हिंदी हिंदुस्तान, 12 मार्च 2013
मेरठ। अधिकारों और आजादी की लड़ार्इ लड़ते हुए वर्षों बीत गए। हमने कभी हार नहीं मानी, लेकिन आखिर कब तक तिब्बती अपने अधिकारों से वंचित होकर जीता रहेगा। चीन में संविधान है, लोकतंत्र है और वहां के लोगों को मूल अधिकार मिले हुए हैं। दूसरी ओर तिब्बतियों को यही अधिकारी मांगने के लिए प्रवासियों जैसा जीवन यापन करना पड़ रहा है। हम चीनियों जैसा अधिकार और स्वायत्त शासन चाहते हैं। हम चीन से अलग नहीं होना चाहते।
आर्इ आर्इएमटी में आयोजित कार्यक्रम में दलार्इ लामा ने कहा कि कोर्इ भी देश बिना संवैधानिक मूल्यों और नागरिकों को मूल अधिकार दिए ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकता। तिब्बती अपने अधिकारों को लड़ने के लिए आज अपने ही देश से बेगाने हैं। वे भारत में प्रवासी बने हुए हैं। भारत की भी तिब्बत की मदद करने की एक सीमा है। भारत की अपनी खुद की बहुत समस्याएं है। विश्व मंच ने तीन बार तिब्बतियों की आवाज को मजबूती से उठाया। इसके बावजूद तिब्बत के लोग मूलभूत नागरिक आधिकारों से वंचित हैं।
चीन शकितशाली राष्ट्र है और दुनिया में उभरती आर्थिक महाशकित भी। वह अपनी निजी हितों के चक्कर में तिब्बतियों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित कर रहा है। तिब्बत की जनसंख्या के बराबर चीन में पुलिस है। तिब्बत इन हालातों में वर्षों से आजादी की लड़ार्इ लड़ रहा है।