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पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में १५ जून, २०२० को चीन और भारत के सैनिकों के बीच हुआ संघर्ष १९६२के बाद से दोनों देशों के बीच सबसे घातक सैन्य संघर्षों में से एक माना जाता है। गलवान घाटी में उस आमने-सामने के संघर्ष में भारत को लगभग २० सैनिकों की जान गंवाए लगभग डेढ़ साल हो चुके हैं। पिछले कुछ सालों से चीन भारत-तिब्बत सीमा पर रक्षा गांवों की एक शृंखला बनाकर भारत को घेरने के लिए नई रणनीति बना रहा है। भारत को इस मामले में अपनी क्षेत्रीय अखंडता और राष्ट्रीय सुरक्षा की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। भविष्य में चीन की यह चाल दुनिया की सबसे ऊंची जमी हुई सीमा- हिमालय में जनसांख्यिकीय पैटर्न को बदल सकती है।
तिब्बत पर आक्रमण करके चीन ने भारत और तिब्बत के बीच की पारंपरिक सीमाओं को जबरदस्ती चीन-भारतीय सीमा में बदल दिया है। तब से, दो एशियाई दिग्गजों के बीच सीमा पर हजार से अधिक बार झड़पें हो चुकी हैं। दो-दो बार (१९५४में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा, और २००४में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा) भारत द्वारा तिब्बत को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का अभिन्न अंग मान लेने के बावजूद, चीनी नेताओं ने हमेशा तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन में भारत की भूमिका को संदेह की नजरों से देखा है। इसके अलावा भारत-तिब्बत सीमा पर चीन-भारत संघर्ष एशिया के सबसे लंबे भू-राजनीतिक विवादों में से एक है। चीन-भारत संघर्ष को हल करने में तिब्बत महत्वपूर्ण कारक है।
१४ मार्च, २०१३ को जब शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति बनेतो उन्होंने तिब्बत में घरेलू स्थिरता और इसकी कल्पित सीमाओं की सुरक्षा को अत्यधिक महत्व दिया। इसके बादचीनी प्राधिकरण ने इस बात पर जोर दिया है कि ‘तिब्बत का विकास पार्टी और देश के समग्र विकास से जुड़ा हुआ है। इसलिए मातृभूमि में तिब्बत के पुनर्मिलन और राष्ट्रीय एकता की रक्षा के लिए तिब्बत पर ध्यान देना जरूरी होगा।‘ राष्ट्रीय एकता की रक्षा और मातृभूमि में पुनर्मिलन के लिए अपनी तिब्बत नीति को बनाए रखते हुए चीन ने २०२० में सातवें तिब्बत कार्य मंच के दौरान राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए ‘तिब्बत में स्थिरता बनाए रखने’ के महत्व को फिर से मजबूत किया है।
तिब्बत की सीमाओं की रक्षा और उसकी स्थिरता को सुरक्षित करने के लिएचीन ने हिमालय की सीमाओं के पार सीमा रक्षा गांवों की एक शृंखला बनाई है जो भारत, नेपाल और भूटान की सीमाओं से लगती हैं। ये गांव तिब्बत में चीन के विकास की उपलब्धि को दिखाने और साथ-साथ सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए चीन के ‘गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम’ के तहत बसाए गए हैं। असल में, तिब्बत के सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का निर्माण और अच्छी तरह से डिजाइन किए गए सीमावर्ती गांवों को दोहरे उपयोग के लिए बसाया गया है। यहां पर बुनियादी ढांचे का विकास सीमा पार आवाजाही की निगरानी के लिए सीमा चौकी के रूप में कार्य करने और हिमालय की सीमाओं पर नो-मैन लैंड की भूमि पर कब्जा करने की नीयत से किया जा रहा है। प्रोफेसर डावा नोरबू और क्लाउड अर्पी दोनों ने तिब्बत में बुनियादी ढांचे के विकास के दोहरे उपयोग पर लिखा है। सड़कों और रेलवे लाइनों का अच्छा नेटवर्क चीन को तिब्बत के सीमावर्ती क्षेत्रों में अपनी सेना को तैनात करने में आसान पहुंच प्रदान करता है।
