OMMCOM NEWS : बीजिंग में हाल ही में संपन्न हुए शीतकालीन ओलंपिक खेल कई कारणों से चर्चा में रहा। इस दौरान एक रूसी बायथलॉन प्रतिभागी ने सोशल मीडिया पर अल्प और बेस्वाद भोजन के बारे में अपनी शिकायत दर्ज कराई तो एक अन्य रूसी खिलाड़ी ने प्रतिबंधित पदार्थ के लिए पॉजिटिव रिपोर्ट पाए जाने के बाद विवाद खड़ा कर दिया। जिन पत्रकारों ने पहली बार रूसी स्केटर कामिला वलीवा के पॉजिटिव ड्रग्स परीक्षण की कहानी की रिपोर्ट की, उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई और उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया।
अपने प्रदर्शन के दौरान गिर गईं चीन की विख्यात स्केटर झू यीको जबरदस्त विरोध और घृणास्पद पोस्ट का सामना करना पड़ा।इस कारण चीन में वीबो और डॉयिन सहित सोशल मीडिया दिग्गजों को हजारों पोस्ट हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन शायद सबसे महत्वपूर्ण घटना संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में कुछ देशों द्वारा शीतकालीन ओलंपिक खेलों का राजनयिक बहिष्कार था, जो चीन के उग्यूर मुसलमानों के खिलाफ झिंझियांग क्षेत्र में मानवाधिकारों के ‘गंभीर’उल्लंघन के कारण किया गया था।
दरअसल, ‘वर्ल्ड रिपोर्ट २०२२’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच ने चीन पर कोविड प्रतिबंधों की आड़ में झिंझियांग और हांगकांग में नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के निर्मम दमन का आरोप लगाया है।
चीन की मुस्लिम आबादी का यह व्यवस्थित दमन और ‘पुनर्शिक्षा’ कार्यक्रम राष्ट्रपति शी जिनपिंग के चीनीकरण अभियानका नए सिरे से भव्य डिजाइन का एक छोर मात्र है। यह एक ऐसा शब्द है जो व्यंजना से एक ऐसी प्रक्रिया को दर्शाता है जिससे गैर-चीनी समाज चीनी संस्कृति के प्रभाव में आ जाते हैं। हालांकि व्यवहार में वास्तविकता बहुत कठोर और अधिक अप्रिय है।
उदाहरण के लिए उग्यूरों और अन्य तुर्क मुसलमानों की विशिष्ट पहचान को मिटाने के लिए चीनी सरकार के प्रयासों को लें। पिछले साल जनवरी में सैटेलाइट तस्वीरों की जांच करने वाली सीएनएन की एक जांच ने निष्कर्ष निकाला कि १००से अधिक पारंपरिक उग्यूर कब्रिस्तान नष्ट कर दिए गए थे। अगस्त में उपग्रह तस्वारों से पता चला कि झिंजियांग के अधिकारियों ने २६०से अधिक ‘विशाल’नजरबंदी केंद्रों का निर्माण किया था, जो तुर्क मुसलमानों की मनमानी हिरासत के आरोपों की विश्वसनीयता को बल देता है। ये तस्वीरें बड़े पैमाने पर मस्जिदों के पुनर्निर्माण की ओर भी इशारा करती है जहां कई जगहों पर गुंबदों और मीनारों को हटा दिया गया है।
यही कहानी तिब्बत में दोहराई जाती है जहां चीन के निरंतर अधिनायकवाद ने हजारों तिब्बतियों को उनके आध्यात्मिक नेता १४वें दलाई लामा के साथ प्रगतिशील समाजों में शरण लेने के लिए मजबूर किया है। १९५० में एक अकारण आक्रमण के साथ शुरू हुई चीनी सेना द्वारा तिब्बत की तबाही को हेनरिक हैरर के संस्मरण ‘सेवन इयर्स इन तिब्बत’ में विस्तार से वर्णन किया गया है, जिसे लेकर बाद में एक फीचर फिल्म बनाया गया। इस फिल्म को पुरस्कार भी मिला था।
सत्तर साल बाद भी चीजें ज्यादा नहीं बदली हैं और अब तिब्बतियों को चीन के बर्बर दमनकारी शासन का सामना करना पड़ रहा है। दलाई लामा ने नवंबर २०२१ में इसके ‘संकीर्ण दिमाग वाले चीनी कम्युनिस्ट नेताओं’ द्वारा ‘कठोर नियंत्रण’ के बारे में बात की थी। संयोग से१० मार्च तिब्बत विद्रोह दिवस की ६३वीं वर्षगांठ थी, जिसमें १९५९ में हजारों तिब्बती चीनी आक्रमण के विरोध में एकत्र हुए थे। इस शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन को चीनी सरकार द्वारा हिंसक रूप से कुचल दिया गया था।
