कर्मा तेनजिंग, एशिया टाइम्स
मानव के समग्र विकास के लिए शिक्षा का होना जरूरी है। किसी देश की शिक्षा नीति का निर्माण का मूल उद्देश्य उसके अपने लोगों के कल्याण और उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप समाज के व्यापक विकास को महत्व देना होता है। हालांकि, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना द्वारा तिब्बत में शुरू की गई शिक्षा नीति 19वीं और 20वीं शताब्दी की औपनिवेशिक शिक्षा नीतियों के समान है जिसका उद्देश्य वहां के स्थानीय निवासियों का मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक परिवर्तन करना है।
द्विभाषी शिक्षा नीति को अक्सर उपनिवेशवाद के साथ जोड़ा जाता है। ऐसा दो कारणों से किया गया- स्थानीय लोगों को गुमराह करने के लिए और उपनिवेशवादियों को प्रशासनिक सुविधा प्रदान करने के लिए। इस मुहावरे का प्रयोग जिस तरह से किया गया उसकी परिणति आज की दुनिया में अंग्रेजी भाषा के व्यापक उपयोग से प्रदर्शित होती है।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपने प्रति लोगों को वफादार बनाने के लिए उन्हें राजनीतिक रूप से प्रेरित करने के लिए शिक्षा का उपयोग करती है। कैटरीना बास द्वारा लिखी ‘एजुकेशन इन तिब्बत पॉलिसी एंड प्रैक्टसि सिंस 1950’ पुस्तक के अनुसार विशाल चीनी आबादी को ध्यान में रखते हुए माओ त्से तुंग ने अपने लोगों को शिक्षित करने की बात आने पर गुणवत्ता के बजाय मात्रा पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। ऐसा इसलिए क्योंकि मात्रात्मकता की रणनीति वैचारिक, क्रांतिकारी प्रशिक्षण को प्राथमिकता देती है, जबकि गुणवत्ता की रणनीति, अकादमिक और तकनीकी शिक्षा पर जोर देती है।
1950 के दशक में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद शुरु में तिब्बत में ‘मात्रात्मक शिक्षा’ नीति के तहत समाजवाद और साम्यवाद के विचारों से जनता को शिक्षित करने का काम शुरू हुआ। हालांकि, 1970 के दशक के अंत में देंग जियाओ पिंग के पीआरसी के नेता बनने पर वहां इस नीति को बदल दिया गया और ‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ शुरू हुई। इस नई शिक्षा नीति को तिब्बत में भी लागू किया गया था।
हालांकि ष्गुणवत्तापूर्ण शिक्षाष् ने चीन को जबरदस्त आर्थिक लाभ पहुंचाया है, लेकिन यह तिब्बतियों के लिए सांस्कृतिक रूप से हानिकारक रहा है। चीनी भाषा को वरीयता देने के साथ तिब्बतियों को द्विभाषी शिक्षा ग्रहण करने के लिए मजबूर किया गया। तिब्बतियों को अपनी भाषा को संरक्षित करने के प्रति हतोत्साहित किया गया। भले ही पीआरसी के संविधान के अनुच्छेद-4 में तिब्बत, भीतरी मंगोलिया और झिंझियांग सहित तथाकथित अल्पसंख्यक क्षेत्रों को द्विभाषी शैक्षिक अधिकार प्रदान किए गए हैं।
चीन के हान क्षेत्रों की तुलना में अल्पसंख्यक क्षेत्रों में शिक्षा नीति की अलग ही प्राथमिकता है। बास लिखती हैंरू ‘हान चीनी आबादी को शिक्षा देने का उद्देश्य आर्थिक विकास के लिए उन्हें तकनीकी कर्मियों के तौर पर शिक्षित किया जाना होता है, लेकिन (अल्पसंख्यक) समुदायों के लिए शिक्षा का मुख्य लक्ष्य उनमें चीन के प्रति राजनीतिक निष्ठा को प्रोत्साहित करना और सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थिरता को बढ़ाना रहा है।‘
चीन की मुख्यभूमि में द्विभाषी शिक्षा नीति भी अल्पसंख्यक क्षेत्रों से अलग है। चीन में हान छात्रों को आधुनिक वैज्ञानिक और आर्थिक विकास के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लायक बनाने के लिए शिक्षित किया जाता है। दूसरी ओर, अल्पसंख्यकों को चीन के प्रति वफादार बनाने और चीनी राष्ट्रवाद को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से शिक्षित किया जाता है। अल्पसंख्यक स्कूलों में पाठ्यपुस्तकें ‘एक चीन’ की भावना पैदा करने और कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रचार करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। अल्पसंख्यक छात्रों के लिए उपलब्ध साहित्य में मुख्य रूप से चीनी स्रोतों से सीधे अनुवाद को शामिल किया गया है जो अक्सर राजनीतिक विचारधारा से संबंधित होते हैं। तिब्बत के स्कूलों में शिक्षा प्रणाली के दो मॉडल पेश किए गए। पहले मॉडल में सभी प्रमुख विषयों को तिब्बती भाषा में पढ़ाया जाता था चीनी में नहीं। जब यह मॉडल सिचुआन प्रांत में पेश किया गया था तो प्राथमिक स्तर पर उपस्थिति अधिक थी। लेकिन एक व्यावहारिक कारण से मध्य विद्यालय स्तर पर संख्या काफी कम हो गई। व्यावहारिक कारण यह था कि रोजगार करने के लिए चीनी भाषा पर मजबूत पकड़ होना जरूरी होता है।
