प्रस्तावना
साल 1979 से ही परम पावन दलाई लामा ने यह मध्यम मार्ग नीति अपनाई हुई है कि तिब्बत अलग न हो बल्कि वह चीन जनवादी गणराज्य (पआरसी) का हिस्सा बना रहे। परम पावन दलाई लगातार यह अनुरोध करते रहे हैं कि समूचे तिब्बती राष्ट्रीयता में राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्वायत्ता के प्रावधान लागू किए जाएं ताकि तिब्बत की सांस्कृति एवं आध्यात्मिक विरासत एवं पहचान की रक्षा हो सके।
साल 1951 से ही 17 बिंदुओं के समझौते के लिए हुई वार्ताओं के दौरान तिब्बती पक्ष ने समूची तिब्बती राष्ट्रीयता के लिए एक स्वायत्त प्रशासन की मांग की है।
साल 2002 में धर्मशाला और चीन में सीधा संपर्क बहाल होने के बाद परम पावन दलाई लामा के दूतों और चीन के संबंधित अधिकारियों के बीच
औपचारिक वार्ताओं के अठ दौर और एक अनौगचारिक पराम का दौर चला। इस प्रक्रिया में हमने फिर यह स्पष्ट किया कि किस प्रकार संविधान के प्रावधानों और कानूनी दायरे के तहत ही समूची तिब्बती राष्ट्रीयता को एक स्वायत्त प्रशासन के भीतर लाया जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से चीन के अधिकारियों ने हमारी मांग को तोड़मरोड़ कर पेश किया और कहा कि परम पावन दलाई लामा वृहत्तर तिब्बत की मांग कर रहे हैं। यद्यपि हमने कभी भी वृहत्तर तिब्बत शब्द का उपयोग नहीं किया, लेकिन इस दुष्प्रचार से उन लोगों में भ्रम की स्थिति बन सकती है जो तिब्बत मसले को अभी पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं। मैं तिब्बत स्टडी ग्रुप की इस बात के लिए सराहना करता हूं कि उन्होंने इस विषय पर एक गोलमेज चर्चा आयोजित की और मुझे वास्तविकता को विस्तार से बताने का अवसर दिया।
1. वृहत्तर तिब्बत की परिभाषा और उपयोग
वृहत्तर तिब्बत शब्द का उपयोग प्राचीन भारतीय विद्वान तिब्बत के कुछ हिस्सों को भारत से भौगोलिक तौर पर दूरी को दर्शाने के लिए करते थे। जो क्षेत्र भारतीय सीमा से सटे हुए थे या उसके नजदीक थे उसे तिब्बत (भोता) कहा जाता था और जो क्षेत्र शारत से काफी दूर थे उसे वृहत्तर तिब्बत (महाभोता) कहा जाता था। संस्कृत के मुहावरों में भौगोलिक दूरी को दर्शाने के लिए आमतौर पर वृहत्तर शब्द का इस्तेमल किया जाता है। उदाहरण के लिए किसी कस्बे के नजदीक के जंगल को जंगल (अरण्य) कहा जाता है और कस्बे से काफी दूर वाले जंगल को वृहत्तर जंगल (महाअरण्य) कहा जाता है। वास्तव में यह शब्द आकार या गुणवत्ता नहीं बल्कि दूरी को व्यक्त करता है।
प्राचीन काल में चीनी और तिब्बती नागरिक अक्सर एक दूसरे को सम्मानजनक रूप में पेश करने के लिए वृहत चीन या वृहत तिब्बत शब्द का उपयोग करते थे। लेकिन इन शब्दों का इस्तेमाल रिर्फ समूचे चीन या समूचे तिब्बत को दर्शाने के लिए ही होता था। साल 821-822 के चीन-तिब्बत समझौते में भी वृहत तिब्बत और वृहत चीन शब्द की जगह उच्च तिब्बत का इस्तेमाल करना शुरू किया, जिससे तिब्बत की महानता नहीं बल्कि इसके ऊंचे पठार पर होने का ही संकेत मिलता था। मिंग और मांचू काल में चीनियों ने तिब्बत के विभिन्न हिस्सों को दर्शने के लिए विभिन्न तरह के शब्दों का इस्तेमाल शुरू किया। जैसे चीनी सीमा से सटे और सीमा से दूर स्थित तिब्बती क्षेत्रों में भेद दर्शाने के लिए परिचित तिब्बत और अपरिचित तिब्बत का इस्तेमाल किया जाता था।