हांगकांग की भी ऐसी ही कहानी है जहां लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं को व्यवस्थित रूप से कठोर कानूनों के तहत निशाना बनाया जाता है। आंतरिक मंगोलिया में,जहां ४० लाख नस्लीय मंगोल अल्पसंख्यक हैं, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने कम कठोर लेकिन फिर भी दमनकारी उपाय अपनाए हैं।
अक्तूबर २०२०मेंचीनी सरकार ने फ्रांस में मंगोल इतिहास और संस्कृति पर एक प्रदर्शनी को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया। इसके बाद उस संग्रहालय के निदेशक ने शिकायत की कि ‘एक नए चीनी राष्ट्रीयतावादी विचार के तहत मंगोलियाई इतिहास और संस्कृति को पूरी तरह से मिटाने के उद्देश्य से इतिहास के पुनर्लेखन के लिए तत्व प्रवृत्त’ हैं। इससे पहले अप्रैल मेंशी जिनपिंग ने आंतरिक मंगोलिया के एक प्रतिनिधिमंडल को ‘परिणाम’ भुगतने की चेतावनी दी थी। असल में आंतरिक मंगोलिया ने स्कूलों में शिक्षा के माध्यम मंगोलियाई भाषा को हटाकर चीनी भाषा थोपने का विरोध किया था।
चीन न केवल नस्लीय रूप से अल्पसंख्यकों, बल्कि मुख्यधारा के असहमत समूहों को भी चुप कराने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करता है। विख्यात पुरुषों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के लिए अधिक महिलाओं के सामने आने के बाद चीन में #MeToo आंदोलन नए रूप और आकर्षण के साथ सामने आया है। नवंबर २०२१ में पूर्व उप-प्रधानमंत्री झांग गाओली पर यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाने के बाद टेनिस स्टार पेंग शुई को चुप करा दिया गया और बाद में वह लापता भी हो गईं।
अलीबाबा के संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष जैक मा जनवरी २०२१ के बाद से कभी सार्वजनिक तौर पर दिखाई नहीं दिए हैं। इससे उनके लापता होने के बारे में अटकलें लगाई जा रही हैं क्योंकि उन्होंने एक भाषण में चीन के वित्तीय नियामकों और बैंकों की आलोचना की थी। यह भी अफवाह है कि उन्हें अधिकारियों द्वारा पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था।
कोविड -१९ के बाद में वुहान की वर्षगांठ के आसपास सरकारी आधिकारिक व्याख्यायों पर सवाल उठाने वाली आवाजों को बंद कराने और सरकारी बयानों के पक्ष में लाने के लिए सीसीपी की सेंसरशिप लगाई गईं हैं। कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया और वायरस से मरने वाले लोगों के मुखर रिश्तेदारों को परेशान किया गया। विदेशी मीडियाकर्मियों को नियमित रूप से तथ्यों की रिपोर्टिंग करने से रोका गया है, जैसा कि हाल ही में जुलाई २०२१ में झेंग्झौ में बाढ़ की रिपोर्टिंग से उन्हें रोकने की घटना से स्पष्ट हो जाता है।
संक्षेप में, चीनीकरण अभियानके तीन चरण हैं- पहला धर्म का चीनीकरण। यह ‘चीनी विशेषताओं’के साथ बौद्ध धर्म और इस्लाम को ‘पुन: शैलीबद्ध’करने के चीनी प्रयासों में स्पष्ट है। दूसरा, वैचारिक ‘पुनर्शिक्षा’ कार्यक्रम। इसका अर्थ है नस्लीय पहचान को खत्म करना और कम्युनिस्ट विचारधारा को थोपना। यह ‘पुनः शिक्षा’ स्पष्ट रूप से प्रभावशाली दिमाग वाले बच्चों के दिमाग को मोड़कर करके स्कूलों में शुरू होगी। तीसरा,चीन असंतुष्टों को अलग-थलग कर देगा। यह ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाने, इंटरनेट पर पुलिसिंग, लोकप्रिय नेताओं को बंदी बनाने, अंतरराष्ट्रीय मंचों को मान्यता देने से इनकार करने और गलत सूचनाओं का एक जाल बुनने सहित प्रतिबंध लगाने जैसी कार्रवाइयों द्वारा किया जाता है।
दुनिया को क्यों सावधान रहना चाहिए?
