‘हमे इस लड़ाई में शामिल होने के लिए और लोगों की आवश्यकता है। हमें चीन के अंदर टूटी चीजों को फिर से बनाने के लिए जापानी विवेक का उपयोग करने की आवश्यकता है।‘
–योशिको सकुराई
Japan-forward.com / जेसन मॉर्गन
०९ अक्तूबर, २०२२
डाउनटाउन टोक्यो में शुक्रवार, २३ सितंबर, २०२२ को कुछ दर्जन लोगों की एक मामूली लेकिन उत्साही भीड़ ने इतिहास बनते हुए देखा। उस दिन केंद्रीय तिब्बत प्रशासन के प्रमुख के रूप में लोबसांग सांगेय के उत्तराधिकारी के रूप में भारत के धर्मशाला में मई २०२१ में सिक्योंग (राष्ट्रपति) चुने गए पेन्पा छेरिंग जापान की अपनी पहली यात्रा पर थे।
सिक्योंग छेरिंग ने २२ सितंबर को काशीवा, चिबा में १०० से अधिक हाईस्कूल के छात्रों और मोरालॉजी फाउंडेशन से जुड़े लोगों को संबोधित किया। इसके बाद २३ सितंबर को वह बंक्यो सिविक सेंटर में तिब्बत, उग्यूर और दक्षिणी मंगोलिया पर आयोजित संगोष्ठी में थे। इस आयोजन ने खूब सुर्खियां बटोरीं।
निर्वासित तिब्बत के राष्ट्रपति की जापान यात्रा अपने आप में ऐतिहासिक है। लेकिन यह जनसंहारक चीन जनवादी गणराज्य (पीआरसी) में अल्पसंख्यक समूहों के प्रति जापान में बढ़ता समर्थन को भी दर्शाता है।
जापान तेजी से पीआरसी से निर्वासित अल्पसंख्यकों के अस्तित्व की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैऔर आगे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) द्वारा जातीय और धार्मिक समूहों के उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई के लिए मंच के रूप में कार्य कर रहा है।
चीन संस्कृति, धर्म, भाषा को नष्ट करने पर आमादा
२३ सितंबर को संगोष्ठी की शुरुआत जापान में परम पावन दलाई लामा के प्रतिनिधि, तिब्बत हाउस के डॉ. छेवांग ग्याल्पो आर्य के संबोधन के साथ शुरू हुई। डॉ. आर्य ने वर्तमान में पीआरसी के अंदर कई अल्पसंख्यक समुदायों के सामने आने वाली वास्तविकता को स्पष्ट शब्दों में रखा।
डॉ. आर्य ने सीसीपी के कब्जे वाले क्षेत्रों के बारे में बात करते हुए कहा कि,‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को तिब्बत, पूर्वी तुर्केस्तान और दक्षिणी मंगोलिया पर कब्जा किए हुए ७०साल से अधिक हो गए हैं।‘
‘लेकिन ये तीनों राष्ट्र अब भी पूरी तरह से चीन का हिस्सा नहीं बने हैं, क्योंकि सीसीपी का कब्जा अवैध, अन्यायपूर्ण और क्रूरतापूर्ण है। हम स्वतंत्र राष्ट्र हैंऔर चीनियों से बिल्कुल अलग हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी हमारी संस्कृति, धर्म और भाषा को नष्ट करने की कोशिश कर रही है।‘
दक्षिण मंगोलिया कांग्रेस के स्थायी उपाध्यक्ष ओल्हुनुद डाइचिन ने इस विनाश का कष्टकारी विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा, ‘महान सांस्कृतिक क्रांति के दौरान ३०,०००से अधिक मंगोल मारे गए थे। सांस्कृतिक क्रांति के बाद दक्षिण मंगोलिया पूरी तरह से सीसीपी के नियंत्रण में आ गया। मंगोलियाई मातृभूमि के बड़े हिस्से को रेगिस्तान में बदल दिया गया। सीसीपी मंगोलियाई बच्चों को उन स्कूलों में दाखिला कराती है जहां उन्हें अपनी मूल भाषा बोलने से मना किया जाता है। मंगोलियाइयों को हान चीनी संस्कृति द्वारा जबरन आत्मसात किया जा रहा है। दक्षिण मंगोलिया में ७०से अधिक वर्षों से नरसंहार चल रहा है।‘
