भारत का मीडिया पिछले अनेक वर्षों से सरकार को आगाह कर रहा था की चीन सरकार तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाकर उसके जलप्रवाह को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है। ब्रह्मपुत्र को तिब्बत में सांगपो कहते हैं और सांगपो के प्रवाह को अवरुद्ध करके अथवा उसकी दिशा बदलकर चीन उत्तर -पूरब में पूरे प्रर्यावरण को बदल सकता है। ऐसी दशा में तिब्बत ब्रह्मपुत्र का प्रयोग भारत के खिलाफ एक हथियार के रुप में कर सकता है और चीन जिस प्रकार से पाकिस्तान का प्रयोग करके भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है उसमें यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी कि इस जल -हथियार का प्रयोग भी भविष्य में किया जाए। कुछ साल पहले हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में पारचू नदी में भयंकर बाढ आयी थी जिसके कारण जान-माल की बहुत हानि हुई थी। उस समय भी ऐसी खबरें आ रही थीं कि चीन सतलुज नदी के पानी को रोक रहा है। लेकिन चीन अब तक ब्रह्मपुत्र पर बनाए जा रहे जल-विद्युत प्रकल्प से स्पष्ट ही इनकार करता रहा है और चीन सरकार का वही इनकार भारत सरकार भारतवासियों का परोसती रही। और पूरे जोर से इस बात पर भी बल देती रही कि भारत के लोग इस पर विश्वास करें। उपर से देखने पर यह सब बडा निर्दोष लगता है। चीन की सरकार कोई बात कहती है और भारत की सरकार पूरे जोर से उसकी गवाही देती है तो भारत के लोग उस पर विश्वास क्यों नहीं करते? लगभग यही स्थिति 1950 के बाद पैदा हुई थी जब चीन सरकार सिक्यांग और तिब्बत को जोडने वाली सडक बना रही थी। यह सडक भारतीय क्षेत्र में से होकर गुजरती थी। मीडिया बार-बार हल्ला मचा रहा था परन्तु उस समय के प्रधानमंत्री पं.नेहरु आम जनता की छोडिए , संसद में संसद सदस्यों तक को डांटते थे कि यह सब झूठी अफवाहें हैं। इन पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि भारत सरकार के आंतरिक सूत्र और गुप्तचर विभाग इतना मृतप्राय हो चुका था कि उसे तेजी से निर्मित हो रही इस सडक के बारे में सूचना नहीं दे रहा था। परन्तु भारत सरकार इस सूचना को देश के लोगों से छिपाने के लिए ही अपना पूरा कौशल लगा रही थी। अंततः चीन ने स्वयं ही सडक पूरा हो जाने के बाद इसकी घोषणा करके हडकम्प मचा दिया था। अब ब्रह्मपुत्र पर बनाए जा रहे बांध को लेकर लगता है कि इतिहास अक्षरशः अपने आप को दोहरा रहा है। मीडिया के चिल्लाने और संसद सदस्यों के गुस्साने के बावजूद भारत सरकार आजतक देश को यही बताती रही कि ब्रह्मपुत्र पर कोई बांध नहीं बनाया जा रहा। परन्तु अब चीन सरकार ने भारत के विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा को चीन में ही बुलाकर कायदे से सूचित किया है कि तिब्बत में चीन ब्रहमपुत्र पर बांध बना रहा है। भारत सरकार ने उसी ईमानदारी से, जिस ईमानदारी से आज से 60 साल पूर्व पं0 नेहरु ने भारत में चीन द्वारा सडक निर्माण की सूचना दी थी, एक बार फिर देश को बता दिया है कि चीन ब्रह्मपुत्र के पानी को रोक रहा है। आखिर, भारत सरकार इतने वर्षों से इस बात को देश के लोगों से क्यों छुपाती रही? ऐसा तो हो नहीं सकता कि 15-20 दिन पहले चीन ने एस.एम कृष्णा को तिब्बत में बुलाकर उनसे इस बांध का भूमिपूजन करवाया हो और तभी उन्हे इस प्रकल्प की सूचना मिली। जाहिर है यह प्रकल्प काफी लम्बे समय से चल रहा था और भारत सरकार को भी इसका पता था लेकिन सरकार चीन से इस मुद्दे को उठाने की हिम्मत नहीं उठा पा रही थी अलबत्ता वह देश के लोगों से इसको छुपाने में ही अपनी मैनेजमेंट मान रही थी।