लेकिन तिब्बतियों ने खुद कभी भी तिब्बत के किसी हिस्से को वर्गीकृत करने के लिए वृहद तिब्बत शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों को दर्शाने के लिए कई परंपरागत तरीकों का इस्तेमाल किया जाता था जैसे ऊपरी, मध्य या निचला तिब्बत या उ-त्सांग, खम या आमदो या तीन चोल्का आदि।
चीन जनवादी गणतंत्र ने भी 1949 से पहले आधिकारिक रूप से तिब्बत के विभिन्न हिस्सों को आंतरिक तिब्बत और बाह्य तिब्बत के रूप में ही दर्शया जैसे कि मंगोलिया को भी आंतरिक और बाह्य मंगोलिया के रूप में दर्शाया जाता था। आंतरिक तिब्बत के तहत उह क्षेत्रों को माना जाता था जो उस समय चीन के अधीन हो गए थे और बाह्य तिब्बत उन इलाकों को माना जाता था जो आज़ाद या स्वायत्त तिब्बत के तहत आते थे। ती पक्षों में हुए शिमला समझौते (1913-1914) के दस्तावेज में भी इन पदों का ही इस्तेमाल हुआ है।
2. वृहद तिब्ब के बारे में दुष्प्रचार
साल 1979 के बाद चीन जनवादी गणतंत्र के अथॉरिटीज ने उस क्षेत्र को वृहद तिब्बत के नए पद में दर्शाना शुरू किया जहां तिब्बती राष्ट्रीयता के लोग रहते हैं। जिस क्षेत्र को अब तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र और अन्य तिब्बती स्वायत्तशासी प्रशासनिक इकाइयों एवं काउंटी में बांटा गया है।
सच तो यह कि तिब्बत बस तिब्बत है। कोई वृहद या छोटा तिब्बत नहीं है। सभी तिब्बती चीन जनवादी गणराज्य में शामिल 55 अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं में से एक अल्पसंख्यक राष्ट्रीयता से जुड़े हैं। बीजिंग ने यह कहकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने का प्रयास किया है कि दलाई लामा ऐसे वृहद तिब्बत की मांग कर रहे हैं जो पूरे चीन के भौगोलिक क्षेत्र का एक चौथाई हिस्सा होता है। यह दुष्प्रचार इसलिए किया जा रहा है ताकि लोग यह मान लें कि परम पावन दलाई लामा की अभिलाशा अतार्किक है और वह पूरे चीन का एक-चौथाई टुकड़ा मांग रहे हैं या परमा पावन उन क्षेत्रों को भी स्वायत्तशासी क्षेत्र के तहत लाने की मांग कर रहे हैं जिसे तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र के तहत न रखने की बात घोषित की जा चुकी है।
वास्तविकता तो यह है कि परम पावन कभी भी, किसी भी समय लिखित या मौखिक रूप से वृहद तिब्बत शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है। यदि कोई 1979 से ही तिब्बतियों के समूचे पत्र व्यवहार, बयानों, दस्तावेजों या किसी भी अन्य डॉजियर का सर्वे करे तो उसे वृहद तिब्बत के इस्तेमाल का एक उदाहरण भी नहीं मिलेगा। यह चीन जनवादी गणतंत्र का शब्द है और वे इसे इस तरह से प्रायोजित करने का प्रयास कर रहे हैं कि परम पावन दलाई लामा की यही मांग है।
3. परम पावन दलाई लामा आखिर क्या मांग रहे हैं।
चीन जनवादी गणतंत्र की केंद्र सरकार से परम पावन जो मांग कर रहे हैं वह इस प्रकार हैं
– समूचे तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र के लिए एक स्वायत्त प्रशासन हो
-राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्वायत्तता के संबैधानिक प्रावधानों को सही तरीके से लागू किया जाए
परम पावन दलाई लामा की ये मांगे चीन के संविधान और उसकी स्वायत्तता कानून की भावना के अनुरूप ही हैं।
के) चीन के संविधान की धारा 4 कहती हैः
