जिनेवा। चीन द्वारा तिब्बती सांस्कृतिक पहचान का लगातार हो रहे दमन और व्यवस्थित नियंत्रण के आलोक में संयुक्त राष्ट्र के चार मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक समूह ने चीन के कब्जे वाले तिब्बत क्षेत्र में ‘तिब्बती संस्कृति पर कब्जे और आत्मसात करने’ की नीति को लेकर ‘गंभीर चिंता’ व्यक्त की है।
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने चीन को संयुक्त रूप से भेजे एक संदेश में ‘तिब्बती लोगों के अल्पसंख्यक अधिकार देने के विपरीत तिब्बती शैक्षिक, धार्मिक और भाषाई संस्थानों के खिलाफ दमनकारी कार्रवाइयों की शृंखला, शिक्षा के अधिकार, सांस्कृतिक अधिकार,धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के हनन’ का मुद्दा उठाया है।विशेषज्ञों ने तिब्बत में आवासीय विद्यालय तंत्र को विशेष रूप से ‘तिब्बती संस्कृति को बहुसंख्यक हान संस्कृति में आत्मसात करने के लिए बड़े पैमाने पर चलाए जा रहे अभियान’ के रूप में रेखांकित किया है। यह पूरा अभियान चीन के दावों के विपरीत है। मूल रूप से ११ नवंबर २०२२ को भेजे गए संदेश को हाल ही में स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार सार्वजनिक किया गया था।
शिक्षा के माध्यम के तौर पर तिब्बती भाषा को हटाने के साथ ही तिब्बती संस्कृति, पहचान और भाषा के व्यवस्थित उन्मूलन, स्थानीय तिब्बती स्कूलों को जबरन बंद करने, तिब्बती भाषा और संस्कृति को पढ़ाने वाले हर निजी और स्वैच्छिक संस्थाओं को बंद करने को लेकर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन और तिब्बती अधिकार समूहों द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं को संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने अपने संदेश में उठाया है और इन मुद्दों पर चीन से उसकी नीतियों और कार्यों को लेकर स्पष्टीकरण मांगा है। इसके साथ-साथ चीन से तिब्बती भाषा में शिक्षा देनेवाले निजी, अर्ध-निजी और राज्य वित्त पोषित स्कूलों और इनमें पिछले १० वर्षों में किए गए बदलावों के बारे में जानकारी देने के लिए कहा गया है।
१७पृष्ठों के संदेशके साथ एक अनुलग्नक संलग्न किया गया है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का विस्तार से वर्णन किया गया है।इसमें अंतरराष्ट्रीय कानूनों में उल्लिखित अधिकारों और चिंताओं/सिफारिशों के प्रति चीन के दायित्वों को याद दिलाया गया है। ये कानून पूर्व में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संधि निकायों और विशेष प्रक्रियाओं द्वारा जारी किए गए थे। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने विशेष रूप से चीन को तिब्बत पर १९५९, १९६१और १९६५में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पारित तीन प्रस्तावों-(ए/आरईएस/१३५३ (XIV), ए/आरईएस/१७२३ (XVI) और (ए/आरईएस/२०७९ (XX)) के बारे में याद दिलाया है, जिन्हें चीन द्वारा भी अपनाया गया है।
जिनेवा स्थित तिब्बत ब्यूरो के प्रतिनिधि थिनले चुक्की ने इस महत्वपूर्ण मामले पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के हस्तक्षेप का स्वागत किया है और कहा है कि ‘चीनी सरकार को संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों की मांगों को मानना चाहिए और तिब्बतियों को हान संस्कृति को अपनाने और उसे आत्मसात करने को लेकर विशेष रूप से आवासीय विद्यालयों के माध्यम से लागू की जा रही नीतियों से संबंधित विवरण प्रस्तुत करना चाहिए। ‘संदेश भेजने वाले चार संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों में अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत, सांस्कृतिक अधिकारों के क्षेत्र में काम करनेवाले विशेष दूत, शिक्षा के अधिकार पर विशेष दूत और धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता का काम देखनेवाले विशेष दूत शामिल हैं।