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ऐसा प्रतीत होता है कि चीन ने सुदूर पश्चिमी तिब्बत में एक नए बांध का निर्माण पूरा कर लिया है। newsweek.com द्वारा २२ जनवरी को उपग्रह चित्रों के हवाले से की गई रिपोर्ट की यह बात अगर सच है तो वह नेपाल और भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों में पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने वाला होगा।
मापचा सांगपो नदी का तिब्बती भाषा का शब्द है जिसका तिब्बत में अर्थ ‘मोर’ होता है। यह नदी भारत में घाघरा और नेपाल में करनाली के नाम से जानी जाती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पश्चिमी नेपाल और भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों की आबादी के लिए पेयजल की आपूर्ति का एक महत्वपूर्ण और बारहमासी स्रोत है।
यूरोपीय संघ के कोपरनिकस अर्थ ऑबजर्वेशन प्रोग्राम के सेंटिनल-२ उपग्रह द्वारा ली गई तस्वीरों को लेकर चलाने वाले सिनर्जिस की सेंटिनल हब वेबसाइट के फोटो विश्लेषण के आधार पर प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि मापचा सांगपो पर बांध निर्माण जुलाई २०२१ में शुरू हो गया था।
ऐसा कहा जाता है कि यह बांध बुरांग शहर (तिब्बती: पुरांग) के उत्तर में बनाया गया है, जो तिब्बत के न्गारी प्रिफेक्चर में अनेक धर्मों के लिए पवित्र कैलाश पर्वत का इलाका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि डैम अब पूरा हो गया है और इस महीने पृथ्वी की कक्षा से ली गई तस्वीरों में दिखाई दे रहा है।
कंक्रीट की संरचना नेपाल के सीमावर्ती शहर हिल्सा से लगभग १८ मील उत्तर में और भारतीय सीमा से लगभग ३७ मील पूर्व में है। हिल्सा की आबादी लगभग ५१,००० हैं, लेकिन नेपाल के पश्चिमी क्षेत्र की आबादी ४० लाख से अधिक की है।
नेपाल के बाद मापचा सांगपो भारत के मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है, जहां इसे सरयू के नाम से जाना जाता है और भारत के उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश में पवित्र शहर अयोध्या से होकर गुजरती है। इस नदी को मोर की चोंच जैसे चट्टानी मार्ग से बहने के कारण मापचा सांगपो कहा जाता है, जिसका तिब्बती भाषा में मतलब मोर होता है।
चीन की सरकारी शिन्हुआ समाचार एजेंसी का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा बीजिंग बुरांग उत्तर में एक और बांध बना रहा है, जिसका निर्माण दिसंबर २०२२ में शुरू हुआ था। यह परियोजना मापचा सांगपो से ऊपर की ओर तिब्बत की नदी प्रणाली को और बाधित कर सकती है।
हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण संबंधी मुद्दों को विशेष तौर पर उठाने वाली पत्रिका ‘द थर्ड पोल’ के दक्षिण एशिया मामलों के प्रबंध संपादक ओमैर अहमद ने न्यूजवीक को बताया कि तिब्बत में नए बांध में दक्षिण-पूर्व एशिया के मेकांग डेल्टा में चीन की जल-राजनीति की झलक मिलती है।
अहमद ने कहा, ‘इसकी सबसे अच्छी तुलना यह है कि कैसे चीन ने मेकांग में जल-राजनीति को नया आकार देने की कोशिश की है। यहीं पर उसने तर्क को तेजी से आगे बढ़ाया है कि ऊपरी इलाके के देशों को यह अधिकार है कि उसका सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पूरी तरह से खिलाफ होने के बावजूद निचले इलाके के पड़ोसी देशों को उसका सम्मान करना चाहिए।
अहमद ने कहा, ‘लेकिन मेकांग के विपरीत, दक्षिण एशिया में मेकांग नदी आयोग जैसा कोई क्षेत्रीय जल संस्थान नहीं है। इसलिए इसमें शामिल होने के लिए उनके पास कोई स्थान भी नहीं है।‘
इस बीच, ध्यान देने वाली बात यह है कि तिब्बत में बहने वाली अंतरराष्ट्रीय नदियों पर बांध बनाने का चीन का सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि २०२१ में चीन ने तिब्बत की नदी प्रणालियों को मुख्य भूमि के बाकी हिस्सों से जोड़ने की योजना की घोषणा की। इस योजना के तहत भारतीय सीमा क्षेत्रों पर एक दानवाकार बांध का निर्माण भी शामिल होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के वर्षों में भारत ने चीनी निवेश वाली कंपनियों से बिजली खरीदने से इनकार करके चीन की जलविद्युत परियोजनाओं का विरोध किया है, जैसे कि बीजिंग की वित्तीय सहायता से बना नेपाल में चामेलिया जलविद्युत स्टेशन।
चीन ने इस भू-रणनीतिक रूप से संवेदनशील तिब्बती सीमा क्षेत्र में एक नया अली पुलान हवाई अड्डा भी बनाया है, जो एक दोहरे उपयोग वाला हवाई अड्डा है। यहां से नागरिक और सैन्य-दोनों तरह की गतिविधियां संचालित की जा सकती है। तिब्बत क्षेत्र के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि यह आधिकारिक तौर पर पिछले महीने के अंत में चालू हो गया। अली-पुलान न्गारी-पुरांग में ही बन रहा है। न्गारी एक प्रिफेक्चर है जिसमें पुरांग नामकी काउंटी है।