स्वदेश, 24 जुलाई, 2012
ललितपुर। भारत तिब्बत मैत्री संघ, फ्रैन्डस आफ तिब्बत, राष्ट्रीय युवा योजन्प्र, करूणा इंटरनेशनल व आजादी बचाओ आंदोलन के संयुक्त तत्वाधान में सुधाकर तिवारी की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजित की गयी। बैठक में तिब्बत पर चीनी शासन के विरोध में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा लगातार किये जा रहे आत्मदाह की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की गयी व चीनी सरकार द्वारा तिब्बत में धार्मिक स्वतंत्रता व तिब्बत की आजादी की मांग कर रहे तिब्बतियों पर ढाए जा रहे जुल्मों की तीब्र स्वरों में निंदा की गयी।
भारत तिब्बत मैत्री संघ के अध्यक्ष सुधाकर तिवारी ने बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि तिब्बत की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले व दलार्इ लामा के प्रति श्रद्धा रखने वाले बौद्ध भिक्षुओं को चीन सरकार अलगाववादी मानकर जेलों में ठूस रही है व उन्हें शरीरिक व मानसिक यातनायें देकर उनकी हत्या करवा रही है।
उन्होंने कहा कि विगत वर्ष 2009 से लेकर अब तक तिब्बत युवाओं व बौद्ध भिक्षुओं द्वारा आत्मदाह के इस नए सिलसिले ने वियतनाम व टूयूनीशिया में युवाओं के आत्मदाह की उन ऐतिहासिक घटनाओं की याद तरोताजा कर दी है जिन्होंने दुनिया के इतिहास का रूख बदल दिया। जिसके चलते उमरीका समेत दुनियाभर में एक ऐसे मानवाधिकार आंदोलन का जन्म हुआ जिसने अमेरिका को वियतनाम से सेना वापस बुलाने पर मजबूर कर दिया।
इसी तरह हाल में ही टयूनीशिया के एक व्यक्ति ने स्थानीय आधिकारियों के अत्याचार के खिलाफ आत्मदाह कर अफ्रीका व पश्चिमी एशिया में एक ऐसे लोकतांत्रिक आंदोलन की बारूद सुलगा दी। जिसने पिछले दिनों टयूनिशिया के तानाशाह मुहम्मद गददाफी के तख्ते को पलट दिया व बहरीन, सौरिय, यमन, अलजीरिया, जार्डन, मोखको, र्इराक व मारितानिया समेत कर्इ देशों में गृहयुद्ध का बिगुल बज चुका है।
तिवारी ने कहा कि इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि जिस कम्युनिष्ट चीनी सरकार ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरोध में सन 1970 के दशक में देशद्रोह व विदेशी एजेंट बता रहा है। इन आत्मदाहों ने सचमुच पिछले 60 वर्षों से चल रहे चीनी अनिवेशवाद के ऐसे कर्इ पहलुओं के केन्द्र में ला खड़ा किया है। जिन्हें छिपाने में चीन सरकार कर्इ दशकों से जुटी हुर्इ है। पिछले छह दशक से चीनी ड्रैगन यह दावा करता आ रहा है कि अपनी मरजी से चीन में शामिल होने के बाद तिब्बत को चीन ने स्वग बना दिया है। दुनिया यह देखकर हैरान है कि तिब्बत की आजादी व दलार्इ लामा के समर्थन में जान गंवाने वाले तिब्बती युवाओं की इस पीढ़ी ने न तो कभी आजाद तिब्बत का स्वाद चखा व न दलार्इ लामा को देखा है। बलिक यह पीढ़ी चीनी प्रचार व कम्युनिस्ट शिक्षा की ब्रेन वाशिंग व्यवस्था में पली बढ़ी है।
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि चीनी कम्युनिष्ट नेताओं ने अगर तिब्बत में दमन करना, बंद नही किया तो उनके शासन का भी वैसा ही अंत हो सकता है जैसे वियतनाम में, अमेरिका का कम्युनिस्ट सोवियत संघ का और टयूनिशिया व लीबिया के तानाशाही का हुआ।
इस अवसर पर विनोद त्रिपाठी, संजय सेन, प्रदीप रावत, जितेन्द्र पंथ, सोनू यादव, रनेन्द्र राठौर, अखिलेश पाठक, अनुज त्रिपाठी, पुनीत रजक, सुनेन्द्र सिंह पटेल, देशबंधु नरवरिया, संध्या तिवारी, दिव्यांशी पाण्डेय, रेखा रजक, शिखा जैन, गीता वर्मा, अनुपमा पाण्डेय आदि ने भी अपने विरोध के स्वर मुखरित किये।