तिब्बतनरिव्यू.नेट, 11 दिसंबर, 2018
भारत के धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती प्रशासन ने 10 दिसंबर को परमपावन दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की 29वीं वर्षगांठ मनाई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा थे जबकि ग्लोबल कोऑर्डिनेटर कलेक्टिव ससौफिट कांगोलेस ह्यूमन राइट्स ग्रुप के अध्यक्ष मिस्टर एंड्रिया पापुस नगोंबेट मालवे विशेष अतिथि थे।
मुख्य अतिथि को सभा में अपना संबोधन देते हुए उद्धृत किया गया कि, ‘आज की दुनिया हिंसा, धार्मिक संघर्ष और संघर्ष से पीड़ित है। ऐसे में महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों को हल करने की कुंजी परमपावन दलाई लामा के शांति और अहिंसा के संदेश में है।’
उन्होंने अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत के साथ तिब्बती बौद्ध धर्म की तारतम्यता स्थापित की।
तिब्बती लोगों के साथ सहानुभूति और एकजुटता प्रदर्शित करते हुए विशेष अतिथि मालेवा ने कहा, ‘आपके इतिहास के सबसे अंधेरे क्षण में भी आप अपनी प्राचीन संस्कृति से जो नैतिक बल प्राप्त करते हैं, उसने शांति के लिए आपकी भूख को जीवित रखा है। आप तिब्बती लोग किसी से भी अधिक जानते हैं कि उत्पीड़क उत्पीड़न का वास्तविक शिकार है। चीनी लोग भी अधिनायकवादी शासन के शिकार हैं।’
और उन्होंने कहा है, ‘हम यहां धर्मशाला में आते हैं इसलिए नहीं कि हमारा एक ही दुश्मन है, बल्कि इसलिए कि हम एक सामूहिक आशा रखते हैं, शांति की आशा।
राष्ट्रपति लोबसांग सांगेय ने इस अवसर के लिए काशाग का भाषण दिया, जैसा कि निर्वासित तिब्बती संसद के पेमा जुंगनी ने दिया था।
जिन अन्य लोगों ने इस अवसर पर संबोधित किया उनमें भारत-तिब्बत मैत्री संघ (आईटीएफए) के अध्यक्ष श्री अजय सिंह मंगोटिया और एसोसिएशन के सलाहकार श्री राम स्वरूप शामिल हैं।
पिछले वर्षों की तरह, इस अवसर को चिन्हित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय हिमालयी महोत्सव का आयोजन किया गया, जिसे आईटीएफए और तिब्बती सेटलमेंट कार्यालय द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था।