जनसत्ता, 11 नवंबर 2015
असहिष्णुता पर बढ़ती बहस के बीच तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने कहा है कि असहमति का भी सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का आशय सभी धार्मिक मान्यताओं व किसी धर्म में आस्था नहीं रखने वालों के प्रति सम्मान करना है। उन्होंने कहा कि आप खुद से असहमत सभी लोगों का सफाया नहीं कर सकते।
आइआइटी, मद्रास में ‘ह्यूमन एप्रोच टू वर्ल्ड पीस’ विषय पर एक व्याख्यान के दौरान दलाई लामा ने इस बात पर नाखुशी जताई कि पिछली सदी काफी हिंसा भरी रही। उन्होंने कहा कि यह अभी तक जारी है और इसे बेतुका बताया। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का आशय सभी धर्मों और किसी धर्म में आस्था नहीं रखने वालों के प्रति सम्मान करना है। उन्होंने कहा कि दुनिया में सात अरब लोगों में एक अरब से ज्यादा नास्तिक हैं। किसी धर्म में आस्था नहीं रखने वालों का भी सम्मान किया जाना चाहिए, क्योंकि किसी व्यक्ति की धार्मिक धारणा एक निजी मामला है। उन्होंने कहा कि भारत अपने धार्मिक सौहार्द को लेकर शेष दुनिया के लिए एक उदाहरण है। दलाई लामा ने कहा कि जहां कहीं चीनी जाते हैं वहां चाइना टाउन शुरू हो जाता है। इसी तरह जहां कभी भारतीय जाते हैं उन्हें इंडियन टाउन शुरू करना चाहिए। उन्हें वहां दुनिया को धार्मिक सौहार्द के बारे में शिक्षा देनी चाहिए।
अगला दलाई लामा एक महिला को बनाए जाने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा-‘यह बहुत अधिक संभव है।’ उन्होंने इस बात की संभावना के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में हंसते हुए कहा-‘मैंने यह कई बार पहले कहा है। वह सुंदर होनी चाहिए। चेहरा भी मायने रखता है क्या ऐसा नहीं है?’ उन्होंने कहा कि अगर महिला राष्ट्राध्यक्ष होंगी तो दुनिया कहीं ज्यादा खूबसूरत होगी।
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