मंचूरिया लगभग समाप्त हो चुका है
अपने संबोधन में राष्ट्रपति छेरिंग ने चीन में मंगोलियाई, उग्यूर और अन्य उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के साथ अपनी और तिब्बतियों की एकजुटता का वादा किया।
उन्होंने कहा,‘दक्षिण मंगोलिया में मंगोलियाई लोगों की आबादी अब सिर्फ १८प्रतिशत रह गई है। पीआरसी के अंदर यह मंगोलियाई अल्पसंख्यकों की सबसे संकटपूर्ण स्थिति है।‘
राष्ट्रपति छेरिंग ने एक संस्कृति, भाषा और लोगों के रूप में मंचूरियन के लगभग समाप्त हो जाने पर भी अफसोस जाहिर किया।
राष्ट्रपति छेरिंग ने कहा,‘पीआरसी के राष्ट्रीय झंडे पर अंकित पांच सितारों को चीन के अंदर पांच नस्लीय समूहों के प्रतिनिधि के तौर पर माना जाता है। लेकिन इनमें से अगर सबसे बड़ा सितारा हान चीनी मूल का प्रतिनिधित्व करने वाला है तो अन्य चार छोटे सितारे उग्यूर, मंगोलियाई, मंचू और तिब्बतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि अब समय आ गया है कि इनमें से एक छोटे सितारे को हटा दिया जाए,क्योंकि मंचू लगभग समाप्त हो चुके हैं।‘
राष्ट्रपति छेरिंग ने आगे कहा,‘ऐसे समय में जब पूरी दुनिया बहुसंस्कृतिवाद को बढ़ावा दे रही है,केवल चीन एक ऐसा देश है जो एक देश,एक संस्कृति और एक भाषा को बढ़ावा दे रहा है।‘
जापानी सांसदों को समझाया
दो दिन पहले २१ सितंबर को जापानी संसद (डायट) में राष्ट्रपति छेरिंग ने सांसदों को तिब्बत के अंदर के उन बोर्डिंग स्कूलों के बारे में बताया, जहां तीन साल की उम्र के ८०प्रतिशत तिब्बती बच्चे अपनी सांस्कृतिक और भाषाई विरासत से वंचित रखे जा रहे हैं। उन्होंने इस स्थिति को सांस्कृतिक संहार के रूप में वर्णित किया।
राष्ट्रपति छेरिंग ने कहा, ‘तिब्बती बच्चों को सीसीपी का प्रचार करने के साथ ही तिब्बती के बजाय चीनी भाषा सीखने के लिए मजबूर किया जाता है, ताकि उनका मन बदल सके, ताकि अगले १५ से २०वर्षों में कोई तिब्बती न बच पाए।‘
जापान उग्यूर एसोसिएशन के अध्यक्ष उदय केरीमु ने २३ सितंबर की संगोष्ठी में समझाया कि कैसे सीसीपी उनके उग्यूर लोगों की संस्कृति को मिटा रही है।
केरिमु ने कहा, ‘लगभग २४ प्रतिशत उग्यूर महिलाओं की जबरन नसबंदी की गई है। यह चीनी पृथकवास शिविरों में बड़ी संख्या में पुरुषों और महिलाओं को कैद रखने के अतिरिक्त की कार्रवाई है।‘
केरिमू ने समझाया,‘हत्या, यातना और बच्चों को उनके परिवारों से अलग करने सहित वहां नरसंहार के पांच तरीके अपनाए जा रहे हैं।‘
उन्होंने आगे कहा,इनमें से सिर्फ एक तरीके का उपयोग करना भी नरसंहार के अपराध को साबित करता है,जबकि पूर्वी तुर्केस्तान में सीसीपी द्वारा सभी पांचों तरीके अपनाए जा रहे हैं।‘
अब लड़ने का समय है
खुलेआम खरी-खरी बोलनेवाली विख्यात राजनीतिक विश्लेषक योशिको सकुराई ने भी २३ सितंबर को तिब्बत, उग्यूर और दक्षिणी मंगोलिया पर हुई संगोष्ठी में अपनी बात रखी। सकुराई का संदेश छोटा और सीधा था- जापान को चीन के खिलाफ सख्त होना चाहिए और सीसीपी शासन से पीड़ित अल्पसंख्यकों का समर्थन करना चाहिए।
