तिब्तियों के अध्यात्मिक नेता दलाई लामा करीब 75 साल के हो गये हैं। लेकिन आज भी उनमें वही ऊर्जा है। जो एक बीस साल के युवा में होती है। आज भी तिब्बति समाज उनकी ईजाजत के बिना पत्ता तक हिलाना भी मुनासिब नहीं समझता। भले ही तिब्बत के अंदर व बाहर उनकी संहत को लेकर तरह तरह के सवाल उठते हों लेकिन दलाई लामा ने आज तक कभी थकान महसूस नहीं की। उन्होंने महज सात महीनों में ही करीब 11 दौरे किये जहां सत्य अहिंसा व बौद्घ धर्म के प्रचार प्रसार की गरज से लोगों को संबोधित किया। बिगडता पर्यावरण उनकी चिंताओं में शुमार रहा है। बीते साल दलाई लामा ने भारत के बाहर बीस देशों के दौरे किये थे। जिनमें अमेरिका जापान जर्मनी ईटली कनाडा स्विटरजरलैंड व फ्रांस आदि देश प्रमुख हैं।
अपनी घुमकडी में मशगूल दलाई लामा हालांकि चीन की आंख की हमेशा ही किरकरी रहे हैं। व चीन जहां दलाई लामा जाते हैं उस देश को हमेशा ही अपने देश में उन्हें न आने देने की नसीहत देता है या विरोध जताता है। बावजूद इसके वह तिब्बत की आजादी के अंदोलन को न के वल आगे बढाते जाते हैं बल्कि बुद्घ धर्म के प्रचार प्रसार की अलख भी जगाते हैं।
ऐसा नहीं है कि दलाई लामा की धर्म अध्यात्म पर ही पकड है। वह तिब्बत की निर्वासित सरकार के आज भी सर्वेसर्वा हैं। व धर्मशाला में रह कर उसे आवशयक दिशा निर्देश भी देते हैं। निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री प्रो सोमदोंग रिन्पोचे बताते हैं कि भले सरकार को चलाने में उनका सीधा हस्तक्षेप न हो लेकिन वह ही तो हमारे सब कुछ हैं। चाहे धर्म हो या आजादी के अंदोलन में समाहित राजनिति। वह बताते हैं कि बाहरी देशों के राजनेता उनसे मिलते हैं। बीते साल अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी भारत दौरे के दौरान दलाई लामा से मिलीं थी। उम्मीद जताई जा रही है कि इसी साल अमेरिकी राष्टïरपति बराक ओबामा जब भारत आयेंगे तो वह धर्मशाला में दलाई लामा से भी मिलेंगे।
निर्वासित सरकार के एक आला अधिकारी ने बताया कि लोग उन्हें बुलाते हैं तभी वह जाते हैं लेकिन उनकी प्राथमिकता हमेशा ही शिक्षण संस्थान विशवविद्यालयों में जाने की रहती है जहां वह बौद्घ धर्म की शिक्षाओं अहिंसा शांति मानवीय मूल्यों का उत्थान आदि विषयों पर व्यख्यान देते हैं।
निर्वासित सरकार के सूचना एवं अंतरराष्टïरीय मामलों के सचिव तेनजिन पी अतीशा बताते हैं कि दलाई लामा भले ही अध्यात्मिक गुरू हों लेकिन वह पर्यावरण पर भी अपने विचार लोगों के संग साझंा करते हैं। जलवायु परिवर्तन ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन व उनकी रोकथाम प्राकरितक संसाधनों का संरक्षण जैसे विषय प्रमुख रहे हैं।
इसी साल अब तक दलाई लामा सात बार विदेश दौरे कर चुके हैं। जिनमें दो दो बार अमेरिका जापान स्लाविनिया व सिवट्जरलैंड गये। हालांकि इस साल उन्होंने भारत में भी खूब भ्रमण किया।मुंबई कोलकत्ता बोधगया दिल्ली के बाद जम्मू काशमीर के गुलाबगढ भी दलाई लामा गये। हाल ही उन्होंने लद्दाख का दौरा कठिन भागौििलक परिस्थियों में पूरा किया। इस दौरान वह पैदल भी चले।
पिछले दिनों जब लेह में भयंकर बाढ आयी तो उन्हें हिमाचल प्रदेश के जिस्पा दौरे को रद् करने की सलाह दी गयी। लेकिन वह नहीं माने व मनाली पहुंचकर उन्होंने इरादा बदलते हुये जिस्पा पहुंचने का फैसला ले लिया। यहां तक की उन्हें इसके लिये हेलिकाप्टर तक नहीं मिल पाया।
