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थेकचेन छलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। 09 जून की सुबह जब परम पावन दलाई लामा ने अपने
आवास के उस कमरे में प्रवेश किया जहाँ से वे ऑनलाइन आभासी बैठकों में भाग लेते हैं, तो वे आभासी बैठक में भाग लेनेवाले सभी लोगों को दिखाने के लिए अपने साथ फ़्रांसिस्को वरेला की तस्वीर लेकर आए और सामने रख दिया। इस फोटो को वे अपने आवास में रखते हैं। माइंड एंड लाइफ यूरोप के प्रबंध निदेशक गैबोर करसाई ने आज के कार्यक्रम ‘एक बेहतर दुनिया के लिए संवाद – फ्रांसिस्को वरेला की याद’ में उनका स्वागत किया। यह कार्यक्रम ‘फ्रांसिस्को एंड फ्रेंड्स: एन एम्बोडिमेंट ऑफ रिलेशनशिप; नामक शृंखला की पहली कड़ी थी। कार्यक्रम की यह शृंखला ‘माइंड एंड लाइफ’ के प्रमुख संस्थापकों में से एक वरेला की याद में बनाई गई है, जिनका बीस साल पहले निधन हो गया था। करसाई ने सभी लोगों को वरेला की माइंड एंड लाइफ की शुरुआती मीटिंग्स की कई तस्वीरें देखने के लिए आमंत्रित
किया। ईटीएच, ज्यूरिख में बायोकैमिस्ट्री के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ. पियर लुइगी लुइसी ने बातचीत की शुरुआत की। उन्होंने 1983 में ऑस्ट्रिया के एल्पबैक में आयोजित एक कार्यक्रम का स्मरण किया, जब परम पावन और फ्रांसिस्को वरेला पहली बार मिले थे। यह एक ऐसा अवसर था जो प्यार और दोस्ती के माहौल में बीता। लुसी ने पूछा कि किस बात ने वरेला के साथ मित्रता को परम पावन के लिए विशेष बना दिया। परम पावन ने उत्तर दिया, ‘जब मैं बहुत छोटा था, मेरी रुचि यांत्रिक चीज़ों में थी। मेरे पास एक मूवी प्रोजेक्टर था जो 13वें दलाई लामा का था और इस बारे में मेरी जिज्ञासा कि कैसे छोटी बैटरी ने ड्राइव करने और प्रोजेक्टर को रोशन करने की शक्ति पैदा की, जिसने मुझ्मे बिजली में रुचि को जगाया। साथ ही मैं बचपन से ही बौद्ध दर्शन के अध्ययन में लगा हुआ था।’‘जब मैं वरेला से मिला, तो मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिला जो एक वैज्ञानिक था, लेकिन जिसकी बौद्ध धर्म में भी गहरी दिलचस्पी थी। जब वे बौद्ध दृष्टिकोण से बोलते थे तो वे कहते थे, ‘मैं यह अपनी बौद्ध टोपी पहने हुए कह रहा हूं’ और बाद में जब वे वैज्ञानिक राय दे रहे होते तो कहते, ‘अब मैं अपने वैज्ञानिक की टोपी पहन रहा हूं।’ मैंने महसूस
किया कि मुझे उनके जैसे किसी व्यक्ति की आवश्यकता है जो बौद्ध धर्म को समझता हो लेकिन पेशेवर रूप से वैज्ञानिक भी हो। उन्होंने मुझे प्रभावित किया और मैं उन्हें हमेशा याद रखूंगा। मैं आज भी उसकी तस्वीर अपने कमरे में रखता हूं।