चीन के तथाकथित तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) की २०१७की कार्य रिपोर्ट के अनुसार, चीनी सरकार ने ‘अच्छी तरह से गांवों के निर्माण और साथ-साथ इन गांवों में तिब्बतियों के पुनर्वास’ नाम से ग्रामीण कायाकल्प कार्यक्रम शुरू किए हैं। तिब्बत की सीमा पर लोगों को बसाने और सीमा रक्षा गांवों के निर्माण का फैसला भी अक्तूबर २०१७में १९वीं पार्टी कांग्रेस में लिया गया था, जिसमें शी जिनपिंग ने ‘प्रतिभाशाली चीनी लोगों को नस्लीय तौर पर अल्पसंख्यक आबादी वाले दूरदराज और सीमावर्ती क्षेत्रों में काम करने के लिए’ कहा था।
जुलाई २०१७ में टीएआरने ‘तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के सीमावर्ती क्षेत्रों में समृद्ध गांवों के निर्माण की योजना (२०१७-२०२०)’ नामक नीति दस्तावेज जारी किया था। इसमें २१ सीमावर्ती काउंटियों के ११२सीमावर्ती टीएआर कस्बों में ६२८ सीमावर्ती गांवों के निर्माण की योजना शामिल थी। यह पूरा क्षेत्र शिगात्से, ल्होखा, न्यिंगची और न्गारी प्रान्तों में स्थित हैं। चीन ने ल्होखा में ३५४ सीमावर्ती गांवों का निर्माण किया है जो भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश और भूटान की सीमाओं से सटे हुए हैं। चीन का दावा है कि अरुणाचल प्रदेश चीन का अभिन्न अंग है। इन गांवों का निर्माण सीमावर्ती क्षेत्रों में भविष्य के कस्बों और शहरों के लिए आधार तैयार कर सकता है।
चीनी सरकार ने तिब्बत में ६२८ सीमावर्ती गांवों के निर्माण के लिए लगभग ३०.१ अरब आरएमबी (लगभग ४.६ अरब डॉलर) आवंटित किया है। आवंटित बजट में आवास सुविधाओं, बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक सेवा सुविधाओं का निर्माण भी शामिल है। इन ६२८ प्रशासनिक सीमावर्ती गाँवों में से ४२७ प्रथम-पंक्ति के सीमावर्ती गांव और २०१ दूसरी-पंक्ति के सीमावर्ती गांव हैं। पहली पंक्ति के सीमा रक्षा गांव वास्तविक नियंत्रण रेखा के निकट या उसके पार बने हैं, जिनका भारत, नेपाल और भूटान पर प्रत्यक्ष और सीधा भू-राजनीतिक प्रभाव पड़ता है। दूसरी पंक्ति के सीमा रक्षा गाँव तिब्बत के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित हैं। लोगों को वहां बसने के लिए प्रोत्साहित करने के लिएचीनी प्राधिकरण ने सीमावर्ती गांवों के निवासियों को उनके स्थायी बंदोबस्त के लिए अनुकूल वातावरण और आकर्षक सब्सिडी की सुविधा प्रदान की है। पहली पंक्ति के गांवों के निवासियों को ४७,००० आरएमबी प्रदान किए जाते हैं और दूसरी पंक्ति के गांवों को वार्षिक सब्सिडी के रूप में ४५०० आरएमबी दिए जाते हैं।
टीएआर के कार्यकारी उपाध्यक्ष जियांग जी ने ‘आटोनॉमस रिजन स्ट्रॉग फ्रंटियर वर्क कंफ्रेंस (स्वायत्त क्षेत्र मजबूत सीमावर्ती कार्य सम्मेलन)’ में एक विशेष बैठक की अध्यक्षता की, जो दिसंबर २०२० में द्रोमो काउंटी के शिगात्से शहर के यतुंग में आयोजित की गई थी।इस बैठक में अच्छी तरह से सीमावर्ती गांवों के निर्माण की प्रगति का निरीक्षण किया गया था। बैठक में बताया गया कि परियोजना का ९४ प्रतिशत दिसंबर २०२० तक पूरा हो गया था और ९३ प्रतिशत आवंटित धन का उपयोग किया जा चुका था। इस तरह से चीन ने अब तक ६२८ सीमा रक्षा गांवों का निर्माण पूरा कर लिया है।
ये सीमा रक्षा गांव पूरा होने के बाद सीमा चौकी के रूप में कार्य करेंगे और हिमालय में सीमाओं का विस्तार और सीमा को सुरक्षित करने की दिशा में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के कान और आंख बन जाएंगे। रणनीतिक रूप से सीमा रक्षा गांवों की पहली पंक्ति के निर्माण से चीन को हिमालयी क्षेत्रों में विवादित क्षेत्रों पर अपने दावों की पुष्टि करने में मदद मिलेगी, जिस पर बीजिंग लंबे समय से तिब्बत की पांच अंगुलियों के रूप में दावा करता आ रहा है।
लेखक धर्मशाला में तिब्बत नीति संस्थान में रिसर्च फेलो हैं। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से अंतरराष्ट्रीय संबंध विषय में पीएचडी की है।