चीन जनवादी गणतंत्र के तहत रहने वाले सभी राष्ट्रीयताओं के लोग समान हैं।
सरकार अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं के कानून सम्मत अधिकारों और हितों की रक्षा करेगी और सभी राष्ट्रीयताओं के बीच समानता, एकता और परस्पर सहयोग के संबंध को आगे बढ़ाने एवं उसके विकास के लिए काम करेगी। किसी भी राष्ट्रीयता के साथ भेदभाव या उसका दमन प्रतिबंधित है और राष्ट्रीयताओं की एकता कमजोर करने वाले या उनके बीच अलगाव को भड़काने वाले कार्य भी प्रतिबंधित हैं। सरकार अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं वाले क्षेत्र के लोगों को इस बात के लिए सहयोग करेगी कि अपनी अल्पसंख्यक राष्ट्रीयता के लक्षण और जरूरतों के हिसाब से अपने आर्थिक और सांस्कृतिक विकास को आगे बढ़ाएं।
जिन क्षेत्रों में अल्पसंख्यक राष्ट्रीयता के लोग ज्यादा हों वहां क्षेत्रीय स्वायत्तता की व्यवस्था होगी और ऐसे क्षेत्रों में स्वायत्तता के पालन के लिए स्वशासन के विभिन्न निकायों की स्थापना की जाएगी।
सभी राष्ट्रीय स्वायत्तशासी क्षेत्र चीन जनवादी गणतंत्र के लिए अभिन्न हिस्सा होंगे। सभी राष्ट्रीयताओं को अपनी लिखित या बोली जाने वाली भाषा के विकास एवं उपयोग और अपने लोक जीवन पद्धति एवं रिवाजों को बनाए रखने एवं उसमें सुधार कर सकने की आज़ादी होगी।
बी) राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्वायत्ता कानून का प्रस्तावना कहता हैः
राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्वायत्ता का मतलब है कि एकीकृत केंद्रीय नेतृत्व के अंतर्गत अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं को उन क्षेत्रों में क्षेत्रीय स्वायत्ता हासिल होगी जहां वे केंद्रीकृत रूप में रहते हों और उन्हें इस स्वायत्तता की ताकत के उपयोग के लिए स्वशसन के अंगों की स्थापना का भी अधिकार होगा। राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्वायत्तता के तहत केंद्र सरकार अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं के इस अधिकार का पूरा सम्मान करेगी और गारंटी देगी कि वे अपने आंतरिक मामलों का प्रशासन खुद कर सकें और सभी राष्ट्रीयताओं के लिए बराबरी, एकता और साझा समृद्धि के सिद्धांत से जुड़े रह सकें।
सी) स्वायत्तता कानून की धारा 2 कहती हैः
क्षेत्रीय स्वायत्ता उन क्षेत्रों को दी जाएगी जहां अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं के लोग केंद्रीत समुदाय के रूप में रहते हों। राष्ट्रीय स्वायत्त क्षेत्र को स्वायत्तशसी क्षेत्र, स्वायत्तशासी प्रांत और स्वायत्तशासी काउंटी में वर्गीकृत किया जाएगा। सभी राष्ट्रीय स्वायत्तशासी क्षेत्र चीन जनवादी गणराज्य के अभिन्न हिस्सा हैं।
डी) इस प्रकार जैसा कि ऊपर वर्णित है केंद्रित समुदाय के रूप में रहने वाले अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं का बंटवारा पूरी तरह संविधान का उल्लंघन होगा।
