क्या चीन पड़ोसी देशों को प्यासा मार देगा?
गंगा की तरह ‘मेकांग’ संसार की विशालतम नदियों में से एक है। तिब्बत से निकलने वाली यह नदी चीन, लाओस, म्यांमार, कंबोडिया और वियतनाम होते हुए साउथ चाईना सी में जा गिरती है। तिब्बत से साउथ चाइना सी तक की इसकी दूरी 4200 किलोमीटर है। अभी हाल में चीन ने मेकांग के उद्गम स्थान पर अनेक डैम बनाकर लाओस, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम को रेगिस्तानबनाने का प्रयास किया है।
‘मेकांग’ की कहानी अत्यन्त दिलचस्प है। सम्राट अशोक के समय में जब बौद्ध भिक्षु बर्मा और थाईलैंड जिसका नाम उन दिनों ‘सियाम’ था, होकर लाओस, कंबोडिया और वियतनाम में बौद्ध धर्म का प्रचार करने गये तब थाईलैंड से लाओस जाते समय रास्ते में उन्हें एक विशालकाय नदी दिखाई दी। समुद्र की तरह दीखने वाली इस नदी को देखकर अचानक बौद्ध भिक्षुओं के मुंह से निकल गया ‘मां गंग’। उन्होंने इस पवित्र नदी के जल को अपने सिर पर छिड़का और बड़े-बड़े नावों पर सवार होकर इसे पार कर लाओस गये। तब से इस नदी का नाम वर्षो तक ‘मां गंग’ ही रहा। जब हिन्द चीन के तीनों देश लाओस, कंबोडिया और वियतनाम फ्रांस के उपनिवेश बन गये तब फ्रांसीसियों को ‘मां गंग’ काउच्चारण करने में कठिनाई हुई और उन्होंने इस नदी का नाम ‘मेकांग’ रख दिया। वैसे तिब्बत में इसका नाम ‘जाचू’ है। चीन में इसे ‘लेनकांग जिआंग’ कहते हैं, परन्तु चीन और पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में अधिकांश लोग इसे अभी भी ‘मेकांग’ के नाम से ही पुकारते हैं। हाल तक सब कुछ ठीक चल रहा था। यह तब की बात है जब चीन ने तिब्बत और उससे सटे चीनी क्षेत्र में बड़े-बड़े डैम नहीं बनाये थे। चीन मेकांग नदी का भरपूर उपयोग कर रहा था। सबसे अधिक लाभ लाओस को हो रहा था। क्योंकि मेकांग की तेज धारा पर उसने अनेक डैम बनाकर बिजली का भरपूर उत्पादन किया था। बिजली के उत्पादन के लिये अनेक ‘टरबाइन’ भारत सरकार ने भी लाओस को उपहार में दिये थे। लाओस की जनता आज भी भारत को इस उपहार के लिये कृतज्ञतापूर्वक याद करती है। लाओस का मुख्य निर्यात बिजली है। थाईलैंड 90 प्रतिशत अपनी बिजली की आपूर्ति के लिये लाओस पर निर्भर करता है।
मेकांग नदी पर बने डैम से लाओस बिजली पैदा कर थाईलैंड को निर्यात करता है। इससे दोनों देश हाल हाल तक सुखी थे। परन्तु चीन ने जिस प्रकार मेकांग के उद्गम स्थान पर ही पानी को रोककर बिजली बनाने के लिये बड़े-बड़े डैम बना लिये उससे अब निचले क्षेत्र में, खासकर लाओस में पानी आना बहुत ही कम हो गया है। गत वर्ष जब चीन ने गर्मी के दिनों में मेकांग के उद्गम स्थान पर डैम बनाकर पानी को नीचे जाने से रोक दिया था तब लाओस, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम ने इसका घोर विरोध किया था। चीन अपने क्षेत्र में विदेशियों को जाने की अनुमति नहीं देता है। इसलिये इन देशों के विरोध प्रकट करने पर चीन ने यही कहा कि उसने मेकांग के उद्गम स्थान पर कोई डैम नहीं बनाया है। इस बार पूरे एशिया में, खासकर चीन में वर्षा बहुत कम हुई है। इसी कारण मेकांग नदी में जल स्तर बहुत घट गया है। परन्तु यह तर्क लोगों के गले नहीं उतरा है।
क्योंकि गुप्तचर ‘सेटलाइट’ ने यह पता लगा लिया है कि मेकांग के उद्गम स्थान पर ही चीन ने अनेक डैम बना लिये हैं। गर्मी के दिनों में चीन पानी को रोक देता है, बरसात के दिनों में वह सारे डैम खोल देता है जिससे निचले क्षेत्र के देश, खासकर लाओस, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम में भयानक बाढ़ आ जाती है और सारे तटवर्ती क्षेत्रों में लगी हुई फसल बर्बाद हो जाती है। आर्थिक कारणों से ही नहीं बल्कि राजनीति कारणों से भी चीन पानी का खेल खेल कर अपने पड़ोसी देशों को अपने बस में करना चाहता है। वैसे भी चीन में पानी की बड़ी भारी कमी हो गई है। गत कई वर्षो से चीन के कुछ क्षेत्रों में भयानक सूखा पड़ता आ रहा है। चीन ने जिस तेजी से अपने यहां औद्योगीकरण किया है उसके कारण उसे पानी की जितनी जरूरत है उसका चौथाई भाग पानी भी उसे उपलब्ध नहीं है। चीन की सारी बड़ी नदियां दक्षिणी चीन में हैं। जब सारे बड़े औद्योगिक शहर उत्तरी चीन में हैं। चीन की सरकार प्रयासरत है कि बड़े-बड़े ‘टनेल’ बनाकर पम्प द्वारा ‘यांग्त्से’ नदी का पानी बीजिंग और उत्तर के दूसरे प्रमुख शहरों में ले जाया जाए। तीन वर्ष पहले लन्दन के समाचारपत्र ‘टाइम्स’ ने यह खबर दी थी कि चीन अपने क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी की धारा को मोड़कर उत्तर की ओर ले जा रहा है जिसका यह परिणाम होगा कि असम और दूसरे उत्तर पूर्वी भारत के क्षेत्र कुछ दिनों बाद रेगिस्तान बन जाएंगे। बांध बनाने की बात चीन ने स्वीकार भी की है।
लेखक पूर्व सांसद व पूर्व राजदूत हैं
डॉ. गौरीशंकर राजहंस
26 अप्रैल, 2010