चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की सरकार तिब्बत को विश्व इतिहास के पटल से मिटाने पर आमादा है! एक सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण कदम के तौर पर चीनी सरकार अब अपने किसी भी आधिकारिक अंग्रेजी विज्ञप्ति में ‘तिब्बत’ शब्द का उपयोग नहीं करेंगे, बल्कि तिब्बत के बजाय ‘ज़िज़ांग’ कहा जाएगा।
‘चीन के नस्लीय अल्पसंख्यकों को मूल चीनी के साथ एकीकृत करने’ की आड़ में राष्ट्रपति शी जिनपिंग चाहते हैं कि दुनिया स्वतंत्र तिब्बत के अस्तित्व को ही भूल जाए! आइए इस भाषाई परिवर्तन के पीछे पीआरसी की प्रेरणाओं और दुनिया पर इसके संभावित परिणामों पर चर्चा करते हैं।
तिब्बत का सफाया
चीनी अधिकारी १९४९ में तिब्बत पर कब्जे के बाद से मुख्य रूप से अंग्रेजी संचार में तिब्बत को इसी नाम से संबोधित करते रहे हैं। यह कदम पश्चिमी परंपराओं के साथ तालमेल दिखाने के लिए था। इसके अलावा, इस कदम ने परतंत्र हो गए तिब्बतियों के दिलों में तिब्बत की स्वतंत्रता के छोटे दीपक को प्रज्वलित रहने दिया।
हालांकि, चीनियों ने हाल ही में इस क्षेत्र को ‘ज़िज़ांग’ कहना शुरू कर दिया है। यह तिब्बत के लिए मंदारिन में मानक चीनी अनुवाद है। इस प्रकार, राष्ट्रपति शी की सीसीपी का इस कदम से स्वतंत्र तिब्बतियों को उनकी वास्तविक पहचान के किसी भी दावे से वंचित करने का लक्ष्य है। एक विलक्षण राष्ट्रीय पहचान के लिए अपने छद्म प्रयास में सीसीपी राष्ट्र के भीतर हान नस्ल की श्रेष्ठता और कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादारी दिखाने को बढ़ावा दे रही है। हालांकि, ज़िज़ांग के उपयोग चीन में घरेलू स्तर तक सीमित नहीं होगा। सीसीपी जल्द ही वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) में शामिल अपने साझेदार देशों पर भी इसी शब्द का उपयोग करने के लिए दबाव डाल सकती है! विशेषज्ञों का आकलन है कि तिब्बत का उपयोग करने वाली संस्थाओं के खिलाफ आर्थिक दबाव और बहिष्कार सहित जबरदस्ती का इस्तेमाल किया जा सकता है।
चीन की जनसांख्यिकीय क्रूरता
तिब्बत पर कब्जे के बाद से सीसीपी की सरकार ने १२ लाख से अधिक तिब्बतियों को मार डाला है! चीनी ड्रैगन द्वारा तिब्बती भूमि पर इस ज़बरदस्ती कब्जे पर दुनिया के शांति समर्थक चुप हैं! सीसीपी ने यह सुनिश्चित करने के लिए कि तिब्बत उसके समर्थन में आ जाए, क्षेत्र में जान-बूझकर जनसांख्यिकीय परिदृश्य में बदलाव कर दिया है। चीन ने क्षेत्र की कहानी को नया रूप देने के लिए इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मुख्य भूमि के चीनी लोगों को फिर से बसाया है। इस तरह उसने तिब्बत की मूल संस्कृति को मिटाने का काम कर रहा है। मूल तिब्बती भाषा को प्रतिबंधित कर दिया गया है और बौद्ध जड़ों को उखाड़ दिया गया है! कई बौद्ध मंदिरों पर सीसीपी ने कब्ज़ा कर लिया है!
इस प्रकार, सीसीपी की कोशिश नाम में परिवर्तन कर तिब्बत पर अपना शासन मजबूत करने की है! इसके अलावा, सिमेंटिक स्विच तिब्बत की आजादी की लड़ाई पर वैश्विक कथानकों को नया आकार देने के कम्युनिस्ट पार्टी के प्रयासों के एक नया मोर्चा खोल रहा है। जल्द ही, चीनी तिब्बती शरणार्थियों को अलगाववादियों के रूप में प्रचारित करेंगे! वे इस कथ्य को प्रसारित करेंगे कि तिब्बत कभी भी एक अलग राष्ट्र नहीं था। वे लंबे समय से गुलाम बने इस राष्ट्र और इसके लोगों को किसी भी ऐतिहासिक या क्षेत्रीय पहचान से वंचित कर देंगे। जो लोग तिब्बत शब्द के उपयोग को चुनौती देंगे, उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन समर्थकों द्वारा छिछालेदर की जाएगी!
विचारणीय बिंदु
असलयित यह है कि तिब्बत की निर्वासित सरकार आज भी काम कर रही है। दलाई लामा तिब्बती राज्य के धार्मिक और राजनीतिक प्रमुख हैं। दोनों इस प्रयास पर सहमत हैं कि तिब्बत पर अपने दावे को वैध बनाने के लिए चीन भाषाई बकवास का तरीका अपना रहा है।
तिब्बत को ज़िज़ांग कहनेकी चीन की जिद को भाषाई परिवर्तन से कहीं अधिक माना जाना चाहिए! यह अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को मजबूत करने के लिए एक रणनीतिक कदम है। चूंकि पीआरसी विश्व स्तर पर कथानकों को नियंत्रित करना चाहता है, इसलिए आशंका है कि अगले कुछ दिनों में भारत को भी अपने शत्रु पड़ोसी से अरुणाचल प्रदेश का नया नाम सुनने को मिल सकता है। सीसीपी तिब्बत को भाषाई युद्ध के मैदान में ले गई है और तिब्बत निश्चित रूप से क्षेत्र में सीसीपी की घृणित महत्वाकांक्षाओं को प्रतिबंधित करने में विफल रहेगा। इस प्रकार, चीन के हाथों अपनी ज़मीन खोने के ७५ साल बाद तिब्बत विश्व इतिहास से अपना नाम मिटने का गवाह बन सकता है!
क्या दुनिया निष्पक्ष भाव से देखती रहेगी, क्योंकि पीआरसी इस भाषाई पैंतरेबाज़ी के माध्यम से अपनी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं का संकेत दे रहा है? तिब्बत के अंतिम अवशेषों को जलाते समय चीनी ड्रैगन के रास्ते में कौन खड़ा होगा?!!? इन प्रश्नों के उत्तर की भविष्यवाणी करना आसान नहीं है। आइए आशा करें कि ज़िज़ांग नाम तिब्बत के ताबूत में आखिरी कील साबित नहीं होगी!