यह पहले के साम्राज्यवादी दौर में अपनाई गई बांटा और राज करो की नीति जैसा लगता है। आखिर अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं में आपसी एकता के बगैर समूची राष्ट्रीयताओं को एक बनाए रखने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। वास्तव में पार्टी के एक वरिष्ठ सदस्य फुंत्सोक वांगयाल ने सही कहा था, यह साबित हो चुका है कि तिब्बत में प्रशासन के लिए अपनाई गई नीति जिसे बांटो और राज करो नीति भी कहा जा रहा है, वास्तव में एक गलती है और ऐतिहासिक रूप से यह एक कड़वा सबक साबित हुआ है। यदि बड़े राष्ट्रीयता की प्रधानता की सोच को छोड़ दिया जाए, खासकर राष्ट्रीयताओं की नीति मे पक्षपात को जो बांटो और राज करो पर जोर देता है, तो प्रशासनिक विभाजन नीति में बदलाव या समायोजन में कोई समस्या नहीं होगी।
ई) संविधान की प्रस्तावना में यह विधिवत घोषित किया गया हैः कि चीन जनवादी गणराज्य एक ऐकिक बह-राष्ट्रीय राज्य है जिसका सृजन सभी राष्ट्रीयताओं के लोगों ने संयुक्त रूप से किया है। राष्ट्रीयताओं के बीच समानता, एकता और पारस्परिक सहयोग का समाजवादी संबंध स्थापित किया गया है और इसे मजबूत बनाए रखा जाएगा। राष्ट्रीयताओं की एकता को सुरक्षित रखने के संघर्षा में यह आवशयक है कि बड़े राष्ट्रीय उग्र राष्ट्रीयता, खासकर हान राष्ट्रीयता को खत्म किया जाए और छोटे स्तर के राष्ट्रीय उग्र राष्ट्रीयता से भी निपटा जाए।
राज्य सभी राष्ट्रीयताओं की साझा समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए अपना पूरा जोर लगाएगा। आप लोग स्थिति को साफ तौर से समझ सकें, इसके लिए मैं कुछ नक्शे पेश करना चाहूंगा। विभिन्न स्रोतों से हासिल इन नक्शों में यह दिखाया गया है कि चीन गनवादी गणराज्य में आंतरिक प्रशासनिक विभाजन किस प्रकार किया गया है। इनमें दिखाए गई अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं जरूरी नहीं कि बिल्कुल सही हों और ये सीमाएं इस लेखक के विचार को पेश नहीं करती।
4. चीन जनवादी गणराज्य की आपत्ति और तिब्बत की स्थिति
1) क्षेत्र का आकार
पीआरसी के अथॉरिटीज का कहना है कि तिब्बत स्वायत्तशसी क्षेत्र को अक प्रशासनिक इकाई के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता क्योंकि यह काफी बड़ा है और इसका क्षेत्रफल पूरे चीन के एक-चौथाई के बराबर है।
यह बात सच है कि तिब्बती में पीआरसी का करीब एक-चौथाई क्षेत्र आ जाता है, लेकिन यह हमने नहीं तैयार किया है। वास्तव में तिब्बत का यह क्षेत्र प्राकृतिक प्रक्रिया से बना है और अति प्राचीन काल से है, इसलिए इस समय तो इसे कोई नहीं बदल सकता।
ऐसा तो नहीं है कि तिब्बती लोग इस क्षेत्र में हाल के समय में गए हों। ये लोग तबसे वहां रह रहे हैं, जबसे तिब्बत में मानव सभ्यता की शुरूआत हुई है। इन क्षेत्रों में समूचे इतिहास में तिब्बतियों को देशज रूप से निवास रहा है।
2) आकार कोई मसला नहीं
तिब्बत का क्षेत्रफल थोड़ा ज्यादा दिख रहा है, लेकिन हम अलगाव नहीं चाहते हैं और चीन का एक स्वायत्तशासी क्षेत्र बने रहना चाहते हैं। बड़ा हो या छोटा, तिब्बत चीन के राज्यक्षेत्र के अंतर्गत बना रहेगा। चीन में कई और विशाल स्वायत्तशासी क्षेत्र हैं जैसे झिनजियांग उग्यूर स्वायत्तशासी क्षेत्र और इनर मंगोलिया स्वायत्तशासी क्षेत्र । झिनजियांग उग्यूर स्वायत्तशासी क्षेत्र समूचे चीन का छठां हिस्सा है और इनर मंगोलिया स्वायत्तशासी क्षेत्र समूदे देश का आठवां हिस्सा। इसलिए किसी राज्यक्षेत्र का आकार उसमें रहने वाले एक राष्ट्रीयता के लोगों के लिए स्वायत्तशासी प्रशासन देने के रास्ते में कोई अड़चह नहीं होना चाहिए।
