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-तिब्बत और तिब्बतियों की चिंता को लेकर शुरू दो दिवसीय सेमिनार
-बीटीएसएस की अनूठी पहल के चलते विश्व भर से उमड़े तिब्बत समर्थक
27 नवंबर। “भारत-तिब्बत समन्वय संघ” के “तिब्बत और तिब्बती: वर्तमान और भविष्य” विषयक दो दिवसीय (ऑनलाइन) अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के आज प्रथम दिन की शुरुआत सरस्वती वंदना और तिब्बती वंदना से प्रारम्भ हुई | समारोह के उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि के रूप में तिब्बत सरकार की सूचना और अंतरराष्ट्रीय सम्बन्ध मंत्री सुश्री नोरजिन डोलमा उपस्थित रहीं | उन्होने भारत और तिब्बत की सामाजिक एकता, समता और सुरक्षा पर कई बहुमूल्य विचारों से लोगों को अवगत कराया | सेमिनार की संरचनीय महत्ता और उसकी भूमिका पर प्रो. मनोज दीक्षित (पूर्व कुलपति डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय) जी ने अपना वक्तव्य दिया | श्री ओ. पी. तिवारी (पूर्व एयर वॉइस मार्शल, भारत) ने तिब्बत की सुरक्षा पर अपने विचार प्रस्तुत किये और उन्होने बताया कि तिब्बत क्यों महत्त्वपूर्ण है भारत देश के लिए | डॉ. एन. शिवा सुब्रमनियम (पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक, इसरो, भारत) ने तिब्बती विकास, उन्नयन एवं संवर्धन पर अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किये | सभी अतिथियों का स्वागत प्रो. पी. डी. जुयाल (कनवीनर, आई. सी. टीटी 2021) जी ने किया | प्रो. सुनील (एन.आई.टी. हमीरपुर) जी ने सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया | प्रथम सत्र का संचालन डॉ. सुमित्रा सिंह (एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा) द्वारा किया गया | अन्त में राष्ट्रगान से सत्र की समाप्ति हुई |
द्वितीय सत्र में भारत और तिब्बत को लेकर कई मुद्दों पर विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किये | इस सत्र के अध्यक्ष प्रो. बी. आर. कुकरेती जी थे | सत्र के प्रथम वक्ता के तौर पर श्री अजीत प्रसाद महापात्रा (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवं भारतीय गौ सेवा प्रमुख) जी उपस्थित रहे | उन्होने अपने वक्तव्य में तिब्बत की मुक्ति, तिब्बत उन्नयन और समस्याओं के निवारण पर सबका ध्यानाकर्षित किया | दूसरे वक्ता के रूप में डॉ. अशोक कुमार वार्सनेय (राष्ट्रीय आयोजन सचिव, आरोग्य भारती) जी उपस्थित रहे | उन्होने तिब्बत के इतिहास और तिबतियन चिकित्सा प्रणाली सोआरिग्पा के महत्त्व से सबको अवगत कराया | तीसरे और चौथे वक्ता के रूप में डॉ. राजकुमार उपाध्याय ‘मणि’ (हिन्दी विभागाध्यक्ष, एस.एस.जी. विश्वविद्यालय), डॉ. सुरेश कुमार (जिला प्रचारक, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भदोही) ने तिब्बत के साहित्य, इतिहास, महत्ता और समस्याओं पर अपने विचार प्रस्तुत किये साथ ही चीन से किस प्रकार तिब्बत को मुक्त किया जाये इस पर भी अपने विचार लोगों से सांझा किया | इस सत्र का संचालन डॉ. रुकमेश चौहान जी ने किया | डॉ. रुकमेश जी ने तिब्बत की सांस्कृतिक स्थिति एवं कैलाश मानसरोवर पर अपने विचार रखे |
तीसरे सत्र में भारत और तिब्बत से संबन्धित विभिन्न मुद्दों पर परिचर्चा की गई | इस सत्र के प्रथम वक्ता श्री ओजिन क्याब (ऑफिसर, ब्रिटिश टेलिकॉम) ने तिब्बत में हो रहे तिब्बतियों के मानवाधिकार के हनन के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया | दूसरे वक्ता श्री मैथ्यू अकेस्टर (प्रसिद्ध इतिहासविद) ने तिब्बत और मोन तवांग: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान संघर्ष के लिए इसके निहतार्थ विषय पर अपने विचार व्यक्त किये | तीसरे वक्ता आचार्य येशी फुन्स्तोक (पूर्व डिप्टी स्पीकर, सी.टी.ए.) ने तिब्बत की मुक्ति, चीन द्वारा किये जा रहे तिब्बतियों के मानवाधिकारों का हनन पर खुलकर अपना पक्ष रखा वैश्विक महामारी कोविड-19 के संदर्भ में चीन को आड़े हाथों लिया | सत्र का संचालन और आभार ज्ञापन सुश्री कनिका सूद द्वारा किया गया |
चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता प्रो. रीना दधीच, कोटा विश्वविद्यालय जी ने किया | उन्होने तिब्बत मीडिया, टेक्नोलाजी, साइबर नेटवर्क आदि पर अपने विचार व्यक्त किये | इस सत्र के प्रथम वक्ता श्री संजय गोस्वामी जी ने तिब्बत के इतिहास पर प्रकाश डाला | दूसरे वक्ता डॉ॰ प्रकाश कुमार जी ने भारत-तिब्बत में महिला शिक्षा का समाज पर प्रारम्भिक प्रभाव पर अपने विचार रखे | तीसरे वक्ता डॉ. तपन कुमार दास ने सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म का वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में महत्ता पर अपने गंभीर विचार प्रस्तुत किये | सत्र के आखिरी वक्ता डॉ. रवि कुमार गोंड़, सहायक प्रोफेसर हिन्दी, आई. ई. सी. विश्वविद्यालय, बद्दी, सोलन ने आदिकालीन हिन्दी कविताओं में बौद्ध दर्शन विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया | सभी विद्वानो का आभार ज्ञापन डॉ. रवि कुमार गोंड़, राष्ट्रीय मंत्री, युवा विभाग, भारत-तिब्बत समन्वय संघ द्वारा किया गया |