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जेनेवा। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के ५२वें सत्र के पहले दिन २७ फरवरी २०२३ को स्विट्जरलैंड और लिकटेंस्टीन के तिब्बती समुदाय ने चीनी सरकार की नीतियों के कारण तिब्बत में बिगड़ती मानवाधिकारों की स्थिति के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र भवन के सामने विरोध-प्रदर्शन किया।
आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा के कार्यान्वयन पर चीन की हाल ही में समाप्त समीक्षा के दौरान संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने चीन से उसकी ‘एकत्ववादी नीतियों’ और तिब्बत और अन्य क्षेत्रों में व्यापक अधिकारों के उल्लंघन पर सवाल उठाया। लगभग १० लाख तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से जबरन अलग करने के लिए आवासीय विद्यालयों की प्रणाली शुरू किए जाने की नीति ने संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों को और चिंतित कर दिया है। आवासीय विद्यालयों का उद्देश्य इन तिब्बती बच्चों को मूल चीनी नस्ल में विलीन करना भी है। चीन में, विशेष रूप से तिब्बत और चीनी सरकार के शासन के तहत अन्य क्षेत्रों में मानवाधिकारों की स्थिति की निगरानी के लिए संयुक्त राष्ट्र तंत्र की स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों द्वारा बार-बार अपील किए जाने के बावजूद चीन द्वारा इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
सभा को संबोधित करते हुए तिब्बत ब्यूरो, जिनेवा के प्रतिनिधि थिनले चोएक्यी ने कहा कि ‘तिब्बत एक अनसुलझा अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का क्षेत्र बना हुआ है। इस कारण से चीनी सरकार द्वारा दशकों से तिब्बतियों के व्यापक मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। यह समय है कि संयुक्त राष्ट्र तिब्बत पर ठोस कदम उठाए और अपने विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर ध्यान देते हुए चीनी सरकार को तिब्बत और चीनी सरकार के शासन के तहत अन्य क्षेत्रों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराए। प्रतिनिधि ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से आगामी सत्र के दौरान तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति को उठाने का आह्वान किया।
लिकटेंस्टीन के तिब्बती समुदाय के अध्यक्ष कर्मा चोएक्यी ने गो शेरब ग्यात्सो और अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मामलों की याद दिलाया और उनकी बिना शर्त रिहाई की मांग की। स्विस-तिब्बती मैत्री संघ (फ्रांसीसी खंड) मार्गुराइट कॉन्टैट की प्रतिनिधि ने कहा कि चीनी सरकार द्वारा तिब्बत में ‘नस्ल संहार के द्वारा तिब्बतियों की पहचान को व्यवस्थित रूप से नष्ट करने की नीति’ चल रही है। उन्होंने कहा कि वह स्विस संसद में तिब्बत में मानवाधिकारों का मुद्दा उठाएंगी।