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संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 43वें नियमित सत्र में 27 फरवरी को अपनी रिपोर्ट पेश करने के दौरान संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेट ने इस वर्ष चीन की यात्रा का निमंत्रण मिलने का स्वागत किया। यात्रा का उद्देश्य बताते हुए सुश्री बेचेलेट ने घोषणा की कि ष्हम चीन में मानवाधिकारों की स्थिति का गहराई से विश्लेषण करने की कोशिश करेंगे, जिसमें उइगर अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति भी शामिल है।ष्
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के राष्ट्रपति डॉ. लोबसांग सांगेय ने घोषणा का स्वागत करते हुए कहा, “यह यात्रा समय की आवश्यकता है। हालांकि, चीन में मानवाधिकार की स्थिति का कोई भी विश्लेषण तिब्बत की यात्रा के बिना पूरा नहीं हो सकता है। तिब्बत में तिब्बतियों को चीन द्वारा अवैध कब्जे के 60 से अधिक वर्षों में मानव अधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ रहा है। नागरिक अधिकारों के लिए कोई मौका न होने के कारण 2009 के बाद से तिब्बत में 154 तिब्बतियों को आत्मदाह करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र को कदम बढ़ाने चाहिए और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए हम संयुक्त राष्ट्र की उच्चायुक्त से आग्रह करते हैं कि वह चीन दौर के बीच तिब्बत का दौरा भी करें। ताकि वह खुद अपनी आंखों से देख सकें कि तिब्बती लोग किस तरह लगातार डर और निगरानी जैसी विषम परिस्थितियों में रह रहे हैं।
यदि सुश्री बाचेलेट को अनुमति दी जाती है तो तिब्बत की यात्रा करने वाली वह दूसरी उच्चायुक्त होंगी। इससे ठीक 22 साल पहले 1998 में एक उच्चायुक्त सुश्री मैरी रॉबिन्सन ने तिब्बत की यात्रा की थी। चीन ने कई बार बातचीत के बावजूद उच्चायुक्तों सहित संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों को बार-बार तिब्बत तक जाने की अनुमति देने से इनकार किया है। असल में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के उच्चायुक्त के रूप में अपने अंतिम संबोधन में प्रिंस जायद राद अल हुसैन ने तिब्बत और पूर्वी तुर्किस्तान (चीनीरू झिंझियांग) के लिए बेरोकटोक जाने की अनुमति न देने के लिए चीन की आलोचना की थी।
सुश्री बाचेलेट ने अपनी यात्रा की तैयारी के लिए चीन से ष्अपनी अग्रिम टीम को बेरोकटोक पहुंचष् के लिए भी अनुरोध किया है। हालांकि, चीन ने संयुक्त राष्ट्र के उन कुछ विशेषज्ञों का हमेशा पीछा किया है जिन्हें चीन ने अपने यहां दौरे की अनुमति दी है। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ की चीन यात्रा की अंतिम उपलब्ध रिपोर्ट स्पष्ट रूप से बताती है कि विशेषज्ञ की किस तरह से सुरक्षा अधिकारियों द्वारा आम नागरिक के वेष में लगातार खुफियागिरी की गई और यहां तक कि विशेषज्ञ से मिलने की कोशिश करनेवाले चीनी नागरिकों को हिरासत में भी ले लिया गया।
तिब्बत में मानवाधिकार की स्थिति बिगड़ती जा रही है। तिब्बतियों के लिए कोई भी स्वतंत्रता नहीं है। फ्रीडम हाउस द्वारा तिब्बत को दुनिया में लगातार दूसरे सबसे कम मुक्त क्षेत्र के रूप में रखा गया है। ऐसे अन्याय के खिलाफ आवाज उठानेवाले तिब्बतियों को हिरासत में रखा गया और प्रताड़ित भी किया जाता है।
राष्ट्रपति श्री सांगेय ने कहा, “पूर्वी तुर्किस्तान में स्थिति को समझने के लिए किसी के लिए भी यह जानना जरूरी होगा कि तिब्बत में क्या हुआ है और क्या हो रहा है। यह तिब्बतियों का निरा लचीलापन है, जिसने तिब्बती अस्मिता के विलोप और उसका चीनीकरण हो जाने से रोका है। तिब्बत की मूल समस्याओं का समाधान किए बिना चीन में मानवाधिकारों की स्थिति में बेहतरी की उम्मीद नहीं की जा सकती है।“