वाराणसी 12जनवरी:भाषा:परम पावन दलाई लामा ने कहा है कि बौद्ध छह योनियों को मानते है, जिनमें नरक, प्रेत, तिर्यक योनि को दुर्गति योनि कहा जाता है औरा देव, असुर एवं मनुष्य योनि को सुगति योनि कहते है। इन छह योनियों से मुक्त होने के बाद ही निर्वाण की प्राप्ति सम्भव है ।केन्द्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्याल, सारनाथ स्थित कालचक्र प्रांगण में आयोजित व्याख्यान में आज बौद्ध धर्म के सर्वोच्च गुरू ने कर्मफल की व्याख्या करते हुए कहा कि मनुष्य के अच्छे,बुरे कर्मो के फल का प्रभाव दूसरों पर पड़ता है । इसलिए हमें निरन्तर अच्छे कर्म ही करने चाहिए ।
उन्होंने भिक्षु के लिए हमेशा अध्ययनरत होना आवश्यक बताया । और कहा कि बौद्ध समजा में व्याप्त रूढ़ियों,अन्धविश्वासों, कुरीतियों आदि से बौद्ध को हमेशा दूर रहना चाहिए, क्योंकि ये हानिकारक तत्व है ।
उन्होंने कहा कि बोधिचित्त के द्वारा लौकिक – अलौकिक दोनों प्रकार के सुखों को प्राप्त किया जा सकता है । मानव – जीवन में चित्त- शुद्धि का अत्याधिक महत्व है । अत: इसका निरन्तर अ5यास करना चाहिए,क्यांे कि इसी के द्वारा बोधि की प्राप्ति सम्भव है ।
संसार के सभी प्राणियोंे में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है, जिससे बुद्धिरूपी रत्न प्राप्त है । अत:उस हमेशा अपनी बुद्धि का सदुपयोग करना चाहिए । जारी: