अपनी मातृभूमि से समाचारों की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे भारत में निर्वासित तिब्बतियों को सन्नाटे जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उनका कहना है कि उनके लिए स्थिति झिंझियांग से भी बदतर है। जो लोगइस बाधा को पार करने की कोशिश करते हैं,उनकी सुरक्षा को अधिक खतरा है।
ग्लोब एंड मेल के लिए जेम्स ग्रिफिथ्स
२५ फरवरी, २०२२ को तिब्बती पॉप स्टार छेवांग नोरबू ल्हासा के बीच में स्थित पोटाला पैलेस के पास एक स्मारक पर गए। पोटाला पैलेस परम पावन दलाई लामा का आवास रहा है। वहां उन्होंने सैलानियों और राहगीरों की भीड़ के बीच अपने शरीर पर तेल छिड़क कर खुद को आग के हवाले कर दिया।
श्री नोरबू द वॉयस के चीनी संस्करण में दिखाई दिए थे। नोरबू को कथित तौर पर तिब्बती राजधानी के एक अस्पताल में भारी सुरक्षा के बीच और चीनी मीडिया द्वारा सूचना छिपाकर रखा गया। कहा जाता है कि कुछ दिनों बाद वहां पर उनकी मृत्यु हो गई। लेकिनलगभग एक साल बाद भी २५ वर्षीय युवक के आत्मदाह और मृत्यु के बारे में बहुत कुछ रहस्य बना हुआ है।
भारत के धर्मशाला में स्थित एक एनजीओ तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट (टीएआई) में एक शोधकर्तालोबसांग ग्यात्सो ने कहा, ‘वह पूरे तिब्बत और यहां तक कि चीन में भी बहुत प्रसिद्ध थे।उन्होंने कम से कम सौ लोगों के सामने आत्मदाह किया। वहां पर उपस्थित सभी के पास मोबाइलफोन थे, लेकिन उनमें से किसी से कोई भी जानकारी हफ्तों तक बाहर नहीं आई।लोगों को पता था कि किसी ने आत्मदाह कर लिया है, लेकिन वे नहीं जानते थे कि वह कौनथा। ‘श्री नोरबू उन लगभग १६० तिब्बतियों में से एक हैं, जिन्होंने २००९ के बाद से चीनी-नियंत्रित लेकिन नाममात्र के स्वायत्त तिब्बत में लागू की गई बीजिंग की नीतियों के विरोध में इस तरह से आत्मदाह किया है। चीनी नीतियां हाल के दशकों में तेजी से कठोर और आत्मकेंद्रित हो गई हैं। अपने प्रारंभिक उफान के दिनों- २०१२ और २०१३ में तिब्बतियों का आत्मदाह चरम पर था, जिसके परिणामस्वरूप दुनिया भर का ध्यान आकर्षित हुआ और वहां के आत्मदाह से रक्तरंजित, चित्रों और वीडियो को देखना मुश्किल हो गया था।
ऐसी घटनाएं पूरी तरह से बंद तो नहीं हुई हैं, लेकिन बहुत कम हो गई हैं। हालांकि,अन्य प्रकार के विरोध और अशांति अबभी छिटपुट रूप से तिब्बत में होती रहती है। इनमेंस्थानीय मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन होने के अलावा कोविड-१९ जनित राष्ट्रीय चिंताजैसे मुद्दों पर भी आंदोलन शामिल हैं। लेकिनशोधकर्ताओं और कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसकी खबरें जो पहले बाहर आ जाती थी, उसकी संख्या और मात्रा हाल के वर्षों में बहुत कम हो गई हैं। तिब्बत को पहले से कहीं अधिक कूपमंडूक या ब्लैकहोल में बदल दिया गयाहै और प्रभावी रूप से इसे वैश्विक कवरेज से बाहर कर दिया गया है। बावजूद इसके चीन का इस समय तिब्बत पर सबसे अधिक ध्यान केंद्रित है।
यहां तक कि तिब्बती पठार के उत्तर में स्थितझिंझियांग प्रांत, जहां उग्यूर और अन्य जातीय अल्पसंख्यकों का दमन और उनके व्यापक मानवाधिकारों के हनन का आरोप बीजिंग पर लगता रहा है, तुलनात्मक रूप से अपेक्षाकृत पारदर्शी और तिब्बत से बेहतर व्यवस्थाहै।
द ग्लोब एंड मेल के प्रतिनिधि ने २०१८ में झिंझियांग में बीजिंग के कथित‘व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण केंद्रों’ का दौरा कियाथा। बाद के वर्षों में अन्य पत्रकारों ने भी वहां का दौरा किया। इसके बाद ही वहां चल रहे चीन के वैश्विक घोटाले का पता चल पाया। इसके बाद विदेशी मीडिया को तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) का दौरा करने से प्रतिबंधित कर दिया गया। अब केवल टीएआर में विदेशी पत्रकारों के दौरे कड़े सरकारी नियंत्रण में ही हो पाते हैं। यहां तक कि अन्य प्रांतों में शामिल किए गए तिब्बती क्षेत्रों पर भीकड़ी निगरानी रखी जाती है।श्री नोरबू की मृत्यु के समय के आसपास समाचार एजेंसी- एसोसिएटेड प्रेस के एक रिपोर्टर को भीपश्चिमी सिचुआन से हिरासत में लिया गया और उन्हें वहां से निष्कासित कर दिया गया।
धर्मशालामें रह रहीं एक तिब्बती पत्रकार और शोधकर्ता पेंथोक कहती हैं कि, ‘२०१४से पहलेतिब्बत से जानकारी प्राप्त करना अपेक्षाकृत आसान था।लेकिन आत्मदाह की पहली लहर के बाद दमन शुरू हो गया और गैर-टीएआर क्षेत्रों में भीटीएआर के समान हीउत्पीड़न तेज कर दिया गया।ज्ञातव्य है कि १९५९ में दलाई लामा के तिब्बत से भाग जाने के बाद से धर्मशाला एक तरह से तिब्बती निर्वासित समुदाय का आध्यात्मिक और राजनीतिक दिल बन गया है।
तिब्बती लोग पहले देश के बाहर के अपने संपर्कों के साथ जानकारियों का आदान-प्रदान किया करते थे। लेकिन अब उन्हें खामोश कर दिया गया है।उनके फोन और इंटरनेट संचार पर नजर रखी जा रही है और मुखबिरों का डर बना हुआ है। अनेक तिब्बतियों की तरह एक ही नाम से जानीजानेवालीपेंथोकबताती हैं कि जब कोई सूत्र सूचनाएं लेकर आते भी हैं, तब भी उन्हें उनके द्वारा दी गई जानकारी केउपयोग केसंभावित नफा-नुकसान का आकलन करना पड़ता है,क्योंकि अक्सर ‘चीनियों के लिए यह पता लगाना आसान होता है कि कौन बात कर रहा है। ‘उन्होंने कहा,‘मुझे इस बात की बहुत चिंता रहतीहै कि क्या होगा?यह चिंतासिर्फ सूचना देनेवाले व्यक्ति के लिए हीनहीं रहतीहै, बल्कि उनके परिवार, उनके बच्चों के लिए भी रहतीहै। इससे सूत्रों को तैयार करना बहुत कठिन हो जाता है। ‘निर्वासित सरकार के आधिकारिक थिंक टैंक-तिब्बत नीति संस्थान- के निदेशक दावा छेरिंग ने कहा कि उन्हें भी अक्सर ऐसी जानकारी मिलती है जिसे वे प्रकाशित नहीं कर सकते।हालांकि यह खुफिया उद्देश्यों के लिए काफीउपयोगी होतीहै। उन्हें चिंता है कि सूचनाओं का प्रवाह और भी कम हो सकता है क्योंकि तिब्बत में जो होता है उसे प्रचारित करने का कार्य उनके जैसे पहली पीढ़ी के निर्वासितों से ही देश के बाहर पैदा हुए लोगों तक कियाजाता है। उन्होंने कहा,‘दूसरी या तीसरी पीढ़ी के निर्वासिततिब्बती पहली पीढ़ी के लोगों के स्तर का विश्वास नहीं बना सकते। उनके बीच उसी तरह का जैविक संबंध भी नहीं है। दोनों के बीच पूरी परंपरा का अंतर है। ‘अतीत मेंधर्मशाला पहुंचनेवाले नए शरणार्थी स्थायी और विश्वसनीय सूचनाओं के साथ आते थे और अपने साथ वहां से संभावित सूत्रों का संपर्कभी बनाकर लाते थे। लेकिन तिब्बतियों की देश से बाहर जाने की संख्या हाल के वर्षों में कम हो गई हैऔर कोविड-१९ महामारी के दौरान लगभग पूरी तरह से खत्म हो गई है। कोविड-१९ महामारी के कारण एक अन्य प्रमुख स्रोत- व्यवसायी और व्यापारी जो नेपाल-तिब्बत सीमा पर काम करते हैं, भी कम हो गए हैं।
पेंथोककहती हैं कि खबरों के लिए सोशल मीडिया और इंटरनेट फ़ोरम जैसेओपन-सोर्स इंटेलिजेंस पर उनकाभरोसा अब तेजी से बढ़ता जा रहा है,जो शायद अब तक सेंसर की नजरों से बचे हुए हैं।उन्होंने कहा कि जब श्री नोरबू ने आत्मदाह कियातो उनकी मृत्यु को प्रचारित करने का एक तरीका यह था कि लोग माइक्रोब्लॉगिंग साइट वीबो और अन्य सोशल-मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रोफ़ाइल तस्वीरों की जगह दिवंगत गायक की ब्लैक-एंड-व्हाइट तस्वीरें लगा दिया था या परोक्ष तौर पर छिपी हुईशोकसंवेदना पोस्ट कर रहे थे, जिसमें गायक का नाम या उनकी मृत्यु कैसे हुई, इसका उल्लेख नहीं था। पेंथोक ने कहा,‘लेकिन इनमें से कुछ साइट अब बंद हो रहे हैं। ‘चीनका विशाल ऑनलाइन निगरानी और सेंसरशिप तंत्र-द ग्रेट फ़ायरवॉल ऑफ़ चाइना-पिछले एक दशक में और अधिक अपारदर्शी हो गया है। अतीत में, तकनीक-प्रेमी व्यक्ति या विदेशी कनेक्शन वाले लोग नियंत्रण से बचने के लिए एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप और वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) को डाउनलोड कर सकते थे।
लेकिन अबये तेजी से मुश्किल हो रहे हैं और नए कानूनों के अनुसार जिनके उपकरणों में ऐसे सॉफ़्टवेयर पाए जाएंगे, उनको हिरासत में लिया जा सकता है या उन्हेंसंभावित मुकदमों का सामना करना पड़ सकता है। टीएआई में डिजिटल सुरक्षा कार्यक्रम प्रबंधक तेनज़िन थायई ने कहा कि चीन में किसी के लिए सुरक्षित रूप से ऑनलाइन संवाद करना मुश्किल हो सकता है।जब लोग टेनसेंट के वीचैट जैसे ऐप का उपयोग करते हैंतो ये ऐप खुद व खुद अपने को सेंसर करते रहते हैं। इन्हें कड़े सर्वेक्षण और सेंसर के लिए जाना जाता है। श्री थायई ने कहा,‘लोग अब भी भारत में अपने परिवार के साथ बातचीत करते हैं, लेकिन वे राजनीति पर बात नहीं करते हैं। ‘सूचनाओं के प्रवाह में कमी का असर दो तरह से होता है। एक तो देश के बाहर रह रहे तिब्बती अपने परिवार और घर से कटा हुआ महसूस करते हैं। दूसरे यह इस बात को प्रभावित करता है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया तिब्बत के बारे में किस तरह से लिखता है- या, इस तरह से लिखता है,जैसा कि अक्सर होता नहीं है।पेंथोक ने कहा, ‘कवरेज सत्यापित और विश्वसनीय सूचनाओं पर आधारित होना चाहिए। भले ही मीडिया इन चीजों पर रिपोर्ट करना चाहता हो, हालांकि,अक्सर वे ऐसानहीं करते हैं।‘