जनसत्ता, 3 फ़रवरी 2014
गुवाहाटी। तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने दुनिया में हिंसा की समस्या को तमाम स्तर पर बातचीत से हल करने का आह्वान किया। दलाई लामा ने शांति पर एक व्याख्यान में कहा कि सिर्फ यह कहना काफी नहीं होगा कि हम शांति चाहते हैं।
हिंसा के कारणों को वार्ता के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा कि वैश्विक समस्याओं के समाधान दिमाग में रखते हुए स्थानीय समस्याओं को हल करने का प्रयास करें। उन्होंने नेहरू स्टेडियम में तिब्बती शरणार्थियों और अन्य के एक बड़े जलसे को संबोधित करते हुए कहा कि अगर वैश्विक समस्याओं के समाधान को ध्यान में रखते हुए स्थानीय समस्याएं हल नहीं की गईं तो हिंसा फूटेगी। ताकत का इस्तेमाल अनापेक्षित नतीजे देगा। बलप्रयोग आज पुराना पड़ गया है।
तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने दुनिया भर के संघर्षों और युद्धों का जिक्र करते हुए कहा कि युद्धों के लिए मकसद भले ही अच्छा हो सकता है लेकिन जब तरीका सही नहीं हो तो उसके अनपेक्षित परिणाम निकलते हैं। यही वजह है कि हमें हर स्तर पर लागों को अहिंसा के बारे में शिक्षित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अहिंसा का तरीका हालांकि एकतरफा विजय और एकतरफा पराजय नहीं हो सकता। उसके बाद संघर्ष से हिंसा को बढ़ावा मिलेगा।
तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने कहा, ‘इस सिद्धांत के साथ हम (तिब्बत) चीन से स्वतंत्रता नहीं मांग रहे हैं। उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ की ओर देखिए। वहां के लोग अधिक परिपक्व हैं और वे वास्तविकता के अनुरूप सोचते हैं। उनके सहयोगी पहले एक दूसरे से युद्ध करते थे। लेकिन अब उन्होंने ईयू के बारे में विचार विकसित कर लिया है… काफी व्यवहारिक।’
उन्होंने कहा कि मैं अपने अफ्रीकी मित्रों से कहता हूं कि उनका भविष्य एकजुटता पर निर्भर करता है। उत्तर और दक्षिण अमेरिका भी मानवीय तरीकों से अपनी समस्याओं का हल कर सकते हैं। मैं अक्सर लोगों से कहता हूं कि वैज्ञानिक और आर्थिक विकास की दृष्टि से 20वीं सदी वास्तव में काफी आश्चर्यजनक विशेष सदी रही है। लेकिन साथ ही काफी हिंसक सदी रही है।
दलाई लामा ने कहा कि 21वीं सदी की शुरुआत में भी यहां वहां हिंसा हुई है। वे विगत की असहमतियों का नतीजा हैं। हिंसा से कभी भी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता, इसलिए इस 21वीं सदी को वार्ता की सदी होनी चाहिए। अन्य लोगों की भलाई और समस्याओं के प्रति चिंता से समस्याओं का समाधान होगा। उन्होंने कहा कि प्राचीन समय में हर कोई अपने बारे में या अपने देश के बारे में सोचता था लेकिन स्थिति बदली है और आज वैश्विक अर्थव्यवस्था ने विभिन्न देशों को एक दूसरे के करीब ला दिया है।
दलाई लामा ने कहा कि वास्तविकता यह है कि सोचने का पुराना तरीका अब अप्रासंगिक हो गया है। वास्तविक बदलनी चाहिए। ‘हम लोग’ और ‘वे लोग’ पर दिया जा रहा जोर बदलना चाहिए। अन्यथा उत्पीड़न, हिंसा और युद्ध जारी रहेंगे। उन्होंने दावा किया कि पंथ के नाम पर सीरिया और अफ्रीका के अन्य देशों में हत्याएं हो रही हैं। क्यों? क्योंकि ‘हम’, ‘वे लोग’ और ‘मुझे’ पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मानव के बारे में स्वकेंद्रित रवैया बदलना होगा। पृथ्वी के सात अरब लोगों को पूरी मानवता के कल्याण के बारे में विचार करना होगा और उन्हें पर्यावरण के बारे में चिंता करनी होगी।
उन्होंने आह्वान किया कि लोग एक प्रसन्न समाज बनाने के बारे में विचार करें। विभिन्न पड़ोसियों से मित्रता करने का प्रयास करें। आज का दुश्मन कल का मित्र हो सकता है। इस प्रेरक विचार से समस्याओं का हल करने के तरीकों पर सोचें।