तिब्बत समर्थक भारतीय संगठनों ने लिया जोरदार संघर्ष का संकल्प
प्रो0 श्यामनाथ मिश्र
पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खेतड़ी (राजस्थान)
तिब्बत समर्थक भारतीय संगठनों (तिब्बत सपोर्ट ग्रुप) के नवबंर, 2022 में सम्पन्न अखिल भारतीय सम्मेलन में सर्वसम्मति से संकल्प लिया गया है कि तिब्बती संघर्ष को और अधिक सुव्यवस्थित तथा प्रभावी किया जायेगा। भारत तिब्बत मैत्री संघ, भारत तिब्बत संघ एवं भारत तिब्बत सहयोग मंच समेत सभी तिब्बत समर्थक संगठनों ने आपसी समन्वय को अधिकाधिक सुदृढ़ करते हुए संघर्ष को आगे बढ़ाने का निष्चय व्यक्त किया। तिब्बत की निर्वासित सरकार, जो कि वास्तव में लोकतांत्रिक तरीके से मतदान द्वारा तिब्बतियों की निर्वाचित सरकार है, के राजप्रमुख (सिक्योंग) माननीय पेम्पा त्सेरिंग ने अपने संबोधन में बलपूर्वक स्पष्ट किया कि तिब्बत समस्या का समाधान भारत के व्यापक हित में है। भारत को चाहिये कि चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता में तिब्बत के प्रष्न को भी प्रमुखता से उठाये। हिमालय परिवार के संयोजक तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ अधिकारी माननीय इन्द्रेष कुमार ने तिब्बत संबंधी अमरीकी नीति की सराहना की और उसे अमरीकी हित में बताया। उन्होंने सलाह दी कि भारत सरकार उस नीति का अनुकरण नहीं करे, क्योंकि भारत की स्थिति, आवष्यकता तथा राष्ट्रीय शक्ति अमरीका से भिन्न है। भारत अपनी भौगोलिक स्थिति, आवष्यकता और राष्ट्रीय शक्ति के अनुरूप तिब्बत संबंधी नीति अपनाये तो उचित और व्यावहारिक होगा।
सम्मेलन में भारत की शांति, सुरक्षा, समृद्धि और स्वाभिमान के संदर्भ में भारत तिब्बत मैत्री संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. आनंद कुमार ने स्पष्ट किया कि तिब्बत के सवाल पर भारत की विभिन्न विचारधाराओं से जुड़े संगठन एकजुट हैं। तिब्बत के पूर्व राज्याध्यक्ष तथा बौद्ध धर्मगुरु परमपावन दलाई लामा के योगदान की विषेष रूप से चर्चा करते हुए उन्होंने भारतीय संसद में उन्हें आमन्त्रित करने और उनके विचार सुनने की मांग की।
हिमाचल प्रदेष केन्द्रीय विष्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा चिंतक प्रो. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री के मतानुसार चीन की तुलना में भारत अपनी राष्ट्रीय शक्ति में लगातार विस्तार करे तभी चीन की उपनिवेषवादी नीति पर रोक लगेगी। उन्होंने भारत पर चीनी आक्रमण की याद दिलाते हुए भारतीय संसद के 14 नवबंर, 1962 के उस सर्वसम्मत प्रस्ताव पर प्रकाष डाला जिसमें भारतीय भूभाग को चीनी चंगुल से मुक्त कराने का संकल्प लिया गया है। उन्होंने सप्रमाण कहा कि वर्तमान भारत सरकार विस्तारवादी चीन सरकार के विरूद्ध अडिग खड़ी है।