अभी भी, चीन ने भारत सरकार को इस बांध की सूचना देते हुए यह भी जोड दिया है कि इसके बारे में भारत को बताना जरुरी तो नहीं था लेकिन क्योंकि चीन भारत को अपना बेस्ट फ्रेंड मानता है और दोस्तों से कोई चीज छिपानी नहीं चाहिए इसलिए , उसने यह सबकुछ बताया है। यह बांध पिछले कई सालों से बन रहा है लेकिन क्या भारत सरकार इस देश के लोगों को अपना बेस्ट फ्रेंड नहीं मानती जो कि इसे छिपाने में ही अपनी ताकत लगाती रही। चीन ने तिब्बत में रेलवे लाईन को निर्माण करके उसे लगभग भारत की सीमा तक पहुंचा दिया है, ब्रह्मपुत्र और सतलुज के पानी से छेडखानी करके उसने एक नया जलहथियार बनान शुरु कर दिया है। एक बात का और ध्यान रखना चाहिए कि चीन इस प्रकार की कोई भी सूचना देने से पहले समय का चयन बहुत सावधानी से करता है। जब चीन के किसी प्रधानमंत्री और राष्टृपति को हिन्दुस्तान में आना होता है तो उसके दस दिन पहले वह यह घोषणा करता है कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है। अब जब अगले महीने भारत की राष्ट्पति चीन की आधिकारिक यात्रा पर जा रहीं हैं तो चीन ने ब्रह्मपुत्र बांध की घोषणा करके अपना वहीं पुराना पैंतरा अपनाया है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि कल भारत सरकार ब्रह्मपुत्र पर बनाए जा रहे इस बांध को भी भारत -चीन मैत्री का प्रतीक ही घोषित कर दे जिस प्रकार उसने 1954 मंे तिब्बत की हत्या करने वाली भारत-तिब्बत (चीन) संधि को पंचशील का नाम दे दिया था। भारत सरकार जिस प्रकार चीन का तुष्टीकरण के मार्ग पर चली हुई है उससे अंतराष्ट्रीय राजनीति में भारत अपमानित भी हुआ है और पडोसी देशों में उसकी विश्वसनीयता भी घटती है। भारत सरकार को चाहिए कि वह चीन से इस बात का आग्रह करे कि जब तक तिब्बत समस्या का संतोषजनक समाधान नहीं हो जाता तब तक वह बलपूर्वक अधिग्रहित किए गए तिब्बत में भारी प्रकल्पों को प्रारम्भ न करे। हिमालयी क्षेत्रों में चीन को पानी के प्राकृतिक प्रवाहों से छेडखानी की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि इससे पूरे देश की पारिस्थितिकी बदल जाएगी। जब तक भारत सरकार कैम्पफोलोवर की अपनी रणनीति नही ंबदलती तब तक चीन भारत को इसी प्रकार धकियाता रहेगा। सरकार को भारत की गरिमा के अनुकूल आचरण करना चाहिए। परन्तु क्या सोनिया गांधी की छत्रछाया में चलने वाले नेतृत्व में उस गरिमा से रु-ब -रु होने का साहस भी बचा है ?
जिन लोगों को यह भ्रम है कि भारत सरकार के मैत्रीपूर्ण रवैये से चीन अपने शत्रुतापूर्ण व्यवहार को त्यागदेगा, वे स्वयं ही भ्रम में नहीं बल्कि देश को भी भ्रमित करना चाहते हैं। चीन इस क्षेत्र में भारत को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है इसलिए वह हर समय और हर स्थान पर भारत का विरोध करता रहता है। चीन ताकत की भाषा समझता है, तुष्टीकरण की चालें नहीं। जब उसने वियतनाम पर आक्रमण किया था तो छोटा सा देश होते हुए भी वियतनामियो ने जिस प्रकार से उससे टक्कर ली, उसके बाद उसका साहस वियतनाम से भिडने का नहीं हुआ। इसके विपरीत भारत की स्थिति यह है कि ब्रह्मपुत्र पर बन रहे बांध को रुकवाना तो दूर भारत सरकार चीन से इस मुद्दे पर विरोध करने का साहस भी नहीं जुटा पा रही है। यह प्रश्न भारत की, खासकर उत्तर पूर्व भारत की जीवन रेखा से जुडा हुआ प्रश्न है परन्तु दुर्भाग्य यह है कि भारत सरकार इसे छुपाने का प्रयास कर रही है न कि इसका सामना करने का।
डॉं कुलदीप चंद अग्निहोत्री
29 अप्रैल, 2010