वास्तव में चीन के कुल राज्यक्षेत्र का 64.3 फीसदी हिस्सा 155 स्वायत्तशासी क्षेत्रों से मिलकर बना है जिसमें 55 राष्ट्रीयताओं के लोग रहते हैं। यह इस तथ्य के बावजूद है कि देश की कुल जनसंख्या में इन अल्पसंख्यक ऱाष्ट्रीयताओं का हिस्सा सिर्फ 8.46 फीसदी है।
चीन ने अपने कुल ऱाज्यक्षेत्र के 64.3 फीसदी हिस्से को स्वायत्तशासी क्षेत्र बनाने में कोई हिचक नहीं दिखाई क्योंकि ये क्षेत्र चीन के राज्यक्षेत्र का हिस्सा बने रहे। संविधान की धारा 4 में कहा गया है, “सभी राष्ट्रीय स्वायत्तशासी क्षेत्र चीन जनवादी गणराज्य के अभिन्न हिस्सा हैं।”
यहां महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र एक प्रशासन के अंतर्गत रहे या कई प्रशासन के, इससे इस स्वायत्तशासी क्षेत्र का आकार या चीन के स्वायत्तशासी क्षेत्रों का आकार नहीं बदलने वाला है।
न ही समूचे तिब्बती स्वायत्तशासी क्षेत्र को एक प्रशासन के तहत रख देने से तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र का आकार बदल जाएगा।
किसी भी तरह से तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र चीन के कुल राज्य क्षेत्र का एक-चौथाई हिस्सा बना रहेगा।
3) इतिहास नहीं राष्ट्रीयता
चीन जनवादी गणराज्य के अथॉरिटीज का कहना है कि तिब्बती लोग इतिहास में कभी भी एक प्रशासन के तहत नहीं रहे हैं। यह बात बिल्कुल गलत है।
ए) नौवीं शताब्दी के मध्य तक तिब्बती लोग एक प्रशासन के तहत रहते थे। इसके बाद तिब्बतियों ने 1260 में फिर से द्रोगोन छोग्याल फाकपा के नेतृत्व में अपने को एक प्रशासन के तहत पुनर्गठित किया। उन्हें इसकी पेशकश शासक कुबलाई खान ने की थी और इसके तहत तीन चोल्काज का गठन किया गया जिसकी सीमाएं स्पष्ट थीं। इस प्रकार का एकीकृत प्रशासन 1730 तक बना रहा। लेकिन जब यू और त्सांग के बीच तिब्बत में गृहयुद्ध शुरू हुआ तो वहां मांचू शासक का प्रभाव बढ़ गया। इसके बाद योंगछेंग के शासन काल में तिब्बत क्षेत्र के कुछ हिस्सों को सिचुआन, गांसू और यून्नान में मिला दिया गया।
बी) इसके अलावा बात यह भी है कि हम इतिहास के आधार पर कोई मांग नहीं कर रहे हैं क्योंकि हम जानते हैं कि इतिहास कभी भी स्थिर नहीं रहा है। समूचे इतिहास को देखें तो चीन सहित दुनिया का हर देश कभी भी वास्तव में ऐसा नहीं रहा है जैसा स्वरूप अब दिखता है। उदाहरण के लिए 1949 से पहले चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के शासन का कोई इतिहास नहीं मिलता, लेकिन इसके बावजूद पिछले 60 साल से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी देश पर शासन कर रही है।
इसलिए तिब्बतियों के लिए प्रशासन या कई प्रशासन के काम करने में आकार कोई मायने नहीं रखता।
हमारे मांग का आधार मार्क्स, लेकिन और माओ द्वारा प्रस्तुत और चीन के संविधान में प्रदत्त अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं के लिए राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्वायत्तता की अवधारणा भी कोई इतिहास पर आधारित नहीं है, लेकिन यह अवधारणा क्रांतिकारी सिद्धांतों से तैयार हुई है।
4) सीमा के पुनर्समायोजन में कोई अड़चन नहीं है
पीआरसी के अथॉरिटीज का तर्क है कि चीन के भीतर सीमा का नए सिरे से निर्धारण संभव नहीं हैं।
ए) लेकिन हमें लगता है कि यह संभव है क्योंकि राष्ट्रीय क्षेत्रीय स्वायत्तता कानून में इसके लिए एक प्रावधान है।
