dalailama.com
बोधगया, बिहार, भारत। परम पावन दलाई लामा को ०३ जनवरी की सुबह गेलुक्पा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने और पिछले चार वर्षों के दौरान स्नातक करने वाले गेशेस को गेशे ल्हारम्पा डिग्री प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया गया था। कालचक्र मैदान के द्वार पर दक्षिण भारत में- गैंडेन, डेपुंग और सेरा जैसे शिक्षा के महान केंद्रों के प्रमुखों ने उनका स्वा गत किया और उन्हें मंच तक ले गए। मंच पर परम पावन बीच में बैठे। उनकी दाहिनी ओर गैंडेन त्रि रिनपोछे और बायीं ओर जांगछे छोजे रिनपोछे थे।
मंच पर समारोह के संचालक गेशे तुल्कु तेनज़िन शेरब ने परम पावन के साथ ही अन्य अतिथियों और गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया। उन्होंने बताया कि तिब्बोत पर १९५९ में हुए चीनी हमले के बाद परम पावन के आशीर्वाद से हजारों तिब्बती भारत पहुंच पाए। इस हमले के दौरान तिब्बत में अधिकांश बौद्ध परंपरा को नष्ट कर दिया गया था। इसके बाद मठवासी बक्सादुआर के एक शिविर में एकत्रित हुए, जहां, परम पावन और उनके दो शिक्षकों के मार्गदर्शन में एक गेशे लाराम परीक्षा बोर्ड की स्थापना की गई। इस बीच तीन महान मठ विश्वविद्यालयों से जुड़े भिक्षुओं ने अध्ययन की परंपरा को बनाए रखा। मॉडरेटर ने घोषणा की कि इन सबको नेतृत्व और प्रेरणा देने में परम पावन ने जो करुणा बरसाई है, उस ॠण को कभी नहीं चुकाया जा सकता है।
१९७० में एक गेलुक्पा परीक्षा बोर्ड की स्थापना की गई। इसमें मठाधीश और परीक्षा अधिकारियों को शामिल किया गया, जिन्होंने प्रक्रियाएं और नियम बनाए। तब से १००० से अधिक गेशे स्नातक हो चुके हैं। उनमें से कई लोग दुनिया के विभिन्न हिस्सों में धर्म की सेवा कर रहे हैं।
सबसे पहले गैंडेन त्रि रिनपोछे को बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंकने अपना संबोधन शुरू करते हुए कहा, ’बौद्ध धर्म के सबसे बड़े गुरु परम पावन दलाई लामा आज यहां हमारे साथ हैं। यहां हम गेलुक्पा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह और डिग्री वितरण समारोह में एकत्र हुए हैं। आज स्नातक होने वालों ने पूरी तरह से अध्ययन किया है, तर्क और बहस का अभ्यास किया है और अपनी परीक्षा दी है। परिणामस्वरूप, उन्हें अपनी ल्हारम्पा डिग्री प्राप्त होगी। जैसा कि जे रिनपोछे ने सलाह दी है, हमें जो सीखा है उसका अध्ययन, चिंतन और एकीकरण करना चाहिए।
उन्होंजने कहा, ‘एक बार जब आप गेशे डिग्री हासिल कर लेते हैं तो गुह्यसमाज की चार टीकाओं का अध्ययन करने के लिए ग्युडमे या ग्यूडटो तांत्रिक कॉलेज में नामांकन लेने का रिवाज है। यह एक परंपरा है जो जे़ रिनपोछे के समय से बिना किसी रुकावट के चली आ रही है। नए-नए स्नातक हुए गेशे द्वारा अध्यचयन किए जाने वाले और भी ग्रंथ हैं, लेकिन जो विशेष रूप से महत्वपूर्ण है वह गुह्यसमाज टीका के पठन पाठन और उसका लोगों में प्रसार करना है। मैं आप सभी से इस दिशा में प्रयास करने का आग्रह करता हूं। जैसा कि सेरखोंग छेनशाब रिनपोछे कहा करते थे, इस परंपरा को जीवित रखना आवश्यक है।‘
