अपराधियों को ढूंढने के लिए रात-दिन जांच की जा रही है।
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तिब्बत के अंदर से रेडियो फ्री एशिया के तीन सूत्रों ने उसे बताया कि चीनी अधिकारी तिब्बत में घर-घर जाकर तिब्बती बच्चों को शीतकालीन अवकाश के दौरान निजी क्लास करने और किसी भी तरह के धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास तेज कर दिए हैं।
सूत्रों ने कहा कि अधिकारी ‘आवासीय क्षेत्रों और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों’ में औचक निरीक्षण कर रहे हैं।
अधिकारियों ने २०२१ में तिब्बती आबादी वाले विभिन्न प्रांतों में तिब्बती बच्चों को जाड़े की छुट्टियों में तिब्बती भाषा की अनौपचारिक कक्षाओं या कार्यशालाओं में पढ़ने से रोकना शुरू किया। यह एक ऐसा कदम था, जिसके बारे में स्थानीय तिब्बतियों और प्रभावित बच्चों के माता-पिता ने कहा कि इससे बच्चों का उनकी मूल भाषा से जुड़ाव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
सूत्रों ने सुरक्षा कारणों से नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि इस साल जनवरी की शुरुआत में चीनी शिक्षा विभाग ने इस प्रतिबंध को दोहराते हुए एक नोटिस जारी किया। नोटिस में स्थानीय अधिकारियों को तिब्बती बच्चों की अतिरिक्त पढ़ाई की निगरानी और जांच तेज करने और नियम का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का आदेश दिया गया है।
स्थानीय अधिकारियों को भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि आवासीय क्षेत्रों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में दिन और रात के स्तर पर लगातार जांच की जानी चाहिए।
इनमें से प्रत्येक क्षेत्र के सूत्रों ने आरएफए को बताया कि तिब्बत की राजधानी ल्हासा में स्थानीय अधिकारियों, गांसु प्रांत में लाब्रांग मठ और किंघई प्रांत में युशू तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर ने शिक्षा विभाग के आदेशों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं।
ल्हासा शहर के अधिकारियों ने ३० नवंबर, २०२३ को एक नोटिस जारी किया, जिसमें ३० दिसंबर से २७-२९ फरवरी, २०२४ तक सभी तीन स्तरों के स्कूलों के लिए शीतकालीन अवकाश की घोषणा की गई। नोटिस में विस्तार से बताया गया कि माता-पिता अवकाश के दौरान अपने बच्चों को किस तरह की शिक्षा दे सकते हैं। साथ ही बताया गया कि शिक्षकों को अवकाश अवधि के दौरान क्या-क्या कार्य करने की आवश्यकता होगी।
कोई धार्मिक शिक्षा नहीं
सूत्रों से आरएफए को प्राप्त नोटिस में कहा गया है कि अभिभावकों को बच्चों के स्कूलों की धार्मिक शिक्षा में खुद भी शामिल नहीं होना चाहिए और यह ‘सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे धर्म के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त रहें।‘
नोटिस में कहा गया है कि तिब्बती अभिभावकों को अपने बच्चों को इस तरह से प्रशिक्षित करना चाहिए कि वे ‘स्वेच्छा से पूजा स्थलों से दूरी बनाए रखें और वे किसी भी धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने की इच्छा न करें।‘
दक्षिण-पश्चिमी चीन के किंघई प्रांत में युशू तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर के सूत्र ने कहा, ‘स्थानीय अधिकारी घर-घर जाकर जांच के अलावा तिब्बती बच्चों का सर्वेक्षण भी कर रहे हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि उन्हें स्कूल से बाहर के पाठ्यक्रमों में कौन से विषय पढ़ाए जा रहे हैं और कहां पढ़ाए जा रहे हैं।‘