स्वायत्तता कानून की धारा 14 कहती हैः
किसी राष्ट्रीय स्वायत्त क्षेत्र की स्थापना, उसकी सीमाओं का निर्धारण और उसके नाम के घटकों का प्रस्ताव इससे ऊंचे स्तर के राज्य सत्ता द्वारा प्रासंगिक क्षेत्र की राज्य सत्ता के साथ संयुक्त रूप से किया जाएगा और इसे मंजूरी के लिए भेजे जाने से पूर्व प्रासंगिक राष्ट्रीयताओं के प्रतिनिधियों के साथ पूर्ण विचार-विमर्श के साथ किया जाएगा।
एक बार परिभाशित हो जाने के बाद राष्ट्रीय स्वायत्तशासी क्षेत्र की सीमाओं को बिना प्राधिकरण के मंजूरी के बदला नहीं जा सकता। जब सीमाओं में बदलाव करना जरूरी समझा जाएगा तो इसका प्रस्ताव राज्य के संबंधित विभाग द्वारा अपने से ऊंचे विभाग को भेजा जाएगा और राज्य कौंसिल के पास इसे मंजूरी के लिए भेजने से पहले राष्ट्रीय स्वायत्तशासी क्षेत्र के स्वशासी सरकार से पूर्ण विचार-विमर्श किया जाएगा।
बी) इसके अलावा हम यह मांग तो नहीं कर रहे हैं कि तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र में कुछ अतिरिक्त क्षेत्रों को जोड़ा जाए। हम तो केवल प्रशासन में बदलाव की मांग कर रहे हैं। कई स्वायत्तशासी प्रशासन की जगह एक स्वायत्तशासी प्रशासन होना चाहिए। इससे न तो चीन की दूसरे देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर कोई प्रभाव पड़ेगा और न ही इसकी घरेलू सीमा पर। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन की क्षेत्रीया एकता पर भी कोई असर नहीं पडेगा। साथ ही, तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र और अन्य प्रांतों या स्वायत्तशासी क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा के पुनर्निधारण की भी कोई जरूरत नहीं होगी।
सी) चीन में सीमा के पुनर्समायोजन के दृष्टांत
चीन में इसके पहले भी स्वायत्तशासी क्षेत्रों और प्रांतों की सीमाओं के पुनर्समायोजन के दृष्टांत देखे गए हैं। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं
1) इनर मंगोलिया स्वायत्तशासी क्षेत्र
चीनी कुम्युनिस्ट पार्टी की सोवियत राष्ट्रीयता नीति के आधार पर इनर मंगोलिया स्वायत्तशासी क्षेत्र की स्थापना 1947 में की गई थी। शुरूआत में इसमें सिर्फ हुलुनबुइर क्षेत्र को शामिल किया गया था। इसके अगले दशक में जब पीआरसी की स्थापना हुई तो इनर मंगोलिया का पशिचम की ओर विस्तार करते हुए इसमें छह मूल लीग में से पांच को शामिल कर लिया गया। अंत में भारी मंगोल जनसंख्या वाले सभी क्षेत्रों को इस क्षेत्र में शामिल कर लिया गया और आज के इनस मंगोलिया की तस्वीर सामने आई।
इसके बाद सांस्कृतिक क्रांति के दौरान 1969 में इनर मंगोलिया के अधिकांश क्षेत्रों को आसपास के प्रांतों में मिला दिया गया। लेकिन फिर 1979 में इनर मंगोलिया स्वायत्तशासी क्षेत्र को फिस से संगठित किया गया।
2) गुआंगसी झुआंग स्वायत्तशासी क्षेत्र
गुआंगसी प्रांत को एक स्वायत्तशासी क्षेत्र में बदलकर 1958 में झुआंग राष्ट्रीयता के लिए गुआंगसी झुआंग स्वायत्तशासी क्षेत्र की स्थापना की गई। लेकिन गुआंगसी की जनसंख्या में झुआंग राष्ट्रीयता के लोग अल्पसंख्यक ही थे। आज भी देखें तो साल 2000 की जनगणना के अनुसार गुआंगसी झुआंग स्वायत्तशासी क्षेत्र के कुल जनसंख्या में झुआंग राष्ट्रीयता के लोगों की आबादी सिर्फ 32 फीसदी है।