मैं प्रार्थना करता हूं कि परम पावन दलाई लामा और हमारी अन्य सभी बौद्ध परंपराओं के नेता लंबे समय तक जीवित रहें।
परम पावन ने घोषणा की, ‘आज मोनलम चेन्मो या महान प्रार्थना महोत्सव का समापन होता है। यहां उपस्थित हम सभी लोग बुद्ध के अनुयायी हैं। हमें यह समझना चाहिए कि बुद्ध की शिक्षा प्रार्थना करने और अनुष्ठान करने के बारे मंत नहीं है। यह मुख्य रूप से बोधिचित्त और शून्यता में अंतर्दृष्टि विकसित करने के लिए हमारे दिमाग का उपयोग करने के बारे में है।
बौद्ध भिक्षु होने के कारण मैं सुबह उठते ही जागृत मन और शून्यता का चिंतन-मनन करता हूं। इस तरह मेरा दिन इन सिद्धांतों से ओत-प्रोत होता है। बोधिचित्त के चिंतन से मुझे अपने और दूसरों के लक्ष्यों को पूरा करने का आशीर्वाद देने का संकल्पओ हो जाता है और मैं ज्ञान प्राप्ति के लिए सभी भव्य जीवों को अपने अतिथि के रूप में आह्वान करता हूं।
मैं बोधिचित्त को शून्यता के दृष्टिकोण से जोड़ने की भी पूरी कोशिश करता हूं। यह दृष्टिकोण मानसिक कष्टोंे और दुख देने वाली अवधारणाओं पर काबू पाने का तरीका है। मानसिक कष्ट और दुख देने वाली अवधारणाएं कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हों, वे अज्ञानता से लिप्त। हैं और इसलिए आधारहीन हैं। दूसरी ओर बोधिचित्त और शून्यता अधिक शक्तिशाली हैं और कारणयुक्त और तर्कनिष्ट हैं।
इसलिए जितना अधिक हम सीखते हैं, उतना अधिक हम अंतर्दृष्टि और अनुभव प्राप्त करते हैं। बौद्ध धर्म तार्किक और तर्कसंगत है। जैसा कि ‘बोधिसत्व मार्ग में प्रवेश’ ग्रंथ में उल्लेख किया गया है, ऐसा कुछ भी नहीं है जो ज्ञात होने से आसान न हो जाए। जितना अधिक हमें शून्यता का ज्ञान होता जाता है, उतना ही हमारा अज्ञान कम होता जाता है।‘
मैं रोज बोधिचित्त और शून्यता का एकीकृत चिंतन करने की साधना करता हूं और इसका परिणाम भी देखता हूं। देव योग महत्वपूर्ण है, लेकिन बोधिचित्त और शून्यता की समझ विकसित कर लेना और भी महत्वपूर्ण है। मैं आपसे इन परंपराओं को सही मायने में अपनाने का आग्रह करता हूं। मुझे विश्वास है कि वे आपको सहज महसूस कराएंगे। बोधिचित्त और शून्यता ही जीवन को सार्थक बनाती है। बोधिचित्त और शून्यता के अभाव में केवल देव योग में संलग्न होने से कुछ नहीं होगा।
आज जब आप ल्हारम्पा डिग्री प्राप्त कर रहे हैं, तो हम यह निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि बौद्ध धर्म का अध्ययन करना अतुलनीय है। यह तिब्बत के लिए कुछ खास है। मेरे कई अन्य बौद्ध देशों में मित्र हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही हमारी तरह अध्ययन करते हैं। मेरी अपनी पढ़ाई तब शुरू हुई जब मैं छोटा बच्चा था। जैसा कि मैंने आपको दूसरे दिन बताया था। जब मैं लगभग तीन साल का था, उस समय मैंने कुंबुम मठ का दौरा किया था और युवा भिक्षुओं को साष्टांग प्रणाम करते हुए ‘ओम अरा पतसा ना दिह’ का पाठ करते हुए देखकर और उनकी आवाज सुनकर दंग रह गया था। मैं उनकी नकल करने के लिए प्रेरित हुआ। उमर होने पर मैं अपनी औपचारिक पढ़ाई के लिए मध्य तिब्बत गया। पढ़ाई में सामूहिक विषय, मन और जागरूकता, कारण और तर्क का अध्ययन शामिल था। इन अध्ययनों को जिस चीज़ ने प्रभावी ढंग से समेकित किया वह था वाद-विवाद का अभ्यास।