परम पावन ने आगे कहा, ‘बाद में मुझे कई और वैज्ञानिकों से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। ऐसा लगता है कि विज्ञान हाल ही में पश्चिम में विकसित हुआ है जहां ईसाई धर्म, यहूदी धर्म और कुछ हद तक इस्लाम का पालन किया जाता है। लेकिन वैज्ञानिकों या धार्मिक लोगों के बीच मन और भावनाओं के बारे में ज्यादा बात नहीं हुई। और फिर भी मन परिष्कृत है। यह हमें सोचने, ध्यान करने और बदलने में सक्षम बनाता है।’ अपनी भावनाओं पर काबू पाने के लिए, हमें मन और भावनाओं की प्रणाली के काम करने के तरीके की बेहतर समझने की आवश्यकता है। फ्रांसिस्को वरेला ने उदाहरण के द्वारा दिखाया कि विज्ञान और बौद्ध धर्म साथ-साथ काम कर सकते हैं।
परम पावन ने कहा, ‘उनका और मेरा मानना रहा है कि हम एक जीवन के बाद दूसरा जीवन जीते हैं और मुझे पूरा यकीन है कि वरेला को अपना अगला जीवन मेरे करीबी दोस्तों के बीच मिलेगा। हम एक-दूसरे को पहचानें या नहीं, हम एक-दूसरे के लिए उसके पिछले जीवन के अनुभव के परिणामस्वरूप मजबूत भावनाएं रखेंगे। जब मैं बहुत छोटा था तो कुछ लोग मेरे घर आए। ये सब लोग 13वें दलाई लामा के करीबी थे और मैंने पहचान लिया कि वे कौन हैं।’ उन्होंने कहा, ‘वरेला और मैंने एक मजबूत संबंध विकसित किया और मुझे यकीन है कि अगर मैं 10-20 साल और जीवित रह गया, तो मैं एक ऐसे बच्चे से मिलूंगा, जिसके पास उनके बारे में कहने के लिए कुछ खास बात होगी। अब मैं अपने पुराने दोस्त के बारे में बात करके खुश और गर्व महसूस कर रहा हूं और मुझे खुशी है कि उसकी पत्नी भी हमारे साथ है।’
उन्होंने कहा; एक बेहतर दुनिया के लिए संवाद; बेहद महत्वपूर्ण विषय है। आज की दुनिया में अपने व्यापक भौतिक विकास के साथ, जिसमें हथियारों का निर्माण भी शामिल है, मेरे राष्ट्र मेरे लोगों पर बहुत अधिक दबाव है। नेताओं का केवल एक संकीर्ण फोकस होता है। जब लोगों का एक और समूह एक अलग दृष्टिकोण अपनाता है, तो हम भी उन्हें आसानी से शत्रुतापूर्ण मानते हैं और उन्हें अपना दुश्मन कहते हैं। हालांकि, कुल मिलाकर वैज्ञानिक इस या उस समूह के बजाय पूरी मानवता से अधिक चिंतित हैं। परम पावन ने कहा, आज, ‘हम’ और ‘उन’ की भावना बहुत मजबूत है। ‘मेरा दोस्त’ या ‘मेरा दुश्मन’ की बहुत अधिक समझ है। लेकिन हम इसे बदल सकते हैं। मैं मानवता की एकता के विचार के लिए प्रतिबद्ध हूं। मनुष्य के रूप में हम सब एक जैसे हैं। इससे बढ़कर बात यह है कि हम सभी को इस ग्रह पर एक साथ रहना है। हमारे पास एक वैश्विक अर्थव्यवस्था है। हम एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इसलिए, हमें अब जीवित सभी सात अरब मनुष्यों के कल्याण के बारे में सोचना चाहिए।
परम पावन ने याद दिलाया, ‘हमारा अतीत बहुत अधिक हिंसा से रक्तरंजित रहा है। लेकिन देखिए यूरोपीय संघ (ईयू) ने क्या हासिल किया है। लंबे समय से दुश्मन फ्रांस और जर्मनी अपनी ऐतिहासिक शत्रुता को भूलकर यूरोपीय संघ का निर्माण करने में आगे आ गए। तब से, सदस्य राज्यों के बीच कोई लड़ाई या हत्या नहीं हुई है। पूरी दुनिया इस तरह के दृष्टिकोण को क्यों नहीं अपना सकती? केवल मेरे देश के बारे में सोचने के बजाय, पूरी दुनिया को अपने संदर्भ में सोचें। यह कुछ ऐसा है जिसे मैं प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।’