सकुराई ने कहा, ‘जापान को अपनी रीढ़ मजबूत करने और चीनी सरकार द्वारा मानवाधिकारों के हनन की निंदा करने की जरूरत है।‘उन्होंने आगे कहा,‘जापान को उन लोगों को जितना संभव हो उतना समर्थन देना चाहिए,जो सीसीपी शासन के अत्याचारों के खिलाफ लड़ रहे हैं।‘
सकुराई ने कहा,अभी भी बहुत काम करना बाकी है।
उन्होंने इस अवसर के महत्व को देखते हुए कहा,‘यहां और भी बहुत से लोग होने चाहिए थे।‘
सकुराई ने जोर देकर कहा कि जापान को तिब्बत, दक्षिणी मंगोलिया और उग्यूरों के त्राहिमाम संदेश को अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक पहुंचाने के लिए काम करना होगा।
शिंजो आबे से प्रेरणा लेने की जरूरत
उन्होंने जापान के दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे का भी जिक्र करते हुए कहा,‘आबे साहब ऐसे लोग चाहते थे जो लड़ें।‘सकुराई ने जापानी सरकार में पीआरसी के खिलाफ नरम लाइन लेना चाहनेवाले नौकरशाहों के खिलाफ अपने शासनकाल में आबे के संघर्षों को रेखांकित करते हुए कहा, ‘आबे-साहब अब हमारे बीच नहीं हैऔर उनकी हत्या से पूरा जापान हिल गया है। लेकिन यही वह समय है जब हमें लड़ने का संकल्प लेना चाहिए। हमें इस लड़ाई में शामिल होने के लिए और लोगों की जरूरत है। हमें चीन के अंदर जो कुछ टूटा है, उसकी भरपाई करने में जापान के विवेक का उपयोग करने की जरूरत है।‘
अपना संबोधन समाप्त करती हुईंसकुराई अपने दोस्त दिवंगत शिंजो आबे को याद करके भावुक हो गई। राष्ट्रपति छेरिंग अपनी सीट से खड़े हो गए और जैसे ही सकुराई उनका स्वागत करने के लिए आगे बढ़ीं, उन्होंने गर्मजोशी से उन्हें गले लगाया और चीन के उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई में जापान को अपना समर्थन देने की घोषणा की। बीच टोक्यो में आयोजित इस कार्यक्रम मेंजापान और तिब्बत के नेताओं ने एक-दूसरे को दिलासा दिया और एक-दूसरे को संघर्ष जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया।
सकुराई ने यह भी कहा कि और अधिक किए जाने की आवश्यकता है।
जापान का महत्व
राष्ट्रपति छेरिंग ने अपनी टिप्पणी में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. आबे के प्रति सम्मान व्यक्त किया। राष्ट्रपति छेरिंग ने कहा, ‘प्रधानमंत्री आबे के पास दुनिया के लिए एक बड़ा दृष्टिकोण था। मैं उन्हें श्रद्धांजलि देता हूं।‘
छेरिंग ने तिब्बतियों,उग्यूरों,मंगोलियाई,हांगकांगवासियों और सीसीपी द्वारा सताए गए अन्य लोगों के समर्थन में खड़े होने के लिए सकुराई की भी सराहना की।
सकुराई की एकजुटता के आह्वान को दोहराते करते हुएउन्होंने दर्शकों को याद दिलाया कि ‘चीन के कई कमजोर बिंदु हैं।‘उन्होंने जापान के लोगों से आग्रह किया कि वे चीन से न डरें। राष्ट्रपति छेरिंग ने कहा कि,‘चीन दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जो राष्ट्रीय रक्षा की तुलना में आंतरिक सुरक्षा पर अधिक खर्च करता है।‘
राष्ट्रपति छेरिंग ने कहा, ‘हम मजबूत हैं, हम लोकतंत्र, शांति और मानवाधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।‘उन्होंने आशा व्यक्त की कि जापानी लोग अपने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. आबे की विरासत को जारी रखेंगेऔर दुनिया में सुमति और शांति बनी रहेगी।