साल 1952 में गुआंगडोंग तटीय किनोर का एक छोटा हिस्सा भी गुआंगसी को दे दिया गया ताकि इसकी समुद्र तक पहुंच हो सके। इसे फिर 1955 में वापस ले लिया गया और साल 1965 में फिर दे दिया गया।
3) हेनान प्रांत
साल 1988 में हेनान द्वीप को गुआंगडोंग से अलग कर एक नया प्रांत बना दिया गया
डी) नई नहीं बल्कि काफी समय से लंबित मांग
साल 1977 में चोंगक्विंग को सिचुआन प्रांत से अलग कर एक सीधे प्रशासित एक म्युनिसिपलिटी में बदल दिया गया।
5. नई नहीं बल्कि काफी समय से लंबित मांग
समूचे तिब्बत को एक स्वायत्तशासी प्रशासन के तहत लाने की मांग न तो बाद में आई है और न कोई नई मांग है।
ए) यह मसला सबसे पहले 1951 में ही 17 बिंदुओं वाले समझौते पर बातचीत के दौरान उठाया गया था। तिब्बती प्रतिनिधिमंडल ने इस बारे में एक याचिका दाखिल की थी जिस पर तिब्बती प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख नागपो गवांग जिग्मे का हस्ताक्षर भी था। तब प्रधानमंत्री चाउ एनलाई ने मौखिक रूप से इस पर सहमति देते हुए कहा था कि तिब्बती राष्ट्रीयता के लोगों को एक इकाई के तहत लाने का विचार उपयुक्त है लेकिन अभी इस पर अमल का समय नहीं आया है।
बी) 29 सितंबर 1951 को तिब्बत के मंत्रिमंडल कशग ने तिब्बत में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि झांग जिंगवू को तीन बिंदुओं वाला एक सुझाव भेजा। इसमें पहला बिंदु यही था कि सभी तिब्बतियों के लिए एक प्रशासनिक इकाई स्थापित की जाए।
सी) साल 1953 में चामदो पीपुल्स लिबरेशन कमिटी के उपाध्यक्ष डेगे केलासांग वागंड्यू और कई अन्य लोगों ने यह मांग की कि समूची तिब्बती राष्ट्रीयता को एक प्रशासनिक इकाई के तहत लाया जाए।
डी) साल 1956 में तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र की तैयारी समिति के गठन के दौरान ल्हासा में एक बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में उप प्रधानमंत्री चेन यी और चीन सरकार के अन्य प्रतिनिधियों ने कहा कि यदि ल्हासा को केंद्र बनाकर एक एकीकृत तिब्बती स्वायत्तशासी क्षेत्र की स्थापना की जाए तो यह तिब्बती क्षेत्र के विकास, देश की एकता एवं स्थिरता और तिब्बती एवं चीनी लोगों के बीच सौहार्द के लिहाज से काफी फायदेमंद होगा। उन्होंने कहा कि यह स्वायत्तशासी क्षेत्र क्विंघाई, गांसू, सिचुआन और यून्नान जैसे पूर्वी प्रांतो के तिब्बती क्षेत्रों को केंद्रीय तिब्बत में मिलाकर बनाया जाना चाहिए।
इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व ने कम्युनिस्ट पार्टी के एक वरिष्ठ नेता सांगयी येशी को भेजा और एक विशेष समिति भी बना दी ताकि पांचों प्रांतों के क्षेत्रों के एकीकरण के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की जा सके। लेकिन तिब्बत में मौजूद अतिवादी वामपंथियों की वजह से इस पर कोई प्रगति नहीं हो पाई।
ई) इसी प्रकार 1980 में कानल्हो तिब्बत स्वायत्तशासी प्रांत के कई तिब्बती कर्मचारियों ने चीन की केंद्रीय सरकार को अपने हस्ताक्षर वाले याचिका भेजकर यह मांग की कि समूचे तिब्बती क्षेत्र को एक प्रशासनिक इकाई के तहत लाया जाए।