तिब्बत समर्थक सभी संगठनों ने निष्चय किया है कि वे भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों,जैसे-विद्यार्थी,युवा,महिला,पूर्वसैनिक,जनप्रतिनिधि,पूर्वअधिकारी-कर्मचारी,अधिवक्ता तथा अन्य स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर तिब्बत में जारी क्रूर चीनी नीति का पर्दाफाष करेंगे और बतायेंगे कि इससे भारत की क्षति हो रही है। तिब्बत में पर्यावरण के विनाष तथा वहाँ की प्राकृतिक संपदा की बर्बादी से भारतीय पर्यावरण को गंभीर खतरा है। चीन सरकार तिब्बत की पहचान मिटाने में लगी है। ‘‘संसार का तीसरा ध्रुव’’ कहलाने वाले तिब्बत में ग्लेसियर सिकुड़ते और घटते जा रहे हैं। यह पूरे विष्व के लिये, विषेषकर एषियाई देषों के लिये चिंताजनक है क्योंकि तिब्बत से निकलकर अनेक नदियाँ विभिन्न देषों में जाती हैं। तिब्बत में अनेक नदियों पर ऊँचे बांध बनाकर एवं उनकी धारायें बदलकर चीन तिब्बत के जल-स्रोत का इस्तेमाल पड़ोसी देषों में ‘‘लिक्विड बम’’ अर्थात ‘‘वाटर बम’’ की तरह कर रहा है। अपनी इच्छानुसार वह पड़ोसी देषों में ‘‘सूखा या बाढ़’’ ला सकता है। भारतीय तिब्बत समर्थक संगठनों की मांग है कि विष्व समुदाय चीन की पर्यावरण विरोधी गतिविधि पर रोक लगाये।
तिब्बत समर्थक भारतीय संगठनों का नारा है- स्वतंत्र तिब्बत सुरक्षित भारत। लेकिन तिब्बती समुदाय चीन से तिब्बत को ‘‘वास्तविक स्वायत्तता’’ की मांग कर रहा है। दलाई लामा तथा निर्वासित सरकार को चिंता है कि चीन द्वारा तिब्बत की पहचान मिटा देने के बाद पूर्ण स्वतंत्रता भी महत्वहीन हो जायेगी। ऐसी दषा में मध्यममार्ग नीति पर जोर देते हुए उनका कहना है कि चीन सरकार अपने संविधान एवं राष्ट्रीयता कानून के अनुसार वैदेषिक मामले तथा प्रतिरक्षा अपने पास रखे और अन्य सभी विषयों, जैसे- कृषि, षिक्षा आदि पर कानून बनाने का अधिकार तिब्बतियों को दे दे। इससे संप्रभुता सम्पन्न चीन के अंतर्गत तिब्बतियों को स्वषासन का अधिकार मिल जायेगा।
सम्मेलन में कैलाष-मानसरोवर यात्रा को चीन द्वारा आर्थिक कमाई का साधन बनाने की तीखी आलोचना करते हुए विष्वास व्यक्त किया गया कि तिब्बत समस्या का समाधान होते ही हम भारतीय कैलाष-मानसरोवर की निःषुल्क यात्रा बेरोकटोक कर सकेंगे। पूर्व में ऐसा ही था। उस समय तिब्बती भी भारत में बौद्ध स्थलों का भ्रमण स्वतंत्रतापूर्वक करते थे। सम्मेलन में चीन की सीमा के रूप में चीन की दीवार का जिक्र करते हुए चीन की दीवार के बाहर के क्षेत्र को चीन का अवैध कब्जा बताया गया।
तिब्बत समर्थक भारतीय संगठन तिब्बती समुदाय की मध्यममार्ग नीति के अनुकूल तिब्बती संघर्ष के साथ हैं। वे दलाईलामा के शांति-अहिंसा के विचार के साथ आंदोलन कर रहे हैं। चीन सरकार को चाहिये कि वह विष्वजनमत का सम्मान करते हुए दलाईलामा एवं तिब्बत सरकार के प्रतिनिधिमंडल के साथ पुनः वार्ता प्रारंभ करे। वार्ता ही सर्वोत्तम उपाय है। इसके लिये वह उपयुक्त वातावरण का निर्माण करे। तिब्बत में मानवाधिकरों का सम्मान, तिब्बती पर्यावरण एवं प्राकृतिक संपदा का संरक्षण-संवर्धन तथा तिब्बत के इतिहास का प्रामाणिक लेखन जरूरी है। चीन अपनी हठधर्मिता छोड़े तो उसका भी हित होगा। वह तिब्बत समर्थक देषांें, संगठनों तथा व्यक्तियों को धमकाना बंद करे।