जापानी राजनीतिक जगत सुनता है
इसके बाद तिब्बती राष्ट्रपति ने संगोष्ठी में उपस्थित जापान के तिब्बत समर्थक राजनीतिक जगत के सदस्यों को धन्यवाद दिया। उदाहरण के लिएहकुबुन शिमोमुरा, जापान में प्रतिनिधि सभा के सदस्य हैं और तिब्बत के प्रबल समर्थक हैं।
संगोष्ठी में जापान-उग्यूर पार्लियामेंटेरियन लीग (निहोन-उइघुर कोक्कई जिन रेनमेई) के सदस्यसांसद हिरोमी मित्सुबिशी और तिब्बत के लिए ऑल पार्टी जापानी पार्लियामेंटरी सपोर्ट ग्रुप (निहोन-तिब्बत कोक्कई जिन रेनमेई) के सदस्य अकिमासा इशिकावा भी उपस्थित थे।
डायट के पूर्व सदस्य और सेव तिब्बत नेटवर्क के अध्यक्ष माकिनो सेशु भी संगोष्ठी में उपस्थित थे। राष्ट्रपति छेरिंग ने उन्हें तिब्बत का ‘पुराना मित्र’ कहा।
संगोष्ठी में आगत श्रोताओं के सम्मुख अपनी संक्षिप्त टिप्पणी मेंमाकिनो ने कहा कि राजनेताओं के लिए पूरे कार्यक्रम तक रुकना दुर्लभ होता है, लेकिन यह कि राजनीतिक नेता राष्ट्रपति छेरिंग को सुनने के लिए इकट्ठे हुए और अन्य वक्ताओं में ‘तिब्बत के लिए हार्दिक प्रेम’ था।
उन्होंने जोर देकर कहा कि चीन के लोग भी कम्युनिज्म की तुलना में स्वतंत्रता और लोकतंत्र के प्रति बहुत अधिक सम्मान रखते हैं, इस प्रकार वे उन सर्वमान्य प्रतिज्ञाओं पर जोर देते हैं जो राष्ट्रीयताओं से उुपर उठकर मानवाधिकारों की खोज में लोगों को एकजुट करते हैं।
सीधे ऐतिहासिक रिकॉर्ड स्थापित करना
संगोष्ठी में एक श्रोता ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान-तिब्बत संबंधों को लेकर प्रश्न पूछा। डॉ. आर्य ने स्पष्ट किया किजब जापानी इंपीरियल आर्मी ने बर्मा (अब म्यांमार) में एक रणनीतिक पुल को नष्ट कर दिया, जिसका उपयोग मित्र देशों की सेनाओं द्वारा चीन को सैन्य गोला-बारूद पहुंचाने के लिए किया जाता था, तो अमेरिका और ब्रिटेन की सरकारों ने तिब्बत से अनुरोध किया कि वह हथियारों को तिब्बत से चीन तक जाने की अनुमति दे।
हालांकि, तिब्बती सरकार ने युद्ध को लेकर अपने तटस्थ रुख पर जोर दिया और बताया कि तिब्बतएक शांतिपूर्ण बौद्ध राष्ट्र होने के नातेअपनी भूमि पर हिंसा की सामग्री की अनुमति नहीं दे सकता।
यह घटना दो महत्वपूर्ण बिंदुओं को दर्शाती है।
सबसे पहलेयह साबित करता है कि उस समय तिब्बत एक स्वतंत्र राष्ट्र था। अन्यथा, मित्र राष्ट्रों की सेना और चीन को तिब्बती क्षेत्र को पार करने के लिए तिब्बती सरकार से अनुमति का अनुरोध करने की कोई आवश्यकता नहीं होती।
दूसरा, जब दुनिया लड़ने में व्यस्त थीतब तिब्बत ने युद्ध में भाग लेने से परहेज किया और शांति और सुलह की वकालत की। अगर दुनिया ने तिब्बती संदेश का पालन किया होता तो आज हम एक बेहतर दुनिया बना सकते थे। दुर्भाग्य सेदुनिया ने कम्युनिस्टों के साथ साठ-गांठ की और शांति और अहिंसा का उपदेश देने वाले देश को ही नष्ट हो जाने दिया।
डॉ. आर्य ने कहा कि जापान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस ऐतिहासिक घटना पर विचार करने और तिब्बत में स्वतंत्रता और न्याय बहाल करने के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है।