टोक्यो। टोक्यो विश्वविद्यालय के कोमाबा परिसर में १५ जुलाई २०२३ को दूसरा मंगोल-तिब्बत सांस्कृतिक और धार्मिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। दक्षिणी मंगोलियाई कांग्रेस ने सह-आयोजक के रूप में जापान स्थित तिब्बत हाउस और ताइवान न्यू स्कूल फॉर डेमोक्रेसी के साथ संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी १९१३ में तिब्बत और मंगोलिया के बीच हुई तिब्बत-मंगोल मैत्री और गठबंधन संधि की ११०वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित की गई।
संगोष्ठी का संचालन करने वाले श्री मिउरा कोटारो ने अतिथियों, विद्वानों और दर्शकों का स्वागत किया और संगोष्ठी की अवधारणा को संक्षेप में समझाया, ‘संगोष्ठी का उद्देश्य तिब्बत और तिब्बत के पुराने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों का पता लगाना और उन्हें उचित महत्व देना है। मंगोलिया प्राचीन काल से ही विद्वानों द्वारा इस विषय पर चर्चा करने और शोध- पत्र प्रस्तुत करता रहा है।‘ संगोष्ठी में विद्वानों से दोनों देशों के बीच १९१३ की संधि का सम्मान करने और उसे देखने, इसकी वैधता और चीनी कम्युनिस्ट शासन के साथ तिब्बत-मंगोल संघर्ष को हल करने को लेकर बहस करने का भी आग्रह किया गया।
लगभग १५ मंगोलियाई, जापानी, ताइवानी और तिब्बती विद्वानों ने इस विषय पर बात की और तिब्बत-मंगोल अध्ययन के विभिन्न पहलुओं और १९१३ की संधि पर अपने दृष्टिकोण के समर्थन में दस्तावेज प्रस्तुत किए। दक्षिणी मंगोलिया कांग्रेस के अध्यक्ष श्री टेम्सेल्टशोबचुड ने आयोजकों की ओर से बीज भाषण दिया। कालोन नोरज़िन डोल्मा ने मुख्य अतिथि के रूप में तिब्बत की ओर से प्रारंभिक टिप्पणी दी।
कालोन नोरज़िन डोल्मा ने इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी के लिए आयोजकों को धन्यवाद दिया और तिब्बत के मंगोलिया के साथ लंबे ऐतिहासिक और धार्मिक संबंधों पर बात की। उन्होंने इस पर बात की कि कैसे १९१३ की संधि यह साबित करने के लिए सबसे बड़ा प्रमाण है कि तिब्बत और मंगोलिया उस समय स्वतंत्र देश थे। उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में संगोष्ठी आयोजित करने में समर्थन के लिए टोक्यो विश्वविद्यालय को भी धन्यवाद दिया।
संगोष्ठी को तीन सत्रों में विभाजित किया गया था। पहला सत्र ‘१९१३ की तिब्बत- मंगोलिया मैत्री संधि और इसका महत्व’ पर था। मंगोलिया और चीन के विशेषज्ञ शोध विद्वान डॉ. मियावाकी जुंको, केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान, वाराणसी से प्रोफेसर जम्पा समतेन और ताइवान न्यू स्कूल फॉर डेमोक्रेसी के एम़ एस़ मैनटिंग हुआंग ने इस विषय पर बात की और अपने शोध- पत्र प्रस्तुत किए।
संगोष्ठी का दूसरा सत्र ‘तिब्बत–मंगोलिया के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध और इसका महत्व’ विषय पर था। मंगोल विद्वान मिस्टर बाओयिंटु, टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रो. हिरानो सातोशी और जापान स्थित तिब्बत हाउस के डॉ. आर्य छेवांग ग्याल्पो ने इस विषय पर बात की और अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए।
तीसरे सत्र में मंगोल विद्वान मिस्टर आर्का, तिब्बत नीति संस्थान के एम़ एस़ फेंटोक और ताइवान के न्यू स्कूल फॉर डेमोक्रेसी के श्री ज़ेंग जियान-युआन ने ‘मंगोलिया और तिब्बत में वर्तमान स्थिति और भविष्य में राष्ट्रीय आंदोलन की एकजुटता की संभावना’ विषय पर बात की और पेपर प्रस्तुत किए।‘
विद्वानों की बातचीत और प्रस्तुतियों को दर्शकों ने खूब सराहा और प्रत्येक सत्र के अंत में प्रश्न और उत्तर में भाग लिया। टोक्यो विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अको टोमोको ने अपने समापन भाषण में विश्वविद्यालय परिसर में एशिया के इतिहास के इस महत्वपूर्ण विषय पर विद्वानों की चर्चा और बहस पर संतोष व्यक्त किया।‘आयोजकों की योजना विद्वानों के शोध-पत्रों को जापानी, अंग्रेजी और चीनी भाषा में प्रकाशित कराने की है। कई लोगों ने कई विद्वानों और आम जनता को संगोष्ठी में भाग लेते और एशियाई इतिहास के इस हिस्से में रुचि लेते हुए देखकर खुशी व्यक्त की। कालोन नोरज़िन डोल्मा ने विद्वानों के साथ बातचीत की और उन्हें उनकी प्रस्तुतियों और शोध-पत्रों के लिए बधाई दी। कालोन कल जापान स्थित तिब्बत हाउस में जापान में रह रहे तिब्बतियों से मुलाकात करेंगे।