यह मान लेना बहुत बचकानी बात होगी कि शी जिनपिंग ने जिस सांस्कृतिक और वैचारिक ‘आत्मसात’ की प्रक्रिया शुरू की है, वह केवल चीन तक ही सीमित रहेगी। निश्चित रूप से ‘चीनीकरण’ का शुरुआती ध्यान वास्तव में चीन के भीतर असंतुष्ट अल्पसंख्यकों पर है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि चीन अपनी प्लेबुक से दूसरे देशों में भी संशोधनों के साथ इन नियमों को लागू कर रहा है। अतिसंवेदनशील देशों को प्रभावित करने के लिए आर्थिक ताकत का उपयोग एक प्रमुख हथियार है। दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में चीन ने जो पैठ बनाई है, उससे यह स्पष्ट है। आर्थिक शक्ति से लैस सीसीपी मशीनरी धीरे-धीरे दुनिया को अपनी पसंद के फ्रेम में फिर से फिट करके नया आकार दे रही है।
वर्तमान में दुनिया भर में अनुमानित ११० लाख चीनी प्रवासी फैले हुए हें जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा नस्लीय प्रवासी समूह है। अन्य नस्लीय प्रवासियों के विपरीत चीनी प्रवासी न केवल चीन की संस्कृति और भाषा का प्रचार करते हैं, बल्कि वे व्यावसायिक उद्देश्यों, आर्थिक विकास और राजनयिक उद्देश्यों के लिए भी अपने प्रभाव को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
परंपरागत रूप से वे अपने सदस्यों के भीतर संबंधों को बढ़ाने और एक नए देश में घर जैसा महसूस करने के लिए बड़े समुदाय बनाते हैं। एक मुख्य चुनौती आर्थिक स्तर पर है।चीनी प्रवासियों के व्यापार की शक्ति में वृद्धि हुई है और कभी-कभी इसने मेजबान देश की अर्थव्यवस्था को भी मात दे दी है। उदाहरण के लिए, दक्षिण-पूर्व एशिया में चीनी प्रवासी व्यवसाय पर हावी हैं।जबकि वे वहां की आबादी का केवल एक छोटा सा अल्पसंख्यक हिस्सा हैँ। लेकिन वे इस क्षेत्र की निजी कॉरपोरेट संपत्ति के लगभग ६० प्रतिशत हिस्से पर काबिज हैं।
चीन अपने ‘चीनीकरण’ प्रयास में एक हद तक सफल रहा है। इसने कई देशों को भारी मात्रा में ऋण देकर खामोश करा दिया है जो अब बढ़ते कर्ज के जाल में फंस गए हैं। इससे अंततः कई ऋणी देश अपनी संप्रभु निर्णय लेने की क्षमता का त्याग करेंगे और सीसीपी के प्रति निष्ठावान होने का जोखिम उठाएंगे। पाकिस्तान जैसा इस्लामी देश उग्यूरों पर किए गए क्रूर दमन का विरोध क्यों करेगा। ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई)’ चीनी श्रमिकों के बाहरी प्रवाह और दुनिया भर के कमजोर क्षेत्रों में ऋण के साथ चीन की ‘चीनीकरण’ करने की रणनीति को बढ़ावा देगा। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, दुनिया को सीसीपी के कपटपूर्ण मंसूबों से सतर्क हो जाना चाहिए।