‘हालांकि, मैं भारत में रहने वाला सिर्फ एक शरणार्थी हूं, एक ऐसा देश जिसके साथ हमारे लंबे संबंध हैं। भारत हमारा पड़ोसी है, लेकिन यह हमारे सभी ज्ञान का स्रोत भी है। यह हमारे प्राचीन घर जैसा है।’
उन्होंने कहा, ‘मानवता की एकता के लिए काम करने से मुझे सहज महसूस होता है क्योंकि इससे मुझे यह महसूस करने में मदद मिलती है कि मैं जहां भी जाता हूं, जिससे मैं मिलता हूं, वह मेरे जैसा दूसरा इंसान है। मनुष्य के रूप में हम सब भाई-बहन हैं। इस ग्रह पर सभी मनुष्यों की एकता के बारे में सोचने से मन को शांति मिलती है क्योंकि तब डर या अविश्वास के लिए कोई जगह नहीं रह जाता है।’
परम पावन ने कहा, ‘मैं मानवता की एकता और सभी धार्मिक परंपराओं के मूल्य की मान्यता के इस विचार को साझा करने के लिए प्रतिबद्ध हूं, क्योंकि सभी करुणा के महत्व को सिखाते हैं। मैं पारिस्थितिकी के लिए भी प्रतिबद्ध हूं। तिब्बत में पुरानी पीढ़ियों ने मुझे बताया कि आज की तुलना में पहले बहुत अधिक बर्फ हुआ करती थी। यह महत्वपूर्ण है
क्योंकि तिब्बत उन प्रमुख नदियों का स्रोत है जो एशिया के बड़े हिस्से में जल की आपूर्ति करती हैं। इसलिए, हमें पर्यावरण की रक्षा करनी होगी।’ माइंड एंड लाइफ यूरोप के अध्यक्ष एमी कोहेन वरेला ने परम पावन से पूछा कि उन्होंने वैज्ञानिकों के साथ संवाद में शामिल होने के लिए इतना समय क्यों दिया। उन्होंने तिब्बती में उत्तर दिया, जिसका थुप्टेन जिन्पा द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद किया गया, कि एक बौद्ध के रूप में वह प्रतिदिन स्वयं से पूछते हैं कि वे सभी सत्वों की सहायता के लिए क्या
कर सकते हैं।
वह शांतिदेव के ‘बोधिसत्व के मार्ग में प्रवेश’ के एक प्रमुख श्लोक पर चिंतन करते हैं :
जब तक अंतरिक्ष कायम है,
और जब तक सत्वगुण रहते हैं,
तब तक मैं भी रहूं दुनिया के दुखों को दूर करने में मदद करने के लिए।
उन्होंने कहा कि वे नागार्जुन की ;प्रेसिएस गारलैंड (अनमोल / बहुमूल्य); से एक श्लोक पर भी विचार करते हैं:
क्या मैं हमेशा आनंद की वस्तु बन सकता हूं
सभी जीवों को उनकी इच्छा के अनुसार
और बिना किसी हस्तक्षेप के, जैसे पृथ्वी हैं,
पानी, आग, हवा, जड़ी-बूटियाँ और जंगली जंगल।
उन्होंने कहा, मैं इस दुनिया की जो भी मदद कर सकता हूं, मैं अपना जीवन उसी के लिए समर्पित करता हूं।’ परम पावन ने आगे कहा, ‘मैं अपने दैनिक क्रियाकलापों में आचार्य नागार्जुन द्वारा प्रतिपादित जाग्रत मन की व्यापक साधना के साथ-साथ शून्यवाद के गहन दृष्टिकोण को विकसित करने पर जोर देता हूं। जहां तक जाग्रत मन का संबंध है, मैंने एक साधना पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसे स्वयं और पर के बीच समानता और आदान-प्रदान कहा जाता है। इस सिद्धांत का प्रतिपादन प्रोत्साहन के रूप में शांतिदेव ने किया था। जो दूसरों के दुख को दूर करने के लिए अपने स्वयं के सुख का त्याग नहीं करता, उसके लिए बुद्धत्व की प्राप्ति निश्चित रूप से असंभव है। जन्म- मरण के चक्र के अस्तित्व में रहते सुख हो भी कैसे सकता है?
