टी. जी. आर्या
भारत के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्रों में से एक ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने अपने शुक्रवार (13 दिसंबर 2019) के अंक में चीनी कम्युनिस्ट शासन के मुखपत्र ‘चाइना वॉच डेली’ द्वारा प्रायोजित किन्हीं युआन शेंग्गाओ के दो मनगढ़ंत लेखों के साथ पूरे पेज का परिशिष्ठ प्रकाशित किया है। इन लेखों का शीर्षक है ‘डिकेड्स ऑफ प्रोग्रेस हाइलाइटेड’ और ‘अनपैरेलेल्ड चेंज एक्सप्रीएसेंस्ड विदिन ए स्पेस ऑफ जेनेरेशंस’।
इन लेखों में 1950 के दशक के बाद से कम्युनिस्ट शासन के तहत तिब्बत और तिब्बतियों के बड़े विकास, आर्थिक समृद्धि, सामाजिक स्थिरता, अच्छी पारिस्थितिकी, नस्लीय एकता और धार्मिक स्वतंत्रता के बढ़ चढ़ कर दावे किए गए हैं। इनमें सकल घरेलू उत्पाद में दोहरे अंकों की वृद्धि दर, पर्यटन में वृद्धि और गरीबी को समाप्त करने की बात की गई हैं।
लेखों में दिए गए तथ्य पूरी तरह से भ्रामक और गलत हैं। यह चीनी कम्युनिस्ट नेतृत्व द्वारा भारतीयों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गलत तरीके से तिब्बत पर कब्जे का औचित्य साबित करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है। इन लेखों में टीएआर (तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र) के दो शीर्ष अधिकारियों-तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के पार्टी सचिव वू यिंगजी और अध्यक्ष किज़ला को उद्धृत किया गया है। पहला लेख 12 सितंबर को बीजिंग में स्टेट काउंसिल इंफॉर्मेशन ऑफिस द्वारा आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान दोनों नेताओं द्वारा दिए गए बयानों पर आधारित है।
तथ्य यह है कि तिब्बती चीनी आक्रमण और शासन के सत्तर सालों के लंबे अंतराल में क्रूर कब्जे और दमन के शिकार रहे हैं। इस दौरान कम्युनिस्ट शासन में 12 लाख से अधिक तिब्बती मारे गए हैं, 6000 से अधिक मठों और भिक्षुणी विहारों को नष्ट कर दिया गया है और लाखों शास्त्रों और सांस्कृतिक कलाकृतियों को जला दिया गया है।
जीडीपी में दोहरे अंकों की वृद्धि की सारी बातें तिब्बती पठार पर भारी सैन्यीकरण, खनिज संसाधनों के दोहन, सड़क निर्माण और पहाड़ियों को भेदकर सुरंग निर्माण, नदी के प्रवाह को बदलने और तिब्बत में हान मूल के चीनी नागरिकों को बसाए जाने के कारण हो सकती हैं। फसल और खाद्य उत्पादन में वृद्धि प्राकृतिक और आर्थिक कारणों से हो सकती है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतागण जिस बाहरी ढांचागत विकास में तेजी की बात करते हैं उसने असल में तिब्बतियों की तुलना में चीनी लोगों को अधिक लाभ पहुंचाया है। बहरहाल, किसी भी परिस्थिति में आर्थिक विकास क्रूर कब्जे को वैध नहीं ठहरा सकता है।
लेख में तिब्बत में धार्मिक स्वतंत्रता की बात की गई हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि तिब्बत के अधिकांश मठों पर कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों द्वारा कड़ी निगरानी रखी जाती है। कर्मचारियों और बच्चों के मठों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। लारुंग गार और याचेन गार मठों में चल रहे विध्वंस और प्रतिबंध इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि तिब्बत में कोई धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी धर्म में विश्वास नहीं करती हैं, लेकिन वे दलाई लामा सहित उच्च लामाओं के पुनर्जन्म के चयन में अधिकार का दावा करती हैं। इस वर्ष अक्तूबर के महीने में सभी तिब्बतियों और अंतरराष्ट्रीय समर्थक समूहों की विशेष बैठकों में और नवंबर में तिब्बती सर्वोच्च लामाओं की बैठक में एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया गया है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म के चयन में चीनी हस्तक्षेप तिब्बतियों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
दूसरे लेख, ‘अनपैरेलेल्ड चेंज एक्सप्रीएसेंस्ड विदिन ए स्पेस ऑफ जेनेरेशंस (पीढ़ियों के अंतराल में अनपेक्षित परिवर्तन के अनुभव)’ में तीन तिब्बतियों की व्यक्तिगत कहानी, उनकी उपलब्धियों और खुशहाल जीवन का वर्णन किया गया है। यह सराहनीय है कि केलज़ंग द्रोलकर ल्हासा के नाचेन उप-जिले के एक समुदाय के पार्टी सचिव हैं और नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में तीन बार प्रतिनिधि चुनकर जा चुके हैं। ल्हाप्का फांगतोंग एक सफल उद्यमी हैं और न्यिमा ताशी तिब्बत विश्वविद्यालय में आधुनिक शैक्षिक प्रौद्योगिकी केंद्र की विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर हैं। लेकिन यहां पर गौर करने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या वे वास्तव में जो कुछ कर रहे हैं उसमें उन्हें स्वतंत्रता है और क्या वे वास्तव में खुश हैं?
