स्पेन। वर्तमान में स्पेन में चल रहे कॉप- 25 संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के मौके पर मुख्य समारोह से इतर 7 दिसंबर 2019 को एटीनो डी मैड्रिड हॉल में आयोजित दूसरी तिब्बत जलवायु कार्रवाई विषय पर पैनल चर्चा में तिब्बत के पर्यावरण के विशेषज्ञों को सुनने के लिए सौ से अधिक लोग पहुंचे।
कासा डेल तिब्बत के सहयोग से तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित पैनल चर्चा में तिब्बत के वैश्विक पारिस्थितिक महत्व और चीनी कब्जे के तहत इसकी वर्तमान पर्यावरणीय स्थिति पर बात करने करने के लिए छह अलग-अलग देशों से तिब्बती पर्यावरण के आठ विशेषज्ञों ने अपनी बात रखीं।
यह पैनल चर्चा ‘कॉप- 25 संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन’ के दौरान तिब्बत के वैश्विक पारिस्थितिक महत्व को उजागर करने के लिए केंद्रीय तिब्बती प्रशासन द्वारा एक महीने तक चलने वाली ’तिब्बत के लिए कॉप- 25 जलवायु कार्रवाई’ का हिस्सा थी, जिसकी शुरुआत इस वर्ष 6 नवंबर को की गई थी।
पहले पैनल के विशेषज्ञों ने ‘तिब्बती पठार पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव’ के बारे में तीन महत्वपूर्ण तथ्यों- तिब्बती पठार का पारिस्थितिकीय महत्व, पठार पर अत्यधिक गर्मी के गंभीर मामले और हाल के वर्षों में तिब्बत में प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते मामलों पर प्रकाश डाला।
स्पेन में कासा डेल तिब्बत के अध्यक्ष वेन थुबतेन वांग्चेन ने ’पर्यावरण संरक्षण में तिब्बती संस्कृति और बौद्ध धर्म की भूमिका’ विषय पर बात रखी और दुनिया से तिब्बत के पर्यावरण की सुरक्षा का समर्थन करने का आग्रह किया।
स्कॉटिश सेंटर फ़ॉर हिमालयन स्टडीज़ के निदेशक डॉ मार्टिन मिल्स ने इसे बड़े मुद्दे पर प्रकाश डाला कि कैसे तिब्बती पठार का तापमान पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ा है। और कैसे इसके निहितार्थों के डरावने स्तर के कारण एशिया और दुनिया के लिए खतरा पैदा हो गया है।
तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट के पर्यावरण डेस्क के कार्यकारी प्रमुख तेम्पा ग्याल्त्सेन झाम्ल्हा ने हाल के वर्षों में तिब्बत में प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाओं पर बात की। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में तिब्बत में जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक निर्माण गतिविधियों से पैदा हो रहे गंभीर जोखिमों को उजागर किया।
दूसरे पैनल के विषय ‘तिब्बत पठार पर पर्यावरण की वर्तमान स्थिति’ के के वक्ताओं ने तिब्बती खानाबदोश जातियों को जबरदस्ती विस्थापित करने, अत्यधिक खनन और तिब्बती नदियों के नुकसान जैसे कुछ गंभीर मुद्दों को विस्तार से उठाया।
ऑस्ट्रेलिया-तिब्बत परिषद की कार्यकारी अधिकारी क्यिंज़ोम धोंगद्यू ने तिब्बती खानाबदोशों की स्थिति और चीनी सरकार द्वारा खानाबदोशों के बलपूर्वक पुनर्वास के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा कि खानाबदोशों को हटाना मानव अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है और चारागाह की सुरक्षा के लिए भी हानिकारक है।
इंटरनेशनल कंपेन फॉर तिब्बत के कार्यकारी निदेशक काई-मुलर ने तिब्बत में खनन के बारे में तथ्यों को रखा और बताया कि इससे स्थानीय तिब्बत में घास के मैदान नष्ट हुए हैं, जल प्रदूषित हो रहा है और लोगों का दमन हो रहा है।
तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिसर्च फेलो डेचन पेल्मो ने यारलुंग त्संगपो (ब्रह्मपुत्र नद) के अत्यधिक नुकसान के जोखिम को रेखांकित किया और बताया कि भारतीय उप-महाद्वीप के लिए इसके गंभीर निहितार्थ हैं। उन्होंने इसके आगे भारत और बांग्लादेश के लिए ब्रह्मपुत्र के महत्व पर प्रकाश डाला।
अंतिम वक्ता के तौर पर लेखक और डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के निर्माता माइकल बकले ने जाचु या मेकांग नदी की स्थिति के बारे में अपनी प्रस्तुति दी। वक्ता ने इस क्षेत्र में नदी के सामाजिक-आर्थिक महत्व और उसी नदी पर डैम निर्माण से होनेवाले नुकसान की खतरनाक दर पर विस्तार से प्रकाश डाला।
अखिल भारतीय अधिवेशन के 60वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मुख्य अतिथि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़ के अलावा कई प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
तिब्बत पर ऑल इंडिया कन्वेंशन की 60वीं वर्षगांठ का आयोजन कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज- द्वारा किया गया। अपनी तरह के इस कंवेशन का पहला आयोजन कलकत्ता (अब कोलकाता) में श्री लोकनायक जयप्रकाश नारायण की अध्यक्षता में 30-31 मई 1959 को हुआ था।