सूत्रों ने कहा कि शिक्षा विभाग के नोटिस में कहा गया है कि तिब्बती बच्चे केवल सरकार द्वारा अधिकृत शिक्षकों और संगठनों द्वारा पढ़ाए जाने वाले और अधिकारियों द्वारा अनुमोदित विषयों पर ही पूरक कक्षाओं और कार्यशालाओं में भाग ले सकते हैं।
उन्होंने बताया कि नोटिस में तिब्बती बच्चों की धार्मिक गतिविधियों में भागीदारी पर जारी प्रतिबंध पर जोर देने वाले आदेश भी हैं।
ज़ियाहे काउंटी स्थित लैब्रांग मठ के एक सूत्र ने कहा, ‘अतीत में यहां तिब्बती बच्चों को शीतकालीन अवकाश के दौरान तिब्बती व्याकरण, धर्म, गणित और कहानी कहने के क्षेत्र में पूरक, निजी ट्यूशन प्रदान करने की मजबूत परंपरा थी। – लैब्रांग मठ तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के बाहर सर्वाधिक भिक्षुओं की आबादी वाला केंद्र है।‘
‘तिब्बती छात्रों को अब राजनीतिक पुन: शिक्षा कार्यक्रम चलाने वाले केवल वही गिने-चुने संगठन और व्यक्ति पढ़ा सकते हैं, जिन्हें चीनी सरकार ने अधिकृत किया हैं।‘
उसी स्रोत ने तिब्बती भाषा के अध्ययन और तिब्बती बच्चों के धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू किए जाने की भी पुष्टि की है। सर्वविदित है कि चीन तिब्बती भाषा और तिब्बत के धर्म पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ‘धर्म का चीनीकरण’ अथवा ‘धर्म को चीन के समाजवादी समाज के अनुकूल बनाने।‘ की योजनाओं को थोपने के प्रयासों को तेज कर रहा है।
एक अन्य सूत्र ने आरएफए को बताया कि स्कूलों और स्कूल के बाहर के कार्यक्रमों में तिब्बती भाषा के अध्ययन पर प्रतिबंध के कारण स्पष्ट है कि युवाओं और तिब्बती बच्चों का अपनी मूल भाषा और पहचान से संपर्क टूट गया है। यह बहुत ही चिंताजनक और खतरनाक प्रवृत्ति है।‘
कक्षाओं में केवल चीनी भाषा
रेडियो फ्री एशिया ने मार्च २०२२ में बताया कि चीनी अधिकारी स्कूलों में तिब्बती भाषा की शिक्षा को हटाकर चीनी करने की नीतियों पर आगे बढ़ रहे हैं। इसके तहत सभी कक्षाएं केवल चीनी भाषा में पढ़ाई जाएंगी। आलोचकों का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य तिब्बती बच्चों का उनकी राष्ट्रीय पहचान और पारंपरिक भाषा और संस्कृति के साथ उनके संबंधों को कमजोर करना है।
एक साल पहले न्यू मैक्सिको स्थित सांता फ़े नामक तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि ०४ से १८ वर्ष की उम्र के बीच के लाखों तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से अलग किया जा रहा है और उन्हें सरकार द्वारा संचालित बोर्डिंग स्कूलों में जबरन भर्ती किया जा रहा है। वहां शिक्षक केवल मंदारिन में बोलते हैं और नर्सरी में बाल-कविताओं से लेकर सोते समय तक मंदारिन में ही कहानियां और लोरियां सुनाई जाती हैं। इसके बीच दिन भर में पढ़ाए जाने वाले सभी स्कूली पाठ्यक्रम भी मंदारिन में ही होते हैं।‘
अधिकार कार्यकर्ताओं ने तिब्बती बच्चों को पूरी तरह से चीनी बहुमत वाली आबादी में विलीन कर देने के इस कदम की निंदा की है और दीर्घकाल में तिब्बती पहचान के अस्तित्व पर पड़नेवाले इसके संभावित दुष्प्रभावों की आशंका जताई है।
सितंबर २०२३ की आरएफए जांच रिपोर्ट के अनुसार, चीनी कब्जे वाले तिब्बत में लौटने वाले प्रवासी तिब्बतियों ने इस बात कि पुष्टि की कि वे बोर्डिंग स्कूलों में जाने वाले अपने युवा रिश्तेदारों में इस कदम के दुष्प्रभाव को देख रहे हैं। वहां की पूरी पढ़ाई केवल मंदारिन में होती है और वे आपस में भी इसी भाषा में बात करते हैं।