संसार में जो भी प्राणी कष्ट में पड़े हुए हैं वे सब अपने सुख की इच्छा के कारण हैं। दूसरी ओर संसार में जितने भी प्राणी सुखी हैं, वे दूसरों के सुख की इच्छा के कारण ऐसी स्थिति में हैं।
हम जो समस्याओं का सामना करते हैं, वे हमारे ‘मैं’ और ‘मुझे’, ‘हम’ और ‘उन’ के विचार में निहित हैं। आइए सभी जीवों के कल्याण की भावना को एक तरफ रख दें और कम से कम सभी मनुष्यों के कल्याण की भावना से काम करें और इसी बारे में सोचें। इस तरह की आत्मीयता के आधार पर हम अपने सोचने और व्यवहार करने के तरीके को बदलने में सक्षम होंगे ताकि हम दूसरों को नुकसान पहुंचाने से बच सकें।’
ब्रुनेल विश्वविद्यालय, लंदन मनोविज्ञान में वरिष्ठ व्याख्याता एलेना एंटोनोवा ने परम पावन से पूछा कि वैज्ञानिकों के साथ बातचीत का उनकी सोच पर क्या प्रभाव पड़ा। उन्होंने दोहराया कि उनकी बचपन से ही विज्ञान में रुचि थी।
एक बार जब वे भारत पहुंचे तो वे कार्यरत वैज्ञानिकों से मिल पाए और उन्हें पता चला कि मन और भावनाओं के बारे में उनकी समझ अपर्याप्त थी। जहां बौद्ध धर्म 51 मानसिक कारकों और उनमें से उपसमूहों का वर्णन करता है, वहीं
अंग्रेजी भाषा में केवल एक शब्द है- भावना।
उन्होंने कहा, यह महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारी कुछ भावनाएं हमारे लिए समस्याएं पैदा करती हैं। हमें इनसे निपटने की तकनीक सीखनी होगी। अगर हमें अपनी सबसे अधिक परेशानी वाली भावनाओं से निपटना है तो हमें मारक औषधियों और उन्हें विकसित करने के तरीकों की खोज करनी होगी। जैसे-जैसे हमारी समझ बढ़ेगी हम प्रगति करेंगे।
इस दृष्टि से बौद्ध दृष्टिकोण विज्ञान के समान है।
‘विज्ञान हमें मानव शरीर और उस भौतिक दुनिया का ज्ञान प्रदान करता है, जिसमें हम रहते हैं। लेकिन हम सभी शांति और आनंद पाना चाहते हैं और इसका मतलब है कि हमें अपने मन का ख्याल रखना होगा। भावनाएं समस्या पेश करती हैं, लेकिन समाधान फिर से मन में होता है। हालांकि क्रोध बहुत परेशान करने वाला होता है, लेकिन हम इसे दूर करने की कामना करके ही इससे नहीं निपट सकते। हम इससे तभी निपट सकते हैं जब हम यह जान लें कि यह किस कारण से उत्पन्न होता है, इसके क्या परिणाम हो सकते हैं और प्रेम-कृपा के द्वारा कैसे इसका प्रतिकार किया जा सकता है। हमें सबसे पहले अपने खुद का दृष्टिकोण ठीक करने और अपने मन को समझना सीखना होगा। वरेला ने वैज्ञानिक
और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के संयोजन की आवश्यकता को पहचाना और मैंने समझा, ‘यही सच है’।
परम पावन ने कहा, ‘मुझे आध्यात्मिक शिक्षाओं को बढ़ावा देने में इतनी दिलचस्पी नहीं है, लेकिन मुझे विश्वास है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष संदर्भ में शामिल आध्यात्मिक शिक्षाओं के ज्ञान को नियोजित कर सकते हैं। बच्चों को सूचनाओं को याद रखने के लिए उनके दिमाग को प्रशिक्षित किया जा सकता है, लेकिन प्राचीन भारतीय परंपरा में मन को प्रशिक्षित करने पर जोर दिया गया था। इसमें विभिन्न प्रकार की बुद्धि, तेज, मर्मज्ञता और विशाल बुद्धि विकसित करना शामिल था जो अधिक व्यापक समझ को सक्षम बनाता है। इसे धर्म से न जोड़ते हुए शिक्षा के लिए एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण बनाया जा सकता है।’
