tibetpolicy.net, ०२ जुलाई, २०२१
तिब्बतियों और विश्व बिरादरी के बीच जरा सी भी विश्वसनीयता नहीं होने के बावजूद चीन अगले दलाई लामा को कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों की कठपुतली बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है।
पूरी तरह विश्वसनीयता के अभाव में भी चीन अपनी पसंद के अगले दलाई लामा को स्थापित करने के अपने दावों को विभिन्न माध्यमों से प्रचारित में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।
उन्होंने दलाई लामा को ‘भेड़ के वेष में भेड़िया’ कहा और उनके खिलाफ अवांछित अपमानजनक टिप्पणी का इस्तेमाल किया है। जबकि पिछले साठ साल से दलाई लामा तिब्बतियों के दिलो- दिमाग में बसे हुए हैं और सबसे सम्मानित व्यक्ति हैं। जुलाई में जब वह ८६ वर्ष के हो गए, तो पूरी दुनिया से उन्हें जन्मदिन पर शुभकामनाओं का तांता लग गया था। सिवाय चीनी अधिकारियों के जो इस दुनिया से जितनी जल्दी हो सके, उन्हें विदा होते देखना चाहते हैं, ताकि वे एक व्यर्थ और अदूरदर्शी दृष्टि वाला कठपुतली दलाई लामा स्थापित कर सकें।
दलाई लामा के बाद क्या?
आज, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) लोकतंत्र पर आधारित दुनिया भर में अच्छी तरह से स्थापित निर्वासित सरकारों में से एक है। कुछ लोग इसे ‘बोन्साई लोकतंत्र’ कहते हैं।
वास्तव में, निर्वासन में ऐसी स्थापना कभी भी इतनी व्यवस्थित ढंग से नहीं होती है। तिब्बत में दलाई लामा ने इसकी कल्पना की थी और छह दशकों के बाद भारत में यह फलीभूत हई है।
कई चीनी विशेषज्ञ वर्तमान दलाई लामा के गुजर जाने के बाद तिब्बती मुद्दे को लंबे समय तक चलने पर संदेह और आनेवाली चुनौतियों के सामने खत्म हो जाने का अनुमान लगाते हैं। हालांकि चीन को इस मामले में निराश करते हुए दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका ने पिछले साल एक कानून पारित किया था। इसके अनुसार दलाई लामा के पुनर्जन्म के चयन का अधिकार तिब्बती लेागों और लामाओं को है। किसी अन्य को इस प्रक्रिया में किसी तरह से हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। दूसरी ओर इसके लोकतांत्रिक रूप से चुने गए राजनीतिक नेता यानि- सिक्योंग ने किसी तरह चीनी सरकार को एक संदेश भेजा कि राष्ट्रीय आंदोलन चलता रहेगा और दलाई लामा के निधन के बाद भी जारी रहेगा।
चीन का दमन और तिब्बती अशांति
चीनी सरकार तिब्बत पर छह दशकों के कब्जे के बाद भी तिब्बतियों के दिल- दिमाग को जीतने में बुरी तरह विफल रही, लेकिन उनके प्रयास कभी खत्म नहीं हुए। चीनियों ने चाहे कितना भी कठोर दमन का सहारा क्यों न लिया हो, तिब्बतियों ने संघर्ष के दौरान अब तक हिंसक तरीके का सहारा कभी नहीं लिया है।
ब्रह्म चेलानी जैसे विद्वान इस बात के लिए तिब्बतियों की सराहना करते हैं कि ‘चीन की दमनकारी नीतियों के बावजूद तिब्बतियों ने कभी भी हथियार नहीं उठाया, जबकि इस दौरान १५६ तिब्बतियों ने आत्मदाह कर लिया। लेकिन चेलानी चेतावनी देते हैं कि ‘वर्तमान दलाई लामा के न रहने पर यही प्रवृत्ति जारी नहीं रह सकती है।’
उनके लिए सहूलियत की बात वह होगी, जिसका वर्णन दलाई लामा के पूर्व विशेष दूत स्वर्गीय लोदी ग्यारी ने अपने एक भाषण में किया था कि ‘यदि चीनी सरकार दलाई लामा के जीवित रहते हुए तिब्बत के मुद्दे को हल नहीं कर सकती है, तो हम नहीं जानते कि जब तिब्बतियों का दशकों तक का जमा गुस्सा फूटेगा क्या होगा।’
फिर भी, तिब्बती मुद्दे का अस्तित्व पूरी तरह से अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित है। यह अब तक के इतिहास का ऐसा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसे कई संघर्षरत राष्ट्रों ने अपनाया और सफल हुए। तिब्बती संघर्ष भी इसका कोई अपवाद नहीं है।
अगला कौन है? दलाई लामा के बाद नेतृत्व की जगह खाली है कई लोगों का मानना है कि दलाई लामा के बाद करिश्माई नेतृत्व की शून्यता एक और महत्वपूर्ण चुनौती होगी। वर्तमान दलाई लामा ने सोलह वर्ष की आयु में राजनीतिक जिम्मेदारी संभाली। अगले दलाई लामा किस उम्र में करिश्माई नेतृत्व की भूमिका ग्रहण करेंगे, यह भविष्यवाणी करना एक कठिन काम है।