दूसरे मॉडल में सभी विषयों को चीनी भाषा में पढ़ाया जाता है न कि तिब्बती में। इस मामले में, 95ः किताबें और पढ़ने की सामग्री चीनी में हैं और सिर्फ 5ः तिब्बती में हैं। तिब्बती वाले साहित्य की कमी पीआरसी की तिब्बती के प्रति भेदभावपूर्ण नीति का स्पष्ट संकेत है।
दैनिक जीवन में तिब्बती भाषा
तिब्बती की तुलना में चीनी भाषा अधिक उपयोगी है क्योंकि अधिकांश सरकारी कार्यालय चीनी भाषा का उपयोग करते हैं। तिब्बती छात्रों को पीआरसी संविधान के अनुच्छेद 4 के तहत आवश्यक रूप से तिब्बती में पढ़ाया जाता है। लेकिन उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल लगता है, क्योंकि इन संस्थानों में पढ़ाई का माध्यम मंदारिन होता है।
स्नातक होने के बाद भी तिब्बत में कई युवा तिब्बती बेरोजगार रहते हैं, क्योंकि भर्ती परीक्षाओं में चीनी भाषा पर अच्छी पकड़ होने की अनिवार्यता रहती है। शिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षक मुख्य भूमि चीन से आते हैं। इसी तरह तिब्बती भाषा को शोध की भाषा के तौर पर कमतर कर दिया गया है। इसका उपयोग केवल तिब्बत और चीन के विश्वविद्यालयों के अनुसंधान केंद्रों में होता है।
जो तिब्बती चीनी भाषा नहीं जानते हैं उन्हें काम नहीं मिल रहा है। तिब्बत में यात्रा टिकट और बैंक लेनदेन तक चीनी में मुद्रित होते हैं। भले ही पिछले कुछ दशकों में परिवहन सुविधाओं में सुधार हुआ है। लेकिन जिन तिब्बतियों को चीनी के बारे में सही ज्ञान नहीं है, उन्हें तिब्बत के भीतर भी यात्रा करने में कठिनाई होती है।
तिब्बत पर चीनी कब्जे से पहले एक तिब्बत में एक चिट्ठी पहुंचने में कई महीने का समय लग जाता था। आज तिब्बत में आधुनिक डाक-सेवा प्रणाली स्थापित हो चुकी है, जहां चीनी भाषा का उपयोग किया जाता है। जो तिब्बती चीनी भाषा नहीं जानते हैं वे इस सेवा का उपयोग नहीं कर सकते हैं। इससे तिब्बती भाषा को संरक्षित और प्रचारित करना मुश्किल हो गया है।
भेदभावपूर्ण भाषा नीति का विरोध
चीनी सरकार ने तिब्बत में बड़ी संख्या में चीनी प्रवासी श्रमिकों को बसाकर तिब्बतियों को अपने में मिला लेने का प्रयास किया है। इस कार्रवाई के विरोध में पिछले कुछ वर्षों में तिब्बती प्रतिरोध काफी बढ़ गया है। कई लोकप्रिय तिब्बती गायकों ने ऐसे गीतों की रचना की है जो तिब्बतियों को अपनी भाषा को संरक्षित करने और बढ़ावा देने का आग्रह करते हैं। स्कूली प्रणाली के बाहर, खासकर तिब्बती मठों द्वारा तिब्बती भाषा की अनौपचारिक पढ़ाई की व्यक्तिगत पहल भी शुरू की गई है।
वर्षों से तिब्बती स्नातक भाषा नीति पर कई बार विरोध कर चुके है। नतीजतन, इनमें से कई भाषा कार्यकर्ताओं को अलगाववाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे जैसे कथित अपराधों के आरोप में कारावास की सजा सुनाई गई है।
तिब्बती व्यवसायी ताशी वांगचुक इन्हीं भाषा कार्यकर्ताओं में से एक हैं। चीनी के बढ़ते प्रभुत्व से तिब्बती भाषा को संरक्षित करने के अभियान के लिए उन्हें अमदो सोंगों (क्विंघाई प्रांत) में पांच साल जेल की सजा सुनाई गई थी। भाषा अधिकार कार्यकर्ता होने के कारण मई 2015 में द न्यूयॉर्क टाइम्स ने उनका साक्षात्कार लिया था। साक्षात्कार का एक वीडियो क्लिप बाद में सोशल मीडिया पर छा गया। लेकिन इसी कारण् से ताशी पर अलगाववाद भड़काने का आरोप लगाया गया।
इससे पहले 2010 में रीबकांग (टेनग्रैन) और क्वंघाई (अमदो का तिब्बती क्षेत्र) में तिब्बती छात्रों ने चीन सरकार की दमनकारी भाषा नीति का विरोध किया। तिब्बत आंदोलन का कार्यकर्ता और ब्लॉगर त्सेरिंग वोएसर लिखते हैं कि तिब्बती भाषा में गिरावट के कारण से आत्मदाह कर लेने वाले कई तिब्बतियों ने तिब्बती भाषा को संरक्षित करने की गुहार लगाई है। तिब्बत में सन 2009 से 154 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं।
कर्मा तेनजिन ने भारत के मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से राजनीति विज्ञान में एमफिल किया है। वर्तमान में वह तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट में शिक्षा नीति पर काम कर रहे हैं।