चीन द्वारा तिब्बत के राजकीय और सामाजिक संस्थानों में ‘नस्लीय एकीकरण’ करने के लिए पारित एक नए कानून से तिब्बतियों और बाहर के पर्यवेक्षकों के बीच चिंता बढ़ गई है। इनका कहना है कि इस कानून से तिब्बती लोगों की राष्ट्रीय पहचान उनकी ऐतिहासिक मातृभूमि में ही नष्ट हो जाएगी।
चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) की विधायिका द्वारा शनिवार को पारित और 1 मई को प्रभावी होने के लिए तैयार कानून ने तिब्बती कार्यकर्ताओं के साथ ही अमेरिकी अधिकारियों और राजनेताओं को तत्काल आलोचना के लिए प्रेरित कर दिया है। इन आलोचकों का कहना है कि तिब्बत पहले से ही अपनी संस्कृति और धर्म के चीनीकरण को लेकर अपार दबाव झेल रहा है। इस कानून से उनके बौद्ध धर्म का पालन करने और मानवाधिकारों की बिगड़ती स्थिति को सुधारने की गुंजाइश और अधिक संकीर्ण हो जाएंगी।
चीन में धार्मिक स्वतंत्रता पर नजर रखने वाली ऑनलाइन बिटर विंटर पत्रिका के निदेशक मार्को रेपिंटी ने आरएफए की तिब्बती सेवा से कहा कि चीन अब तिब्बती लोगों को चीन में वर्चस्व रखनेवाली ‘हान’ नस्ल की संस्कृति में ‘एकाकार’ करने की कोशिश कर रहा है। इसे चीन सरकार ‘चीनीकरण’ का नाम दे रही है।
उन्होंने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सभी सरकारों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका को इस सांस्कृतिक संहार के खिलाफ अपनी आवाज उठानी चाहिए और अपने सार्वजनिक बयानों में तिब्बती मुद्दे को उजागर करना चाहिए।‘
सरकारी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ‘रेगुलेशन ऑन द एस्टेब्लिशमेंट ऑफ ए मॉडल एरिया फॉर एथनिक यूनिटी एंड प्रोग्रेस इन द तिब्बत ऑटोनॉमस रिजन (तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में नस्लीय एकीकरण और प्रगति के लिए एक मॉडल क्षेत्र की स्थापना पर विनियम)’ शीर्षक वाला नया कानून सरकार के सभी स्तरों, सरकारी नौकरियों, स्कूलों, निजी व्यावसायिक कंपनियों, धार्मिक केंद्रों और सेना में गैर-तिब्बती समूहों की तिब्बतियों के बराबर भागीदारी का प्रावधान करता है।‘
यह कानून कहता है, ‘तिब्बत प्राचीन काल से ही महान (चीनी) मातृभूमि का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। यह ऐसी भाषा है जो तिब्बतियों को और भड़काती है। क्योंकि इतिहास में तिब्बत पर चीन का कब्जा बहुत ही कम समय के लिए रहा है, वह भी तब, जब 1950 में चीनी कम्युनिस्ट सैनिकों ने चीन पर आक्रमण कर उस पर कब्जा कर लिया। इसमें कहा गया है कि चीन के सभी नस्लीय समूह ‘चीनी परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य’ हैं और उन्हें राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने और अलगाववाद से निपटने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
इस बीच नए कानून का अनुच्छेद 23 में प्रावधान किया गया है कि ग्राम समितियों और स्थानीय समुदायों को ‘राष्ट्रीय एकता और प्रगति के एक मॉडल की स्थापना को मजबूत’ करना होगा। इसके साथ ही इसमें कहा गया है कि गाँव के नियमों और पारस्परिक सहयोग या संविदा का पुनर्गठन किया जाना चाहिए ताकि वे आपसी सम्मान, सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व के संबंध, एकजुटता और परस्पर सहायता करने में सक्षम हों सकें।‘
नए कानून के अनुच्छेद 11 में कहा गया है कि हर मामले में नस्लीय अल्पसंख्यक संस्कृति को एक बड़े ‘क्रांतिकारी और समाजवादी’ चीनी संस्कृति के अविभाज्य अंग के रूप में दिखना चाहिए। हालांकि, ‘चीनी संस्कृति हमेशा तिब्बत के सभी नस्लीय- जातीय समूहों का भावनात्मक समर्थन करनेवाली, आध्यात्मिक गंतव्य और आध्यात्मिक मातृ संस्कृति है।‘
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट समाचार पत्र ने 13 जनवरी को एक रिपोर्ट प्रकाशित किया था कि किन्हाई और युन्नान जैसी बड़ी तिब्बती आबादी वाले पश्चिमी चीनी प्रांतों ने पिछले साल इसी तरह के कानूनों को मंजूरी दी थी।
‘नस्लीय एकीकरण’ अनिवार्य बनानेवाले नए कानून से तिब्बत में चिंता बढ़ी
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