क्या केलज़ंग द्रोलकर बतौर एक तिब्बती स्वतंत्र रूप से प्रार्थना करने और आशीर्वाद लेने के लिए स्थानीय मठ में जा सकते हैं? क्या ल्हाप्का फांगतोंग अपने बच्चों को मठ में ले जा सकते हैं या अपने व्यवसाय के लिए (देश के बाहर) स्वतंत्र रूप से घूम सकते हैं? क्या प्रोफेसर न्यिमा ताशी अपने छात्रों को तिब्बती भाषा और तिब्बती इतिहास स्वतंत्र रूप से सिखा सकती हैं?
लेख में तिब्बत में 92 हवाई मार्गों के साथ पांच हवाई अड्डों की बात की गई है जहां से घरेलू और विदेशी गंतव्यों तक उड़ानें जाती हैं। राजमार्गों और रेलवे की बात की गई हैं। लेकिन क्या तिब्बतियों को यात्रा करने की अनुमति है? क्या उन्हें पासपोर्ट रखने की अनुमति है? ये कुछ बुनियादी सवाल हैं, जिनका जवाब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व को तिब्बतियों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को देने होंगे।
26 नवंबर को योंटेन नाम के एक युवा तिब्बती ने कम्युनिस्ट शासन की दमनकारी नीतियों के विरोध में आत्मदाह कर लिया। तिब्बती भाषा आंदोलन का एक कार्यकर्ता ताशी वांगचुक अभी भी जेल में बंद है। कीर्ति मठ के एक भिक्षु सोनम पेल्डेन को हाल ही में तिब्बती भाषा के अधिकारों के पक्ष में बात करने पर गिरफ्तार किया गया था। अत्यधिक सम्मानित तिब्बती आध्यात्मिक गुरुओं जैसे खेंपो जिग्मे फुन्शोक और तुल्कू तेनजिन डेलेक को इस शासन में गिरफ्तारी, यातना झेलनी पड़ी जिस कारण उनकी मौत हो गईं। 2009 के बाद से 154 तिब्बतियों ने चीनी दमनकारी नीति के विरोध में आत्मदाह कर लिया है। युआन शेंग्गाओ, वू यिंगजी और किज़ला तिब्बती कहानी के इस पक्ष की व्याख्या किस तरह से करते हैं?
यदि चीनी नेतृत्व तिब्बत में खुशहाल जीवन और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के अपने दावों के बारे में वास्तव में गंभीर है तो उसे संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों, अंतरराष्ट्रीय राजनयिकों और मीडिया को तिब्बत की यात्रा करने और स्थिति का स्वतंत्र रूप से आकलन करने दें। फ्रीडम हाउस ने तिब्बत को दुनिया के सबसे दुर्गम क्षेत्रों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है। तो वू यिंगजी और किज़ला किस स्वतंत्रता और विकास की बात कर रहे हैं?
अंत में, विज्ञापन या अन्य किसी भी लाभ के लोभ में भारतीय समाचार पत्रों को दुनिया के सबसे दमनकारी और आक्रामक शासनों में से एक इस चीन का मुखपत्र नहीं बनना चाहिए, जिन्होंने इन वर्षों में अपनी घुसपैठों के माध्यम से भारत को पैर की उंगलियों पर रखा है।
’श्री त्सांग ग्याल्पो आर्या केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग (डीआईआईआर) के सचिव हैं। वे तिब्बत नीति संस्थान के निदेशक की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं।
अस्वीकरणः आलेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।