लोक सेवा आयोग
परम पावन 14वें दलाई लामा की तिब्बती समाज को लोकतांत्रिक बनाने की दृष्टि के फलस्वरूप 29 अप्रैल 1959 को निर्वासित तिब्बत सरकार अस्तित्व में आया और उसकी स्थापना हुई। एक साल बाद 2 सितंबर 1960 को पहले लोकतांत्रिक रूप से चुने गए तिब्बती पीपुल्स डेप्युटी ने शपथ ली। उस समय सरकार को इसी नाम से जाना जाता था। विधायिका को कमीशन फॉर तिब्बतन पीपुल्स डेप्यूटीज (सीटीपीडी) के रूप में जाना जाता था।
लोकतांत्रिक संस्थाओं के विकास के क्रम में सीटीपीडी निर्वासित तिब्बती संसद बन गई। टीपीआईई ने बढ़े हुए सदस्यों के साथ और प्रभावी रूप से केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के अंतर्गत विधायिका की भूमिका में आ गई। टीपीआईई द्वारा तिब्बती प्रवासियों के लिए कई कानून पारित किए गए। हालांकि इसमें सबसे व्यापक और महत्वपूर्ण दस्तावेज परम पावन दलाई लामा द्वारा अनुमोदित निर्वासित तिब्बती चार्टर बना। चार्टर लोकतंत्र के प्रसिद्ध तीन स्तंभों और तीन स्वायत्त निकायों की व्यवस्था करता है, जिनमें से लोक सेवा आयोग (पीएससी) एक है। इस प्रकार, संपूर्ण सीटीए का कार्य चार्टर के प्रावधानों के अनुरूप होता है।
इससे पहले, पीएससी को ‘गृह और सुरक्षा विभागों के तहत सेवा प्रबंधन कार्यालय (सर्विस मैनेजमेंट ऑफिस अंडर द होम एंड द सिक्युरिटी डिपार्टमेंट्स) के रूप में जाना जाता था, जिसकी जिम्मेदारी सीटीए सिविल सेवा कर्मचारियों के लिए नियुक्ति, भर्ती और बुनियादी प्रशिक्षण व्यवस्था थी। सीटीए कार्यालयों के आगे विस्तार और पुनर्गठन के बाद सेवा प्रबंधन कार्यालय को कशाग की देखरेख में लाया गया और बाद में स्वतंत्र जिम्मेदारियां सौंपी गईं और यह कार्यालय कार्मिक विभाग बन गया।