेपाल अब चीन के एक स्वायत्त्शासी क्षेत्र की तरह हो गया है। उन्होंने कहा कि वह इस मामले में खासे चिंतित इस वजह से है क्योंकि नेपाल और तिब्बत के बीच दीर्घकालिक ऐतिहासिक रिश्ते है। उन्होंने बताया कि राजदूत डेलेक्सी ने इस पर चिंता जताई और कहा कि वह इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए काठमांडू स्थित अमेरिकी दूतावस से पहले से ही संपर्क में है। मीडिया में छपी इस खबरों का हवाला देते हुए जिसमें नेपाली अधिकारियों ने कहा है कि उन्होंने एक चीन नीति का पालन करते हुए यह कार्रवाई की है, विशोष दूत लोदी ग्यारी ने कहा कि तिब्बतियों के बीच चल रहा चुनाव चीन के खिलाफ नही है। उन्होंने कहा कि हुआ यह है कि चीनी अधिकारियों के निर्देश पर नेपाल ने जो कार्रवाई की है उससे तिब्बतियों की यह लोकतांत्रिक कवायद पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पता चल गई है। एक सवाल के जवाब में विशोष दूत ग्यारी ने कही कि उनको ऐसा लगता है कि इस बारे में चल रहे घटनाक्रम और संभावित कार्रवाई के बारे में अमेरिकी सरकार अन्य सरकारों के संपर्क में है। जब उनसे यह पूछा गया कि क्या इससे यह नहीं लगता कि चीनी प्रभाव नेपाल में सबसे ज्यादा हो गया है तो उन्होंने का कि वे इससे सहमत नही है। लोदी ग्यारी ने कहा कि चीन के विपरीत अमेरिका और उसके जैसी सोच वाले अन्य सरकारों नेपाल को एक संप्रभु देश मानती है और उसके साथ वैसे ही पेश आती है। इसलिए ऐसे देश नेपास को दबाने जैसा व्यवहार नहीं करते । दूसरी तरफ, चीनी अधिकारी एक तरह से नेपाल के अधिकारियों को आदेश देते है और वे नेपाल के संप्रभु देश की स्थिति का कोई सम्मान नहीं करते । उन्होंने कहा कि नेपाल में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के जितने भी प्रतिनिधि है, यह बात सबको पता है।