दलाई लामा के निजि कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक वह 1959 में भारत आने के बाद पहली बार 1967 में विदेश गये। 1973 में दलाई लामा ने जापान व थाईलैंड का दौरा किया था। वह पहली बार अमेरिका कनाडा की यात्रा पर 1979 में गये। यही नहीं उन्होंने महज 75 दिनों में बारह यूरोपिय देशों के दौरे किये। दलाई लामा के विदेश दौरों पर नजर रखने वाले टेंपा सेरिगं बताते हैं कि पिछले पांच सालों में दलाई लामा तेरह बार जापान 11 बार अमेरिका दस बार जर्मनी पांच बार ईटली तीन बार स्विट्जरलैंड व दो बार फ्रंास गये। उनके दौरों के दौरान बडे बुजुर्ग बौद्घ भिक्षु भी उनकी सभाओं में भाग लेते हैं जहां दलाई लामा प्रवचन देते हैं।
हर दम उनके चेहरे पर मुस्कान देखी जा सकती है। मिलने वालों से गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाना व बातचीत के दौरान किसी बात पर जोर से ठहाका लगाना उनकी आदत में शुमार है। चाहे भारत हो या भारत के बाहर दलाई लामा की नजर हमेशा ही दुनिया में घट रहे घटनाक्रम पर रहती है।दलाई लामा के निजि सहायक तेनजिन तखाला ने बताया कि वह अपने विदेश दौरे के दौरान सबसे अधिक व्यस्त होते हैं। व पन्द्रह बीस लोगों से उनका रोजाना मिलना जुलना होता है। यह सब पूर्व निर्धारित होता है।यही नहीं दलाई लामा को अक्सर हालीवुड के बदाकार रिर्चड गेर शेरोन स्टोन गोल्डी हा्रन के साथ चेरिटी के चंदा जुटाने के कार्यक्रमों में भी देखा जा सकता है।
निर्वासित सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी थुप्तेन सैंफेल ने बताया कि दलाई लामा 1991 में अमेरिकी राष्टïरपति सिनियर बुश से मिलने के बाद आज तक हर राजनेता से मिलते आये हैं। बराक ओबामा से वह 18 फरवरी को मिले थे । इससे पहले बिल किलंटन व जार्ज से वह कई मर्तबा मिले थे। फ्रांस के राष्टïराध्यक्ष निकोलस सरकोजी 6 दिसंबर 1968 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री गार्डन ब्राऊन से 23 मई 2008 और केनिडियन प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर से 29 अक्तूबर 2007 व जर्मन की चांसलर अंजेला मार्कल से वह दो साल पहले 23 सितंबर को मिले थे।
कुछ माह पहले तिब्बत में जब भूकंप आया व उसकी जद में हजारों जानें आ गई थीं। तो उनकी आंख भर आयी थी। व उन्होंने तिब्बत में जाने की इच्छा जताई तो उसे चीनी शासकों ने ठुकरा दिया था।
बहरहाल दलाई लामा को पिछले दिनों उस समय शर्मिंदगी भी उठानी पडी थी जब साऊथ अफ्रिका की सरकार ने चीनी सरकार से अपने निकट संबधों की वजह से उन्हें वीजा देने से मना कर दिया था। उन्हें इक्कीस साल पहले नोबेल शातिं पुरूस्कार से भी नवाजा गया था। तिब्बत की आजादी के लिये गांधीवादी विचारधारा के साथ अंदोलन को अहिंसा के रास्ते पर आगे बढाने के उनके प्रयासों का हर कोई मुरीद है। दलाई लामा जो हमेशा ही मध्यमार्गी निति के हिमायती रहे हैं चाहते हैं कि चीन तिब्बत को स्वायत्ता दे । लेकिन चीन इसे उसकी संप्रभुसता को खतरा बताते हुये कहता है कि वह तिब्बत को छिन्न भिन्न करना चाहते हैं। दलाई लामा की निर्वासित सरकार को हालांकि किसी भी देश से मान्यता नहीं मिल सकी है।करीब छह करोड तिब्बती तिब्बत के अंदर रहते हैं। जबकि डेढ लाख निर्वसन में अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं। जिनमें एक लाख तो भारत के विभिन्न प्रांतों में रहते हैं।
दलाई लामा करीब 75 साल के हो गये हैं। लेकिन आज भी उनमें वही ऊर्जा है। जो एक बीस साल के युवा में होती है
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