दलाई लामा ने पहले से ही इस तरह की परिस्थिति का अनुमान लगा रखा है और इसीलिए २०११ में धर्मनिरपेक्ष नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त किया है। उनके राजनीतिक नेतृत्व से सेवानिवृत्त होने के बाद, निर्वासित तिब्बतियों के बीच तीन दौर के चुनाव हुए जिसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचा है। लेकिन दलाई लामा के बाद करिश्माई नेतृत्व की रिक्तता को भरने के लिए तिब्बत नीति संस्थान के निदेशक तेनज़िन लक्षय ने सुझाव दिया कि वैकल्पिक तरीकों में से एक आध्यात्मिक लामाओं का सामूहिक नेतृत्व हो सकता है।
इससे भी महत्वपूर्ण सुझाव दलाई लामा ने खुद एक बार युवा लिंग रिनपोछे और १७वें करमापा से कहा था कि ‘जब मैं जीवित ना राहु तो आप दोनों को काम जारी रखना होगा।’ यहाँ से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि तिब्बती आध्यात्मिक लामाओं का सामूहिक नेतृत्व रिक्तता को तब तक भर सकता है, जब तक कि अगला दलाई लामा उस भूमिका को ग्रहण करने के लिए पूरी तरह से तैयार न हो जाए। अगले दलाई लामा का जन्म कहां होगा इसके भू-राजनीतिक निहितार्थ यदि चीन द्वारा एक कठपुतली दलाई लामा बैठाए जाते हैं तो भारत को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भू-राजनीतिक रूप से सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरा हिमालय क्षेत्र को इन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
बहुत संभव है कि चीन इन क्षेत्रों में अपने पंजे फैलाने के लिए ‘दलाई लामा इंस्टीट्यूशन’ को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। चीन ऐसी कहानियां गढ़ने में माहिर है, जिन्हें इतिहास भी नहीं ढूंढ सकता। ऐसी दुखद स्थिति से बचने के लिए वर्तमान दलाई लामा दूरदर्शी दृष्टि के साथ संकेत देते हैं कि उनका पुनर्जन्म एक स्वतंत्र देश में होगा। कई लोग ताइवान का अनुमान लगाते हैं, क्योंकि उन्होंने कई बार वहां की यात्रा की है।
तिब्बती मामलों के विख्यात विशेषा क्लॉउडे अर्पि का मानना है कि उनका पुनर्जन्म एक स्वतंत्र देश में होगा। उनके अनुसार, लद्दाख एक दिलचस्प विकल्प हो सकता है, क्योंकि यह उन्हें तिब्बती और हिमालयी भक्तों के करीब रखेगा। दलाई लामा ने कहा कि वह तिब्बती बौद्ध परंपराओं और तिब्बतियों के उच्च लामाओं से परामर्श करेंगे कि क्या दलाई लामा नामक इस संस्था को जारी रखना चाहिए या नहीं।
संस्था जारी रहती है तो दलाई लामा की खोज समिति को कुछ सलाह है : ‘मैं इस बारे में स्पष्ट लिखित निर्देश छोड़ जाऊंगा। ध्यान रखें कि इस तरह के वैध तरीकों से मान्यता प्राप्त पुनर्जन्म के अलावा, राजनीतिक उद्देश्यों के लिए चुने गए उम्मीदवार को कोई मान्यता या स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए, जिसमें चीनी सरकार का उम्मीदवार भी शामिल है।
भारत को चीन की योजनाओं को पूरा करने के लिए कार्य करना चाहिए दूसरी ओर, चीन बौद्ध धर्म पर आधारित अपने को नरम शक्ति वाली छवि को जोर-शोर से प्रचारित कर रहा है। इसलिए, भविष्य में वे अपनी इस छवि का उपयोग चीन द्वारा थोपे गए दलाई लामा को बौद्ध राष्ट्रों से मान्यता दिलवाने में कर सकते हैं। हैरानी की बात है कि चीन के निहित दबाव में एशिया के कई बौद्ध राष्ट्रों ने पहले ही वर्तमान दलाई लामा के लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए हैं, और उन्हें अपने देश की यात्रा की अनुमति नहीं दे रहे हैं। जबकि चीन के थोपे ग्यारहवें पंचेन लामा को आमंत्रित कर रहे हैं। उन्होंने २०१९ में थाईलैंड का दौरा किया और बैंकाक में एक बौद्ध विश्वविद्यालय में भाषण दिया।
चीन द्वारा अपने थोपे दलाई लामा को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने और बौद्ध धर्म का नेता बनाने से रोकने के लिए नई दिल्ली को ‘भारत के पुत्र’ कहलाने वाले दलाई लामा पर अमेरिकी कानून की तरह कानून बनाकर अधिक यथार्थवादी ध्यान देना चाहिए। अमेरिका कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चीन को अगले दलाई लामा के चयन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
ऐसा करने पर चीन एशिया, विशेष रूप से भारत की ओर अपने प्यादों को आगे बढ़ाने से पहले दो बार सोचेगा।
(येशी दावा वर्तमान में तिब्बत नीति संस्थान में फेलो हैं और तिब्बत टीवी में होस्ट हैं। यहां व्यक्त किए गए विचार तिब्बत नीति संस्थान के विचारों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। लेख ०१ जुलाई २०२१ को द क्विंट में पुनर्प्रकाशित किया गया था)।