धर्मशाला। अमेरिका के दो सांसदों ने तिब्बत में बच्चों को उनके माता-पिता से जबरन अलग कर चीन द्वारा बनाए गए आवासीय स्कूलों में रखने वाली रिपोर्ट की जांच संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के मानवाधिकार उच्चायुक्त से कराने की मांग की है। उन्होंने कहा कि ये मामले गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन और सांस्कृतिक और भाषाई क्षरण के हैं।
चीन पर द्विदलीय-द्विसदनीय कांग्रेस कार्यकारी आयोग (सीईसीसी) के अध्यक्ष सीनेटर जेफ मर्कले और उपाध्यक्ष प्रतिनिधि सभा के सदस्य जिम मैकगवर्न ने मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क को भेजे गए एक पत्र में चीन की स्थिति पर रिपोर्ट का हवाला दिया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन सरकार तिब्बत क्षेत्र में आवासीय स्कूल चलाती है, जहां लगभग ८० प्रतिशत तिब्बती बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है और वहां के ‘अत्यधिक राजनीतिक पाठ्यक्रम’ के तहत उनकी तिब्बती पहचान पर संकट मंडरा रहा है।
तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट की २०२१ की रिपोर्ट के आधार पर अमेरिकी सांसदों ने कहा कि ‘औपनिवेशिक आवासीय स्कूलों’ में ६ से १८ वर्ष की आयु के बच्चों को उनके माता-पिता से अलग कर डाल देना, बच्चों को इकट्ठा करके तिब्बती भाषा का मंदारिन चीनी आधारित पाठ्यक्रम में शामिल कर ‘चीनीकरण’ करना चीन की नीति का अभिन्न अंग है। चीन में कहीं और रहने वाले छात्रों की तुलना में इन स्कूलों में रहने वाले तिब्बती बच्चों की बड़ी संख्या से चीनी नीति की भेदभावपूर्ण प्रकृति स्पष्ट होती है।
तिब्बती माता-पिता को भी अक्सर अपने बच्चों को इन स्कूलों में भेजने के लिए मजबूर किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप उनके परिवारों से अलग होने, कठोर रहने और धमकाने के कारण अपने बच्चों के लिए ‘मानसिक और भावनात्मक संकट’ होता है। सांसदों ने कहा कि ‘यह अपनी पारिवारिक इकाई की अखंडता को बनाए रखने और अपने बच्चों के शैक्षिक मार्ग को चुनने के माता-पिता के अधिकार में हस्तक्षेप करता है।’
मर्कले और मैकगवर्न ने लिखा है, ‘चीन ने आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में किए वादों का सम्मान करने के अपने दायित्व का उल्लंघन किया है। इन सम्मेलनों में कहा गया है कि राज्य को सरकारी पक्ष के रूप में नागरिकों द्वारा अपने सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और अधिकारों का पालन करने में हस्तक्षेप नहीं करने की आवश्यकता है। यह अधिकार आंतरिक रूप से शिक्षा के अधिकार से जुड़ा हुआ है, जो व्यक्तियों और समुदायों को मूल्यों, धर्म, रीति-रिवाजों, भाषा और अन्य सांस्कृतिक संदर्भों को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने की अनुमति देता है।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रवक्ता तेनज़िन लेक्ष्ये ने समझाया कि तिब्बत में चीन के आवासीय स्कूल ‘अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से तिब्बतियों को निशाना बनाते हैं और उनका शोषण करते हैं, जिन्हें जान-बूझकर अपनी मातृभाषा, संस्कृति और धर्म सीखने से काट दिया जाता है।’ केंद्रीय तिब्बती प्रशासन संयुक्त राष्ट्र से तिब्बत में औपनिवेशिक आवासीय स्कूलों के माध्यम से तिब्बती बच्चों के जबरन पारिवारिक अलगाव की जांच करने की मांग के लिए अमेरिकी कांग्रेस को धन्यवाद देता है।
पत्र में उल्लेख किया गया है कि बाल अधिकारों के सम्मेलन द्वारा आवश्यक तौर पर यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि गैर-कानूनी हस्तक्षेप न करते हुए राष्ट्रीयता, नाम और पारिवारिक संबंधों सहित अपनी पहचान को संरक्षित करने के बच्चे के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए और ‘जातीय, धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों’ के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए उन्हें अपनी भाषा का उपयोग करने का अधिकार होना चाहिए। सांसदों ने कहा कि इन सम्मेलनों के प्रस्तावों को स्वीकार कर लेने के बाद भी चीन ऐसा न करके अपने इन दायित्वों का उल्लंघन कर रहा है।’ नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध के एक हस्ताक्षरकर्ता के रूप में चीन की आवासीय स्कूल नीति अनुबंध के अनुच्छेद-१८ का उल्लंघन करती है, जिसके अनुसार राज्यों को अपने बच्चों को उनकी मान्यताओं के अनुसार नैतिक शिक्षा प्रदान करने के लिए माता-पिता की स्वतंत्रता का सम्मान करने की आवश्यकता होती है।
पत्र में संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त से अगले साल मार्च में आगामी मानवाधिकार परिषद में इसे चिंता के मुद्दे के रूप में शामिल करने की अपील की गई है। साथ ही साथ विशेष प्रतिवेदकों और विशेषज्ञों से आग्रह किया गया है कि वे तिब्बत के मानवाधिकार प्रभाव का आकलन करने और आवासीय विद्यालयों की जमीनी हकीकत का आकलन करने के लिएके लिए तिब्बत की यात्रा की अनुमति प्राप्त करें। अतीत में इस्तेमाल की गई ऐसी ही नीतियों के कारण स्वदेशी बच्चों के ‘सांस्कृतिक संहार’ के द्वारा उनकी पहचान को मिटा दिया गया और बदल दिया गया। इसे ध्यान में रखते हुए अमेरिकी कानून निर्माता ऐसी नीतियों को तिब्बत में लागू करने से रोकने के लिए दृढ़ हैं।