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१६ सितंबर, २०२१
ब्रसेल्स। यूरोपीय संसद ने आज १६ सितंबर को नई यूरोपीय संघ-चीन रणनीति पर एक रिपोर्ट को स्वीकार किया जिसमें तिब्बत में जबरन श्रम कार्यक्रमों के बारे में चिंता व्यक्त की गई है। इस रिपोर्ट में राजनयिकों और पत्रकारों के लिए तिब्बती क्षेत्रों में स्वतंत्र आवागमन की अनुमति दिए जाने का आह्वान किया गया है और तिब्बती समुदाय में धार्मिक नेताओं के चयन पर चीन द्वारा सुनियोजित किए जा रहे नियंत्रण की आलोचना की गई है।
यूरोपीय संसद के सदस्य हिल्डे वॉटमैन (बेल्जियम, रिन्यू यूरोप ग्रुप) द्वारा प्रस्तुत इस रिपोर्ट में छह स्तंभों पर आधारित एक रणनीति का प्रस्ताव किया गया है, जिनमें से दूसरा ‘सार्वभौमिक मूल्यों, अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और मानवाधिकारों पर बेहतर जुड़ाव’ पर केंद्रित है।
यूरोपीय संसद के सदस्यों का कहना है कि रिपोर्ट के इस भाग में ‘तिब्बत में बलपूर्वक श्रम कार्यक्रमों की रिपोर्ट’ से बेहद चिंतित हैं और चीन से झिंझियांग, तिब्बत और आंतरिक मंगोलिया में नस्लीय समूहों के अधिकारों सहित मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने दायित्वों का पालन करने का आह्वान करते हैं।
रिपोर्ट की सबसे अहम बात यह है कि इसमें यूरोपीय आयोग से चीनी अधिकारियों को ‘एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ रिलिजियस क्लेर्जी (ऑर्डर नं. १५)’ के लिए चीन के उपायों पर उसकी चिंताओं से अवगत कराने का आह्वान किया गया है, जो धार्मिक गुरुओं के चयन में चीन सरकार के नियंत्रण को और बढ़ाता है।
हाल के वर्षों में, चीनी सरकार बौद्ध धार्मिक परंपरा में हस्तक्षेप करते हुए और तिब्बती बौद्ध समुदाय के बिना किसी सरकारी दखलंदाजी के अपनी आध्यात्मिक प्रक्रिया का पालन करने के मौलिक अधिकार को दरकिनार करते हुए अगले दलाई लामा के चयन में अपने अधिकार के दावे को अधिक से अधिक वैध बनाने के लिए ऐसे कानूनों और नियमों का उपयोग कर रही है।
इंटरनेशनल कंपेन फॉर तिब्बत (आईसीटी) के यूरोपीय संघ के नीति निदेशक विंसेंट मेटेन ने कहा, ‘आईसीटी इस व्यापक रिपोर्ट का स्वागत करता है, जो व्यापक परिप्रेक्ष्य में यूरोपीय संघ-चीन संबंधों के बारे में विमर्श करता है। हम इस रिपोर्ट में विशेष रूप से मानवाधिकारों पर यूरोपीय संसद के सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई गंभीर चिंताओं और विशेष कर तिब्बतियों पर लगाए गए जबरन श्रम कार्यक्रमों के बारे में रिपोर्टों के साथ-साथ धार्मिक नेताओं के चयन में चीन के जनवादी गणराज्य के हस्तक्षेप पर भी इसमें व्यक्त की गई गंभीर चिंताओं का स्वागत करते हैं। यह चीन के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है जो दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन में हस्तक्षेप करने की योजना बना रहा है।
प्रतिबंध और संवाद
यूरोपीय संसद के सदस्यगण यह भी रेखांकित करते हैं कि यूरोपीय संघ-चीन व्यापक निवेश समझौते के लिए विचार और अनुसमर्थन प्रक्रिया तब तक दोबारा शुरू नहीं हो सकती जब तक कि यूरोपीय संसद के सदस्यों और यूरोपीय संघ के संस्थानों (मानव अधिकारों पर उप-समिति और राजनीतिक और सुरक्षा समिति सहित) के खिलाफ चीन अपना प्रतिबंध हटा नहीं लेता है।
चीनी प्रतिबंध को यूरोपीय संसद के सदस्य गैरकानूनी और अवैधानिक मानते हैं। इनका मानना है कि चीन ने ये प्रतिबंध यूरोपीय संघ द्वारा चीन में मानवाधिकारों के हनन के खिलाफ अपने काम और कार्रवाई को जारी रखने से रोकने के प्रयास के तौर पर लगाए हैं। यूरोपीय संघ ने अपनी कार्रवाई के तहत इसी साल मार्च में चार चीनी नागरिकों के खिलाफ अपने ‘नए वैश्विक मानवाधिकार प्रतिबंध कानून’ को लागू किया था। यह कानून उस एक चीनी संस्थान के खिलाफ भी लागू किया गया था जो झिंझियांग- उग्यूर स्वायत्त क्षेत्र में मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार था।
यूरोपीय संघ और चीन के बीच राजनीतिक संबंध तब से खराब चल रहे हैं। इसी का कारण है कि बीजिंग अगले यूरोपीय संघ-चीन शिखर सम्मेलन और वार्षिक यूरोपीय संघ-चीन मानवाधिकार वार्ता के लिए नई तारीखों पर सहमत होने में आनाकानी कर रहा है, जो पिछली बार दो वर्ष पहले अप्रैल २०१९ में ब्रसेल्स में हुआ था।
आईसीटी सहित कई गैर सरकारी संगठन इस वार्ता के बारे में आलोचनात्मक रहे हैं, जो अब तक चीन में मानवाधिकार की स्थिति में सुधार करने में विफल रहा है और वर्षों से चीनी पक्ष द्वारा धीरे-धीरे अप्रासंगिक बना दिया गया है (जिसमें संवाद को साल में दो बार आयोजित करने के बजाय साल में एक बार ही करना और हिरासत की स्थिति, स्वास्थ्य की स्थिति और राजनीतिक बंदियों की स्थिति के बारे में जानकारी देने में चीन की आपत्ति या इनकार में झलकता है)।
आईसीटी और अन्य गैर सरकारी संगठनों ने चीनी डायस्पोरा, स्वतंत्र और निष्पक्ष गैर सरकारी संगठनों, शिक्षाविदों और सांसदों सहित एक पूरक छाया संवाद शुरू करने का आह्वान किया है ताकि चीनी प्रणाली की बेहतर समझ बनाई जा सके और चीन में मानवाधिकारों की प्रगति को प्रभावित करने और यूरोपीय संसद की वर्तमान रणनीति के तह बेहतर रणनीति तैयार की जा सके।
ओलंपिक
अंतिम लेकिन जोरदार बात यह है कि, यूरोपीय संसद के सदस्यों ने अपनी उस मांग को दोहराया, जो पहले से ही इस साल की शुरुआत में अपनाए गए एक प्रस्ताव में व्यक्त किया गया था। यह प्रस्ताव कहता है कि यूरोपीय संघ और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के नेताओं को २०२२ के बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के निमंत्रण को अस्वीकार कर देना चाहिए, अगर चीन और हांगकांग में मानवाधिकार की स्थिति में सुधार नहीं होता है और खेलों से पहले कोई उच्चस्तरीय यूरोपीय संघ-चीन मानवाधिकार वार्ता/सम्मेलन का एक ठोस परिणाम नहीं निकल जाता है।