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास प्राकृतिक कौशल और क्षमताएं हैं जिन्हें प्रशिक्षण के साथ बढ़ाया जा सकता है। जब महामारी के कारण लगे प्रतिबंधों को हटा लिया जाता है तो मैं एक चीज का इंतजार कर रहा हूं कि तब मैं दिल्ली में समय बिताऊंगा और मन के प्राचीन भारतीय ज्ञान का दोहन कर इसमें वर्णित मानसिक प्रशिक्षण के बारे में सीखने की कोशिश करूंगा।’
परम पावन ने लुसी से कहा कि आधुनिक विज्ञान अब भी भौतिकवाद की ओर बहुत अधिक उन्मुख है। यहां तक कि मानव का अनुभव भी चेतना के संबंध के बजाय मस्तिष्क के संदर्भ में ही देखने की रही है। यदि मस्तिष्क ही ध्यान का एकमात्र केंद्र है और चेतना की व्यक्तिपरकता को ध्यान में नहीं रखा जाता है तो इसका मतलब है कि यह मानव अनुभव की पूरी तस्वीर नहीं पेश कर पा रहा है। यह चेतना या मन की अनूठी विशेषता को छोड़ देगा जो कि व्यक्तिपरक आयाम में महसूस किया जाता है।
उन्होंने कहा कि हम सभी आनंद महसूस करना चाहते हैं, लेकिन यह हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करता है कि क्या हमें अपने अंदर की शांति है। परम पावन ने आशा व्यक्त की कि विज्ञान स्कूली बच्चों को शिक्षा के माध्यम से यह दिखाने और समझाने में सक्षम होगा कि कैसे मन की शांति, दया और करुणा जैसे गुणों को विकसित किया जा सकता है, जो मानव जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।
परम पावन ने कहा, ‘वैज्ञानिक भी हम लोगों की तरह ही इंसान हैं। वे भावनात्मक समस्याओं का भी सामना करते हैं और मन की शांति चाहते हैं। लेकिन मन की शांति को विकसित करना सीखने के लिए दिमाग के काम करने की अच्छी समझ की आवश्यकता होती है। एक विश्लेषणात्मक और चिंतनशील दृष्टिकोण के बाद इसे लाने में मदद मिल सकती है। वर्षों से, जैसे-जैसे हमारे संवाद चल रहे हैं, अधिक से अधिक वैज्ञानिक अपनी मानसिक बेहतरी पर ध्यान दे रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘उन्होंने विश्लेषण किया है कि कैसे क्रोध उनके मन की शांति को भंग करता है। उन्होंने जांच की है कि उनका यह क्रोध और अशांति कहां से आती है और यह कैसे उत्पन्न होती है। शांतिदेव इसका कारण परिप्रेक्ष्य में अंतर को बताते हैं। वह बताते हैं कि जो व्यक्ति धैर्य धारण करता है, उसके समक्ष शत्रुतापूर्ण, चिड़चिड़ा व्यवहार करनेवाला व्यक्ति भी सर्वश्रेष्ठ शिक्षक बन जाता है। इस तरह का दृष्टिकोण चीजों को देखने का एक अलग तरीका विकसित करता है
जिससे कि वास्तविक परिवर्तन हो सकता है।
उन्होंने कहा कि शून्यवाद से संबंधित इस तरह की जांच के एक अन्य पहलू के तौर पर इस सवाल के लिए तैयार रहना चाहिए होगा कि यह ‘मैं’ या; कौन हूं या क्या हूं? इसका क्या मतलब है? क्रोध और मोह का आधार यह
