पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खेतड़ी (राजस्थान)
नई दिल्ली में सम्पन्न जी-20 की षिखर वार्ता (9-10 सिंतबर, 2023) में विस्तारवादी चीनी राष्ट्रपति शी जिंपिंग की अनुपस्थिति से स्पष्ट है कि चीन अंतरराष्ट्रीय मंच पर अकेला पड़ता जा रहा है। वे उपस्थित होकर भी जी-20 के सर्वसम्मत घोषणापत्र को पारित होने से रोक नहीं पाते। उन्हें इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरीडोर (प्डम्ब्) परियोजना को स्वीकारना पड़ता। इस परियोजना के कारण चीन की वन बेल्ट वन रोड (व्ठव्त्) परियोजना संकटग्रस्त हो गई है। वन बेल्ट वन रोड परियोजना चीन की एक विस्तारवादी परियोजना है जबकि जी-20 की इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरीडोर परियोजना से विष्वस्तर पर परस्पर वाणिज्य-व्यापार-आवागमन तथा संपर्क को बढ़ावा मिलेगा। चीनी राष्ट्रपति शी जिंपिंग को भारत में तिब्बती विरोध प्रदर्षन का भी सामना करना पड़ता।
शी जिंपिंग को अपनी भारत विरोधी गतिविधियों के कारण भी शर्मीन्दगी झेलनी पड़ती। तिब्बत को चीन की हथेली और भारत में लद्दाख, सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेष को तथा भूटान एवं नेपाल को उसकी अंगुलियाँ समझने वाले शी जिंपिंग को मुँहतोड़ जवाब मिलने का पूरा विष्वास था।
स्वतंत्र तिब्बत पर सन् 1959 में अवैध नियन्त्रण स्थापित कर चुका चीन तथाकथित पाँच अंगुलियों पर अवैध नियन्त्रण के लिये साजिषपूर्ण साम्राज्यवादी नीति पर चल रहा है। अच्छी बात है कि वर्तमान भारत सरकार से हर मोर्चे पर चीन को कड़ी चुनौती मिल रही है। नई दिल्ली में शी जिंपिंग की अनुपस्थिति का महत्वपूर्ण कारण भारत की बढ़ती राष्ट्रीय शक्ति है। भारतीय राष्ट्रीय हितों की रक्षा तत्परता से हो रही है।
चीन से भारतीय राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के सन्दर्भ में निर्वासित तिब्बत सरकार की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु परमपावन दलाई लामा के समान निर्वासित तिब्बत सरकार भी भारत-चीन संबंधों के विष्वसनीय एवं सुदृढ़ होने का पक्षधर है। इन दोनों के मतानुसार पहले भारत एवं चीन के बीच स्वतंत्र तिब्बत एक मध्यस्थ राज्य (बफर स्टेट) था। उस समय भारत एवं चीन की सीमा नहीं मिलती थी। तब भारत एवं चीन के संबंध बहुत अच्छे थे। तिब्बत पर अवैध चीनी नियंत्रण के कारण भारत-तिब्बत सीमा की जगह भारत-चीन सीमा पैदा हो गई। ये चाहते हैं कि चीन की तुलना में भारत अपनी राष्ट्रीय शक्ति में लगातार विस्तार करे। शक्तिषाली भारत ही लोकतंत्र विरोधी चीन की अमानवीय एवं अवैध उपनिवेषवादी नीति को रोकने में मददगार हो सकता है।
चीन की बौखलाहट का महत्वपूर्ण कारण है-भारत का शक्तिषाली होना तथा तिब्बती समाज का लोकतंत्रीकरण। परमपावन दलाई लामा तिब्बत के राजप्रमुख और धर्मप्रमुख थे। वर्ष 2001 में पहली बार तिब्बती समाज में वयस्क मताधिकार पर आधारित चुनाव हुए। तिब्बतियों ने लोकतांत्रिक तरीके से मतदान द्वारा अपनी निर्वाचित सरकार का गठन किया। यह सरकार चूँकि निर्वासित तिब्बतियों द्वारा हिमाचल प्रदेष की धर्मषाला में संचालित होती है इसीलिये इस निर्वाचित तिब्बत सरकार को निर्वासित तिब्बत सरकार कहा जाता है। दलाई लामा ने वर्ष 2011 में अपने सारे राजनीतिक अधिकार इसी सरकार को सौंप दिये। अब उनके पास सिर्फ धार्मिक अधिकार हैं।