हम दुनिया की मौजूदा स्थिति को लेकर चिंतित हो सकते हैं। हम अपने सामने आने वाली पर्यावरणीय चुनौतियों के बारे में चिंतित हो सकते हैं, लेकिन मंजुश्री हमारे सामने आने वाली समस्याओं को हल करने के लिए हमारी बुद्धि को मजबूत करेगी। अभी मैं बस इतना ही कहना चाहता हूं।‘
मॉडरेटर ने बताया कि आज के दीक्षांत समारोह में ३०० से अधिक गेशे स्नातक मंच पर उपस्थित होंगे जहां गैंडेन त्रि रिनपोछे उन्हें स्ना तक डिग्री प्रदान करेंगे। इसके बाद जब ये गेशे स्नाेतक मंच पर पहुंचे तो उनके गले में सफेद रेशमी खटक (स्कार्फ) लिपटी हुई थी। डिग्री ग्रहण करने के बाद प्रत्येक गेशे ने मंच छोड़ने से पहले परम पावन के सामने सिर नवाया।
इसके बाद पिछले चार वर्षों में स्नातक करने वाले गेशे के समूह ने वर्ष के आधार पर परम पावन के साथ तस्वीरें खिंचाने को उनके आसपास एकत्र हुए।
परम पावन ने सभा से एक बार फिर बात करने की इच्छा व्यक्त की।
‘जे़ रिनपोछे ने हमें बताया कि हम जो कुछ भी सुनते या पढ़ते हैं, उसे वास्तव में समझने के लिए हमें चार स्तनर के तर्क करने की आवश्यकता है। हम किसी चीज़ के संबंध में पूछ सकते हैं- ‘क्या यह एक कण है? या यह एक कण नहीं है? क्या यह कण है भी और कण नहीं भी है? अथवा यह न तो कण है और न ही कण है?
कुछ समझ हो जाने पर हम चर्चा कर इसका पता लगाते हैं और उसका परीक्षण करते हैं। इस प्रकार हम शिक्षण में दृढ़ विश्वास प्राप्त करते हैं। फिर हमने जो कुछ भी पढ़ा है उसके अर्थ पर दिन-रात चिंतन करके हम अपनी समझ का विस्तार करते हैं। यह दृष्टिकोण विशेषकर नालंदा परंपरा से संबंधित है। शांतरक्षित और अन्य भारत-तिब्बती विद्वानों ने जो सीखा था उस पर विचार किया और उसे अपने भीतर संजोया। यह महत्वपूर्ण है कि हम भी ऐसा करें। मुद्दा अध्ययन, चिंतन और साधना करने का है।
हमें शिक्षण में अंतर्निहित कारणों की तलाश करनी चाहिए। हम केवल शास्त्री य ग्रंथों के शब्दों पर भरोसा नहीं कर सकते, हमें उनके अर्थ को जीवंत अनुभव में बदलना होगा।
आपमें से जिन लोगों ने आज गेशे की डिग्री ग्रहण की है, उन सबने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। अब मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आपने जो सीखा है उसे व्यवहार में लाकर दूसरों के लिए एक उदाहरण स्थापित करें। अध्ययन, चिंतन और मनन के माध्यम से आपने जो सीखा है उसे अपने दिमाग में संजो कर रख सकते हैं।
परसों जापान में जोरदार भूकंप आया। वहां बहुत से लोग अब चिंतित हैं कि आगे क्या होगा। जापान एक बौद्ध देश है जहां वे ‘हृदय सूत्र’ का पाठ भी करते हैं। जब भी विश्व में कहीं भी कोई आपदा आती है तो हमें प्रभावित लोगों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। तो आइए आज जापान के लोगों, विशेषकर भूकंप पीड़ितों के लिए मिलकर ‘हृदय सूत्र’ का पाठ करें।‘
इसके बाद परम पावन की सलाह के अनुरूप पूरी सभा ‘हृदय सूत्र’ का जाप करने के लिए एक साथ आ गई और जाप को सिंह-मुखी डाकिनी के मंत्र के कुछ पाठों के साथ पूरा किया।