एफ) दसवें पंचेन लामा और नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष ने तिब्बत विकास परियोजना के उद्घाटन के समय कहा था, एकीकृत तिब्बती राष्ट्रीयता के लिए एक स्वायत्तशासी क्षेत्र की स्थापना की इच्छा वाजिब है और यह कानूनी प्रावधानों के अनुकूल ही है। यह समूचे तिब्बती जनसंख्या के विचारों के अनुकूल भी है और यह कोई लटकाने का या प्रतिक्रियावादी मसला नहीं है।
जी) पार्टी के वरिष्ठ सदस्य फुंत्सोक वागंयाल ने यह बात स्वीकार की थी कि केंद्रीय नेतृत्व ने सैद्धांतिक रूप से तिब्बती क्षेत्रों के एकीकरण की हामी भर दी है। उन्होंने कहा था तिब्बत के लिए एकीकृत स्वायत्तशासी क्षेत्र की मांग को चीन सराकार और उसके नेता 1950 के दशक में सैद्धांति रूप से स्वीकार कर चुके थे।
6. समूचे तिब्बती राष्ट्रीयता के लिए एक प्रशासन होने के फायदे
केंद्र सरकार के लिएद फायदाः
-इससे सभी राष्ट्रीयताओं के बीच समानता और एकता स्थापित करने के संवैधानिक लक्ष्यों को साकार करने में मदद मिलेगी।
-आमतौर पर अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं और खास तौर से तिब्बतियों में केंद्र सरकार के प्रति भरोसा और सदभाव बढ़ेगा।
-स्थानीय राष्ट्रवाद पर अंकुश रखने में मदद मिलेगी
-चीन जनवादी गणराज्य की एकता और अखंडता सुनिशचित होगी
-तिब्बतियों औऱ अन्य राष्ट्रीयताओं के बीच शांतिपूर्ण सह अस्तित्व और सामंजस्य सुनिशिचत हो सकेगा
-सौहार्दपूर्ण समाज बनाने और चीन के शांतिमय तरीके से प्रगति में मदद मिलेगी
तिब्बती जनता के लिए फायदाः
-तिब्बत की ऐसी विशिष्ट संस्कृति और पहचान को बचाए रखने और उसके संरक्षण में मदद मिलेगी जिसमें समूचे मानवता की मूल्यवान सेवा करने की क्षमता है
-तिब्बती राष्ट्रीयता के विलुप्त हो जाने या उसकी अलग पहचान खत्म होने से बचाने में मद्द मिलेगी
-तिब्बत के ऐसे नाजुक पर्यावरण को बचाने में मद्द मिलेगी जो कि काफी हद तक समूचे एशिया महाद्वीप के पर्यावरण को निर्धारित करता है
-सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी स्वायत्तशासी सरकार के लिए फायदा
-प्रशासन चलाने में आसानी होगी
-प्रशासनिक खर्चों में कमी आएगी
-समूचे समुदाय के लिए एकीकृत विकास योजनाएं बनाने और प्राकृतिक संसाधन के उपयोग में मदद मिलेगी
-शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक रिवाजों के बारे में एकसमान नीति बनाने में मदद मिलेगी
-केंद्र सरकार, प्रांतों और अन्य स्वायत्तशासी क्षेत्रों के साथ सौहार्दपूर्ण रिशतों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी
-सभी तिब्बती लोगों के लिए केंद्र सरकार की नीतियों और निर्देशों को प्रभावी तरीके से लागू करने में मदद मिलेगी।
7. निष्कर्षः
आज के चीन जनवादी गणतंत्र में रहने वाले सभी तिब्बती लोगों की मूल आकांक्षा यही है कि उनके लिए एक समान नीति हो जिससे वे अपनी विशिष्ट पहचान का संरक्षण करने एवं उसे बढ़ावा देने में सक्षम हो सकें। जिस बात का अधिकार उन्हें चीन के संविधान और अन्य प्रासंगिक अधिनियमों में दिया गया है। उपरोक्त उल्लेखित तथ्यों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सभी तिब्बती स्वायत्तशासी क्षेत्रों को एक स्वायत्तशासी प्रशासन के तहत लाना उपयुक्त रूप से वाछनीय है और इसे आसानी से किया जा सकता है। इसके लिए न तो संविधान में किसी संशोधन की और न ही नीति या राजव्यवस्था की किसी वदलाव की जरूरत है। इसके लिए जरूरत है सिर्फ नेतृत्व में राजनीतिक इच्छाशक्ति की।