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तिब्बत पर विश्व सांसदों का आठवां सम्मेलन
२८ देशों के सांसदों ने २२ से २३ जून, २०२२ तक वाशिंगटन डी.सी. में आठवें विश्व सांसद सम्मेलन में भाग लिया और तिब्बत की स्थिति की समीक्षा के साथ१९५० में तिब्बत पर पीआरसी के आक्रमण और उसके बाद से उस पर अवैध कब्जेके कारण उत्पन्न हुए चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करने के प्रयासों पर चर्चा की।विभिन्न देशों से आए सांसदों ने अमेरिकी कांग्रेस के अपने मेजबानों को धन्यवाद दिया और तिब्बत पर हाल के वर्षों में अपनाए गए पथ-प्रदर्शक कानून के लिए अमेरिकी कांग्रेस की सराहना की।
बैठक २४ फरवरी को स्वतंत्र देश यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कारण शुरू हुए युद्ध की छाया में हुई। रूस-यूक्रेन युद्ध चौथे महीने में प्रवेश करने वाला है। इस रूसी आक्रमण की तुलना दशकों पहले तिब्बत पर चीन के आक्रमण से होने लगी है। यह आक्रमण अंतरराष्ट्रीय कानून के सबसे मौलिक मानदंडों के प्रमुख उल्लंघन का एक उदाहरण है। साथ ही यह युद्ध अंतरराष्ट्रीय कानून को लागू करने की तत्काल आवश्यकता को उजागर करता है और अल्पकालिक आर्थिक लाभों से उुपर उठकर कानून के शासन की सुरक्षा और स्वतंत्रता, लोकतंत्र, आत्मनिर्णय और मानवाधिकारों को दुनिया भर में बढ़ावा को प्राथमिकता देने की जरूरत पर जोर देता है।
प्रतिभागियों ने तिब्बत से संबंधित मामलों पर विभिन्न देशों की संसदों और निर्वासित तिब्बती संसद के बीच सहयोग सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की प्रतिबद्धता जताई। इसमें चीन पर गठित इंटर पार्लियामेंटरी एलायंस और अन्य अंतर संसदीय संगठनों और निकायों के साथ सहयोग करना शामिल है। तिब्बत पर सांसदों के अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क (आईएनपीएटी) को पुनर्जीवित किया जाएगा और जहां तक संभव हो सके सांसद अपने-अपने उन देशों में संसदीय समूह बनाएंगे जहां यह अभी तक गठित नहीं हुआ है।
प्रतिभागियों ने विभिन्न देशों की संसदों से इस घोषणा के अनुरूप तिब्बती मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर कानून, संकल्प या प्रस्ताव पारित करने, सुनवाई करने और जांच सुनिश्चित करने का आह्वान किया।
प्रतिभागियों ने सभी संसदों से समन्वित कार्रवाई करने और तिब्बत के संबंध में अंतरराष्ट्रीय कानून को बनाए रखने के लिए अपनी सरकारों को जवाबदेह ठहराने का आह्वान किया, जिसमें निम्न अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत अपने-अपनेदेशों के दायित्वों और जिम्मेदारियों को पूरा करना शामिल है-
- आत्मनिर्णय के तिब्बतियों के अहरणीय अधिकार को सम्मान और बढ़ावा देना,
- तिब्बत पर संप्रभुता के पीआरसी के दावे को स्पष्ट रूप से या परोक्ष रूप से मान्यता देने से बचना,
- तिब्बत को कब्जा किया हुआ देश के रूप में मानना न कि चीन के हिस्से के रूप में, और
- बिना किसी पूर्व शर्त के पक्षों के बीच बातचीत और समझौतों के माध्यम से चीन-तिब्बत संघर्ष का समाधान करने की दिशा में अन्य समान विचारधारा वाली सरकारों के साथ समन्वित कार्रवाई करना।
प्रतिभागियों ने संसदों से अगले दलाई लामा और अन्य वरिष्ठ लामाओं के पुनर्जन्म को चुनने और उन्हें नियुक्त करने के लिए दलाई लामा, गाडेन फोडरंग ट्रस्ट, तिब्बती लोगों और तिब्बती बौद्ध समुदाय के अनन्य अधिकार की पुष्टि और समर्थन करने के लिए समन्वित कार्रवाई करने का आह्वान किया। साथ ही ऐसा करने के पीआरसी के घोषित इरादे को धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के तौर पर देखकर दृढ़ता से खारिज करने की अपील भी की।
प्रतिभागियों ने पीआरसी और सीसीपी द्वारा प्रचारित उन झूठे ऐतिहासिक आख्यानों को खारिज कर दिया, जिन में तिब्बत पर पीआरसी के आक्रमण और तिब्बत के वर्तमान कब्जे को सही ठहराने का प्रयास करने के लिए दावा किया जाता है कि तिब्बत प्राचीन काल से चीन का हिस्सा रहा है। प्रतिभागियों ने सांसदों और संसदों से इन झूठे आख्यानों को बेनकाब करने और उनका मुकाबला करने के लिए समन्वित कार्रवाई करने का आह्वान किया।
प्रतिभागियों ने संसदों से आह्वान किया कि वे तिब्बत के निगमों को जबरन श्रम और तिब्बती पठार के प्राकृतिक पर्यावरण के शोषण से लाभ अर्जित करने से रोकने के लिए समन्वित कार्रवाई करें।
सम्मेलन में खनन के कारण तिब्बती पठार में बड़े पैमाने पर होने वाले पर्यावरणीय क्षरण का उल्लेख किया गया, जिसके परिणामस्वरूप जहरीले अपशिष्ट, जल प्रदूषण पैदा हुए और वनों की कटाई से पहाड़ों का विनाश हुआ। इसके अलावा, इस शोषण को क्रियान्वित करने के लिए २० लाख से अधिक तिब्बती खानाबदोशों को उनकी पारंपरिक भूमि से हटा कर सांस्कृतिक रूप से विनाशकारी गांवों में बसाया गया है।
तिब्बत में पर्यावरणीय कुप्रबंधन के प्रभाव तिब्बत से कहीं आगे तक फैले हुए हैं, क्योंकि पठार से निकलने वाली १० प्रमुख नदियों पर चीन की ५० से अधिक विशाल बांधों के निर्माण की योजना है, जिससे नीचे के देशों में १.५अरब से अधिक लोगों की जल आपूर्ति पर संकट मंडरा रहा है।
दुनिया के तीसरे ध्रुव के रूप में तिब्बत की अवस्थिति के परिणामस्वरूप यहां ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव विश्व औसत से दोगुने से अधिक दर से होता है। इसके परिणामस्वरूप २०५० तक पठार पर के अधिकांश ग्लेशियर पिघल जाएंगे।
प्रतिभागियों ने पीआरसी शासन के तहत उग्यूर और दक्षिणी मंगोलियाई लोगों, हांगकांग के लोगों और ताइवान के लोगों के साथ-साथ पीआरसी के कोप भाजन बनने का खतरा झेल रहे चीनी लोकतंत्र आंदोलन में शामिल लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त की। ये सभी लोग एकसमान चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और इससे निपटने के लिए एक तरह के लोगों का समर्थन चाहते हैं।
प्रतिभागियों ने तिब्बतियों की लोकतांत्रिक उपलब्धियों, अहिंसा के प्रति उनकी प्रतिबद्धताओं और मध्यम मार्ग के माध्यम से पीआरसी के साथ संघर्ष के समाधान की तलाश के उनके प्रयासों के प्रति अपने निरंतर समर्थन को व्यक्त किया।