तिब्बती समुदाय का लोकतंत्रीकरण दलाई लामा की प्रेरणा-प्रोत्साहन-प्रयास का परिणाम है। इससे अहिंसक तिब्बती संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय सहयोग-समर्थन बढ़ता जा रहा है। तिब्बत की आंतरिक दुर्दषा के विरोध में समस्त लोकतांत्रिक शक्तियाँ एकजुट हैं। अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठन तथा देश तिब्बत में जारी मानवाधिकार हनन, प्राकृतिक संसाधनों के विनाष तथा पर्यावरण-प्रदूषण रोकने हेतु चीन पर दबाव बढ़ा रहे हैं। तिब्बतियों के धार्मिक मामलों में चीनी हस्तक्षेप का विष्वव्यापी विरोध इसी का उदाहरण है। अमेरिका सहित कई देषों द्वारा तिब्बत एवं तिब्बतियों के चीनीकरण के विरूद्ध चीन को गंभीर परिणाम की चेतावनी दी गई है।
चीन नहीं चाहता कि तिब्बत में लोकतंत्र मजबूत हो। वह स्वयं एक धर्मविरोघी और लोकतंत्रविरोधी साम्यवादी देष है। तिब्बत की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान खतरे में है। तिब्बती और तिब्बत समर्थक सर्वाधिक चिंतित इसी से हैं कि तिब्बती पहचान मिटाने की चीनी नीति लगातार जारी है। इसीलिये वे तिब्बत की ‘‘पूर्ण स्वतंत्रता’’ के स्थान पर ‘‘वास्तविक स्वायत्तता’’ की मांग कर रहे हैं। ‘‘वास्तविक स्वायत्तता’’ मिलने से तिब्बती पहचान की सुरक्षा हो जायेगी। चीनी संविधान तथा राष्ट्रीयता संबंधी कानून के अनुरूप चीन अपने पास प्रतिरक्षा तथा विदेष विभाग रखे। कृषि एवं षिक्षा सहित अन्य विषय तिब्बतियों को सौंपे जायें। इससे चीनी संप्रभुता के साथ तिब्बती स्वषासन के सैद्धांतिक एवं संवैधानिक विचार का संरक्षण एक साथ हो जायेगा। अभी स्वायत्तता के नाम पर चीन ने तिब्बत के भौगोलिक क्षेत्र को बुरी तरह विकृत कर रखा है।
विष्व समुदाय तिब्बती लोकतंत्रीकरण का समर्थक है जबकि चीन के अनुसार इसके प्रेरणास्रोत दलाई लामा आंतककारी-विघटनकारी हैं। चीन अपनी यह दुर्भावना छोड़े तथा दलाई लामा एवं निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रतिनिधियों के साथ बंद पड़ी वार्ता पुनः प्रारम्भ करे। तिब्बत समस्या का शीघ्र समाधान विष्वषांति, विषेषकर भारतीय शांति, सुरक्षा, समृद्धि एवं स्वाभिमान की दृष्टि से बहुत आवष्यक है। विस्तारवादी हठधर्मिता चीन को छोड़नी होगी।
चीनी हठधर्मिता का ही परिणाम है कि अपने सभी पड़ोसी देषों के साथ चीन के संबंध शत्रुतापूर्ण हैं। सभी सीमावर्ती देषों को चीनी विस्तारवाद का षिकार होना पड़ा है। संपूर्ण हिमालय क्षेत्र संकटग्रस्त है। हिमालय की सुरक्षा तथा इस क्षेत्र के विकास के लिये चीन की भोगवादी नीति पर अंकुष लगाना होगा। इससे कई ग्लेसियर सूखने-सिकुड़ने लगे हैं। कई वन्य जीव लुप्त हो चुके। उसके इस अस्वीकार्य आचार-विचार-व्यवहार पर अंकुष लगाने के लिये विष्व स्तरीय एकजुटता स्वागतयोग्य है।