है कि इसमें एक वास्तविक; शामिल है। नागार्जुन के;मध्य मार्ग की मौलिक बुद्धि; में एक श्लोक है जो तथागत या बुद्ध की पहचान की जांच करता है। हम इसे अपने संदर्भ में और अपने घटक भागों के साथ हमारे संबंधों के संदर्भ में बदल सकते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि ‘इस श्लोक पर विचार करते हुए हम यह पहचान सकते हैं कि; न तो मन-शरीर के घटकों
में से एक है, न ही उनसे अलग है। मन-शरीर के घटक; पर (आश्रित) नहीं हैं, न ही उन पर; मैं; (आश्रित) हैं। मैं; में मन-शरीर के घटक नहीं हैं। तो ;मैं; कौन हूँ? हम पाते हैं कि कोई वास्तविक, ठोस आत्मा नहीं है जिसे हम इंगित कर सकें।
हमें दो-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। एक तरफ तो भावनाओं और उनके प्रतिशोध की जांच करना है।
लेकिन दूसरी तरफ यह भी सवाल करना कि क्या एक वास्तविक, ठोस ‘मैं’ या ‘मुझे’ वस्तुनिष्ठ रूप से मौजूद है जैसा कि यह प्रतीत होता है। इसका कुछ असर होगा।
परम पावन ने सुझाया, ‘कल्पना कीजिए कि आपकी प्रबल भावनाओं को वैसे ही व्यक्त किया जाता है जैसा कि वाद-विवाद में आपके विरोधियों ने बताया है। क्रोध और मोह को चुनौती देकर यह कहें कि यह; स्व; कहाँ है, जिसका वे बचाव करते हैं। अंततः वे स्वीकार करेंगे कि ऐसा कोई स्व नहीं है। हम वास्तव में कई धारणाओं पर सवाल उठा सकते हैं जो हमारी गलत धारणाओं के पीछे हैं। ऐसा नहीं है कि हम मौजूद नहीं हैं, लेकिन हम प्रतीत्य समुत्पाद के एक कार्य के रूप में मौजूद हैं। वस्तुनिष्ठ वास्तविकता एक झूठा प्रक्षेपण है जिसका हमारी भावनाओं पर शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है।’
परम पावन ने चंद्रकीर्ति के;मध्य मार्ग में प्रवेश; के छंदों की ओर संकेत किया जो पारंपरिक और परम सत्य के दो पंखों पर ज्ञानोदय और मुक्ति की ओर बढ़ते हैं।
हमारी सामान्य मानवता की भावना को बढ़ावा देने के संबंध में परम पावन ने कहा कि वे इसे व्यावहारिक दृष्टि से देखते हैं। हम इस एक ग्रह को साझा करते हैं और हमारी दुनिया वास्तव में अन्योन्याश्रित है। जब; और; के संदर्भ में बहुत अधिक विभाजन होता है, तो यह पारस्परिक रूप से विनाशकारी होता है। कोई नहीं जीतता। दूसरी ओर, अगर हम मानवता की एकता की भावना को मजबूत करते हैं और उन लोगों को गले लगाते हैं जो हमसे अलग हैं, तो हम सभी अधिक शांति से और अधिक खुशी से एक साथ रहना सीख सकते हैं। उन्होंने कहा, यह जीवित रहने की साधारण बात है।
परम पावन ने टिप्पणी की कि आस्तिक धार्मिक परंपराओं के अनुयायी स्रष्टा के तौर पर ईश्वर में विश्वास रखते हैं, जिसे वे ईश्वर के रूप में देखते हैं। और एक ईश्वर की सन्तान होने के नाते वे कहते हैं कि हम सब भाई-बहन हैं। अगर हम आपस में लड़ते और मारते हैं, तो पिता परमेश्वर को कैसा लगेगा? उन्होंने घोषित किया कि यही कारण है कि हमें खुशी-खुशी और सौहार्दपूर्ण ढंग से एक साथ रहना सीखना होगा। गैबर करसाई ने कहा कि बैठक का समापन इससे बेहतर तरीके से नहीं हो सकता था। उन्होंने परम पावन को उनकी बुद्धिमत्ता और मित्रता के लिए धन्यवाद दिया, जिससे उन्होंने अध्ययन के एक नए क्षेत्र को जन्म दिया है- चिंतनीय विज्ञान।