रिपोर्ट, 10 अप्रैल 2013
विश्व में तिब्बत का दर्द न किसी ने समझा न किसी ने महसूस किया, सिवाय भारत के, और उसमें भी भारत की राष्ट्रभक्त जनता ने। चीन के आक्रमण से तिब्बती निर्वासित हुए, उन्हें भारत में शरण मिली, पर चीन के अवैध कब्जे से तिब्बत मुक्त हो इसके लिए भारत सरकार ने कभी वातावरण नहीं बनाया और दबाव बनाना उसके बस में था ही नहीं। निर्वासित तिब्बती समाज के दर्द और उसके भारतीय सरकारों को जानने के लिए गठन हुआ ‘भारत तिब्बत सहयोग मंच’ का। 5 मई, 1999 को गठित हुए इस मंच की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक गत 9 अप्रैल को दिल्ली में सम्पन्न हुई। दीनदयाल शोध संस्थान के सभागार में आयोजित इस बैठक में देश भर से प्रतिनिधि सम्मिलित हुए और साथ ही आए तिब्बती समाज के अनेक चिंतक भी।
विभिन्न सत्रों में आयोजित चर्चा-परिचर्चा के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अ.भा.कार्यकारिणी के सदस्य एवं भारत तिब्बत सहयोग मंच के संस्थापक व संरक्षक श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि तिब्बत के अस्तित्व में ही शक्तिशाली भारत का मंत्र छिपा है। तिब्बत स्वतंत्र हो, हिमालय सुरक्षित रहे, इसके लिए तिब्बतवासियों को भारतीय समाज के सहयोग और समर्थन की आवश्यकता है। उन्होंने ल्हासा (तिब्बत) में युवा तिब्बतियों द्वारा किए जा रहे आत्मदाह को अनूठा व ऐतिहासिक बताते हुए उनकी तुलना भारत के स्वतंत्रता सेनानियों से की और कहा कि यदि सुभाष, भगत सिंह, लक्ष्मीबाई, आजाद बलिदान न देते तो हम आज स्वतंत्र न होते। वे लोग यदि ‘करियरिस्ट’ (सिर्फ अपने बारे में सोचने वाले) होते तो न वे बलिदान देते और न हम आज लोकतांत्रिक देश में स्वतंत्रता का लाभ पा सकते। आज यदि हम उन बलिदानियों को भुला दें, उनकी बलिदान गाथा को भुला दें तो ऐसे देशवासियों से कृतघ्न दूसरा कोई न होगा। तिब्बत में जिन 114 युवाओं ने आत्मोत्सर्ग किया है, उनका आत्मोत्सर्ग जहां तिब्बत की मुक्ति साधना है वहीं भारत के लिए भी उसका मोल है, क्योंकि भारत की सुरक्षा के लिए तिब्बत एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
श्री इंद्रेश कुमार ने चीन की मंशा व कृत्यों की चर्चा करते हुए कहा कि उसका ड्रैगन भारत को निगल जाना चाहता है। निरन्तर इस ओर बढ़ रहा है। यदि हम सावधान नहीं रहे तो देश को भारी कीमत चुकानी होगी। ब्रह्मपुत्र पर बांध, तवांग पर अपना दावा, कश्मीरियों को ‘पेपर वीजा’ और वरिष्ठ अधिकारियों को वीजा देने से इनकार ऐसे मामले हैं जिसके विषय में सिर्फ जागृति होना पर्याप्त नहीं है, मन में रोष पैदा होना चाहिए। कदम से कलम तक जुबान से गर्जना तक यह रोष प्रकट हो। अब बचाव की नहीं, आक्रामक रुख अपनाने की आवश्यकता है।
इससे पूर्व भारत तिब्बत सहयोग मंच के कार्यकारी अध्यक्ष डा.कुलदीप चन्द अग्निहोत्री ने कहा कि नक्शे पर से तिब्बत का अस्तित्व न समाप्त हो, इसकी चिंता भारत की सरकार और भारतवासियों को करनी चाहिए, क्योंकि जब तक तिब्बत का अस्तित्व है, भारत की सम्प्रभुता पर खतरा नहीं आ सकता। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष व बलिदान हुए पर तिब्बत की स्वतंत्रता का आंदोलन अनूठा है। ल्हासा की सड़कों पर 114 लामाओं द्वारा आत्मदाह करके स्वतंत्रता की ज्वाला जलाने जैसा दूसरा कोई उदाहरण इतिहास में नहीं मिलता। कुछ ने तो पद्मासन में आत्मदाह किया और मुंह से आह तक नहीं निकली। यह तपस्या है, साधना है और जो समझते थे कि समय के साथ तिब्बत की मुक्ति का आंदोलन समाप्त हो जाएगा, वे भ्रम में हैं। चीन के लाख दमन, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की बात करने वालों की अनदेखी के बावजूद तिब्बतियों का आंदोलन निरन्तर जारी है, गतिशील है, और उसमें नित नए आयाम जुड़ रहे हैं। व्यक्ति की आयु के समान राष्ट्र की आयु 100-125 वर्ष की नहीं होती, हजारों वर्ष की होती है। राष्ट्रीय अधिवेशन में महामंत्री श्री महेश चढ्ढा ने वर्ष भर की गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लामा येशी पोजोंग ने तवांग यात्रा का वर्णन करते हुए कहा इससे मन में उत्साह पैदा होता है व संकल्प मजबूत होता है। दिल्ली प्रांत के अध्यक्ष श्री पंकज गोयल ने इस अवसर पर भारत तिब्बत सहयोग मंच का दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यालय बनाने हेतु 1 लाख 11 हजार 1 सौ 11 रुपए भेंट किए।